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कविता

चल रे चल संगी चल

चल रे चल संगी चल
बेरा के संगे—संग चल।
ऐतेक अलाल झन बन,
बेरा के संगे—संग चल।

नई तो बेरा ला गवा देबे,
ते जवाना ले पिछवा जाबे।
बुता हा बाढ़ जाही,
बेरा हा अपन रद्दा निकल जाही।

बाद में ते पछताबे,
अपन संगी ले दुरिहा जाबे।
जेन बेरा के संग चले,
ओला दुनिया पसंद करे।

तोर अलाली ले दिन पहागे,
देख काम बुता हा कतका बाढ़गे।
बेरा के संगे—संग बुता ला कर ले,
बेरा बचा के दुसर का मा भीड़ ले।

बेरा के संगे—संग चलबे,
त दुनिया ला पाछु छोड़ जाबे।
अपन बेरा ला मत गवाबे,
ओकर किमत ला मान ले।

सबले महान बन जाबे,
बेरा के संग काम ला करबे।
अलाली ल छोड़ मेहनत कर ले,
दुनिया मा बेरा सबले बड़े।

चल रे चल संगी चल,
बेरा के संगे—संग चल।
ऐतेक अलाल झन बन,
बेरा के संगे—संग चल।
Hemlal photo

हेमलाल साहू

4 replies on “चल रे चल संगी चल”

बहुत सुघ्घर रचना हे साहू जी |
बधाई हो !

बढ़िया सन्देश हेमलाल भाई….बधाई हो

aapman la bahut bahut dhanyawad bhaiya jo hmar kabita la pasand karew jay johar ram ram

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