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कविता

चुनई दंगा

-1-
चुनई आगे, गुर के पाग पागे,
बड़का तिहार लागे, गरीबहा के भाग जागे।
बोकरा सागे, गांव भर मा पटागे,
सुखरू हर मोटागे, कमजोर मन पोठागे।।
हाथ जोड़ागे, जन गन ठगागे,
मनखे मन मतागे, कोलिहा मन अघवागे।
बतर आगे, बतरकिरी भागे,
सुख्‍खा नांगर जोतागे, लागथे बिहान पहागे।।
पिरीत लागे, भड़वामन आगे,
गांव मड़वा छवागे, बने बने मन रोगागे।
चुनई आगे, गुर के पाग पागे,
बड़का तिहार लागे, गरीबहा के भाग जागे।।

-2-
हाथ सफाई, भगवा सादा भाई,
सत्ता की दूध मलाई, दूनों बांट बांट के खाई।
खेल खेलाई, हम है भाई भाई,
दुनिया को दिखलाई, चोर पुलिस बन जाई।।
साफ सफाई, बिदेस भिजवाई,
तन पीरा कीरा खाई, बिदेस में जतनवाई।
चुनई दाई, कन्हाई रघुराई,
ऐसा जतन लगाई, भर भर भरे तराई।।
-3-
तूंहर मन, जाहा काकर ठन,
तूमन जनारदन, छेरी भेड़ी समझा झन।
सही पहन, आज आइस जन,
उड़ा देवा गरदन, बटन दबाके तूमन।।
वोटर मन, छाती गिस हे तन,
पानी पाबो जन जन, दारू मा अब नी मातन।
कांटा चूरन, हमन जाई बन,
फेर लाई कालाधन, खुसी मनाई जन जन।।
-4-
पीलहा पात, कतका दिही साथ,
करिही भीतरी घात, झन आबे एकर बात।
भोंभला दांत, नी राखे सके बात,
उगलथे सबो बात, करथे मनमानी बात।।
नेता के जात, हावे सांप के जात,
आही चुनई मा हाथ, द तूमन अपन लात।
बोकरा भात, खावा चुनई आत,
नूनछूर हावे रात, कोठी ला भरा जात जात।।
-5-
सच के संग, हे सबो नंग भंग,
जीतबो चुनई जंग, मन हर हावे तरंग।
मया के रंग, रंगे हे अंग अंग,
दिखबो रंग बिरंग, हमन के हे एके रंग।।
चुनई खंग, लहूलुहान अंग,
खाय के रिहीस तंग, बोकरा पाबो तोर संग।
चुनई रंग, भोज गंगू बेरंग?
सबोझन गिन रंग, देसी दारू सबाब संग।।
-6-
अंगठा छाप , बड़का गुंडा खाप,
ढेंटू के करही नाप, बनही वो सबो के बाप।
चुनई जाप, जनदेवता आप,
घरोघर करे नाप, जपत हे अंगठा छाप।।
धरम पाप, नी रह गिस आप,
देत रहा कोन्हों साप, गोठ ला सुनी चुपचाप।
वोटर बाप,  दे मोला मोर छाप,
रात दिन करों जाप, जीतों मैं तोर परताप।।
-7-
चुनई दंगा, उल्टा बोहाही गंगा,
जीतही बिरला रंगा, हाथ घी जेकर हे संगा।
फसाद दंगा, पांय परों सलंगा,
बलात्कारी होबे नंगा, जाबे भरस्टाचारी संगा।।
कीट पतंगा, मिटे मया के रंगा,
जलही दीया के संगा, संसार अमर पतंगा।।
सूरज नंगा, बनाही भला चंगा,
बगराही नवरंगा, मिटाही वो फसाद दंगा।।

Sitaram Patelसीताराम पटेल
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