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गीत

चिरई बोले रे

घर के छान्ही ले चिरई बोले रे…
घर के दाई अब नइ दिखे रे…
अंगना ह कईसे लिपावत नइ हे….
तुलसी म पानी डरावत नइ हे….
सूपा के आरो घलो आवत नइ हे….
ढेकी अउ बाहना नरियावत नइ हे….
जांता ह घर में ठेलहा बइठे हे….
बाहरी ह कोंटा म कलेचुप सुते हे….
चूल्हा म राख ह बोजाये हबे….
राख के हेरइया दिखत नइ हे….
कोठा ह घर के सुन्ना होगे हे….
खूंटा म गेरवा लामे हबे रे….
डंगनी ह लत्ता के अगोरा म हे….
सिल अउ लोड़हा बइरी होगे हे….
तावा संग चिमटा घलो नइ बोलत हे….
चुकिया म पानी अब कोन दिही रे….
कनकी के देवइया दिखत नइ हे….
दिया के बरइया कहाँ चल दिस रे….
घर अउ अंगना ल अंधियार कर दिस रे….
दाई के अड़बड़ सुरता आथे रे….
छान्ही ल छोड़ जाये ल भाथे रे….

नोख सिंह चंद्राकर

6 replies on “चिरई बोले रे”

गजब सुघर गोठ करेव चंद्राकर जी सिरतोन म सबो नंदावत हाबे………
घर के छान्ही, सूपा, ढेकी अउ बाहना, खूंटा म गेरवा, डंगनी जइसन आखर अब कविता ले तको नंदावत हाबे

तोर ब्लाग हा बहुत सुन्दर हावे जी। मोला पता नहीं रहिस हे छत्तीसगढ़ी ब्लोग्स के बारे मा।

अब्बड दिन म निमगा छत्तीसगढी मिलिस हाय ग ! सिरतो चिरइ के भारी मरना हे , कहूँ दाना – कनकी अँगना म डारयँ नहीं । चिराई बपरी काय खाही ?

शर्मा मैडम परसंषा खातिर धन्यवाद
घर के दाई(माँ) के बिना घर अंधियार हो जाथे…
ये ह शाश्वत सत्य आय।

सुन न ग बाबू ! हमन आज- काल , दायी – ददा कहे म लजाथन फेर ए दूनों शब्द हर संस्कृत के ‘दा’ धातु ले बने हे जेकर मतलब ए – दायी = देने वाली – ददा= देने वाला । ” दायी ” हर ,” दायिनी ” शब्द के अपभ्रंश ए । ” ददा ” शब्द हर ” दादा ” के अपभ्रंश ए , जेकर अर्थ ए – निरन्तर देने वाला = जौन हर , जिनगी भर देवत रहिथे । वोइसने हमर छत्तीसगढी म ” तस्मै ” रांधथन । तस्मै = वोकर बर [ भगवान बर ] । तस्मै चुरथे फेर वोला खाते कोन ? मैं हर , तैं हर , ए हर , वो हर , नोनी हर , बाबू हर , कहे के मतलब -[ तस्मै = खीर ] [ हर = भगवान ] तस्मै हर भगवान बर चुरथे अऊ वोही हर खाथे – काबर के मोर भीतर भगवान हे , तोर भीतर भगवान हे सबो जगहा भगवान हे , तव कन – कन म भगवान के दर्शन ल , छत्तीसगढी म हमर पुरखा मन , जानत रहिन हावैं , एहर हमर मन बर कोनों नवा बात नोहय । छत्तीसगढी म अइसने , संस्कृत के हजारों शब्द हावय । मोर shaakuntalam.blogspot.in म एक ठन ” संस्कृत से अनुप्राणित छत्तीसगढी का शब्द सामर्थ्य ” आलेख ल देख न ! तोला अच्छा लगही । ए अच्छा शब्द हर घलाव संस्कृत ए । सब झन ल राम – राम ।

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