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कविता

चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे


कोनो धरौ रापा संगी कोनो धरौ झउहा
एक ओरी आमा अऊ दूई ओरी मउहा
धरती दाई ला हरियाबो रे
चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे

झन काटो रूखराई, यहू मां हवै परान ग
रूख राई जंगल झाड़ी, हमर पुरखा समान ग
आमा अऊ लीम मा, बसे हे भगवान ग
पीपर कन्हइया अऊ, बर हनुमान ग

गांव पारा गली मां पारौ आरो दऊहा
झन कर अलाली भइया कर लेवव लउहा
धरती दाई ला सिरजाबो रे
चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे।

जियत भर रूखराई, मनखे के काम आथे
इही लकड़ी के सेती, लइका रेंग पाथे
डोकरा बबा इही लकड़ी मां थेभा पाथे
मरे के बाद मनखे लकड़ीच मां लेसाथे

झन ढेरिया भइया कमाले अऊंहा झऊंहा
मेढ़ पार मां लगावव कम्हार अऊ कउहा
बादर ल नेवता बुलाबो रे
चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे।
रूख राई ले हे पानी अऊ पानी ले जिनगानी
रूखराई देथे फल फलहरी आनी बानी
जड़ी-बूटी दवई गोंटी ले होथे बड़ आमदानी
खटिया अऊ पीढ़ा बनथे, लकड़ी ले पंखा छानी

लकड़ी के बनथे हार अऊ पठऊवा
सुवा चरिहा बनथे, पर्रा अऊ झउहा
ये लकड़ी के मोल कइसे लगाबो रे
चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे

जब-जब प्रकृति दाई, मनखे ले रिसाथे
मनखे ल चेताए बर, भूकंप आंधी बनके आथे
अभी तको बेरा हे, संभल जौ रे भाई
भुंइया में लगावव हरियर रूखराई

दुल्हिन कस दिखही सम्हरे ये भुंइया
मिलही हमन ल जुड़-जुड़ छंइया
एकर करजा कइसे छूट पाबो रे
चलो रे चलो संगी पेड़ लगाबो रे

यशपाल जंघेल ‘किसनहा’
ग्राम-तेन्दुभांठा (गंडई)
जिला-राजनांदगांव