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व्यंग्य

चुपरनहा साबुन

Avinash Babuयेदे अहि नाहकिस हे तउने देवारी फर्रा के गोठ आए बड़ दिन म अपन गाँव गए रहेंव, जम्मे जुन्ना संगवारी मन सो भेंट होए रहिस, गोठ बात म कतका बेर रात पहागे जाने नई पायेन| बिहनिया होईस तंहा चला तरिया जाबो बड़ दिन हो गए तरिया म नहाय नई हन, जमे संगवारी मन ला उनकर घर ले चला न कतका बेरा जाहा म जाहा त घटौन्धा म बैठे नई पाहा, तभे टेटका ह घर के भीतरी ले चिचिया के कहत हे तैं चल ना मै ह गरुआ ल ठोकान म अमरा के उही डहर ले तरिया म आवथों, रद्दा म कल्लू के दुकान परही तिन्हाले एक ठन चुपरनहा साबुन धर लेहा | महू हाँ हव कहिके मुड ला दोलाएव अउ संग म चल देहेंव | कल्लू के दुकान ले नाहकत रहेंव तभे मन्नू ह कैथे के टेटका हा चुपरनहा साबुन बिसा लेहा कहिसे, धर ले गुसियाही, अउ महू हा बने दिन होगे साबुन चुपर के नई नहाये हवंव | तें हा झट के रूपया ला हेर अउ तू मन चलौ मै साबुन ला ले के आथो, मै हा ओला एक ठन दस के नोट ल हेर के देहेंव अउ कहेंव जा एक ठन साबुन धर ले, नहीं ता उहू हा कहिहि साबुन लेहे बर कहेंव तेनो ला नई लेहे सकिस| गोठियात जमे झंन तरिया के घटौन्धा म पहुंच गएन अपन अपन पटकू ला पठेरा म धर के रवनिया लेहे बर घटौन्धा के ऊपर बने चौरा म बैठ गएन, सुख दुःख गोठियाय म मस्त रहेंन, तभे कका ह नहाये आइस, अउ आते आत कहत हे क़स रे बाबु साबुन तोरे आये का रे, मै कहेंव हाँ कका | हहो रे मै तो आघू ले जान डारे रहेंव तोरे होही, ये मन ला तो एक महिना ले जादा होगे माटी चुपर के नहात साबुन कंहा ले पाहि | साबुन ला पईस तिन्हा कका ह बने लगर लगर के दू बेर नहा डारिस अउ अपन पटकू ओनहा सब ला उही साबुन म धो डारिस,उही मेर ठेठवार ह हा घलो नहात रहिस तेन हा कहत हे क़स कका साबुन ह बहुत महमहात हे, त कका कहत हे दुरिहा ले काबर सुंघत हवस लगा के देख हमर बाबु बेटा के आये कोइलारी म नौकरी करत हवय,बड दिन म कमा के लहूटे हवय ओकर साबुन ल नई लगाये म ओकरो आत्मा ह दुःख झंन पावय कहिके लगा लेथन नई तो ऐसनहा सस्ता साबुन म तो हमन गोड घलो ल नई धोवन न रे ठेठवार, हाँ मालिक | कका ह नहा धो के रीते के बाद क़स के चिचियाके कहत हे क़स रे बाबु तै पउर साल आये रहे त कहत रहे के मोर परमोशन होए वाले हवय त परमोशन होए म तनखा कम हो जाथे का रे| नहीं कका | त तोर कोईलारी के कोइला हा सस्ता बेन्चाथ हे का| नहीं कका | मोला तो अइसने लागथे नई त शहर कती ले आये हवस त बने महंगी सुन्दर चुपरनहा साबुन लाने रहिते त तहूँ ह कल्लू दुकान के ठेठार्रा साबुन जेला पथरा म घसे घलो म झाग नई निकलत हे ये तोर साबुन ला लगाये के बाद देंह ह कटकताथे | ओतके बेरा टेटका हा आते आत पूछत हे के दुकान ले साबुन धर लेहा कहे रहेंव धरे हव के भुलागेव | मै कुछु कहितेंव तभे मन्नू हा कहाथे लाने रहेंन, दो कका अउ दे ठेठवार के मारे बांचे पावय, ओनहा लत्ता सब ला उही साबुन म धो डारिस फेर कहाथे के साबुन ह ठेठार्रा रहिसे, अपन कुछु ला कोनो ला नई देवय,पईस फोकट म त जऊन आवथे नहाये तेने ला कहथे ले महमहाई साबुन आये थोकन तहू चुपर के देख अउ जम्मे ला सिरवा दिहिस | टेटका कका डहर गुसिया के देख के कहाथे हव कका, त कका ह कहिथे के हव रे बाबु ह तोरे भर संगी नोहय, जब नानकन रहिसे त कनिहा म लादे लादे गाँव भर किन्दारत रहेन त हमर ओतको अधिकार नई हे, आज भारी ओकर डेना पांखी जाम गे त तुमन संगी जाम गे हव, कहत कहत कका ह भाउक होगे | झगरा ला बाढ़त देख के मै ह कका ल कहेंव होगे कका तोला तो पूरा अधिकार हवय हमन तोरे लैका आन ये टेटका तै एती बर आतो,जा रे मन्नू तें हा कल्लू के दुकान म मोर नव लेबे अउ एक ठन अउ चुपरनहा साबुन ले आबे | त मन्नू हा कथे , तें न एक ठन कागज म लिख के दे त कल्लू हा देहि नई त सोचही अभी तो बाबु साबुन ले के तरिया कती गिसे, अउ अब मन्नू ह अपन काल बर व्यवस्था बनावथे| लान रे भाई लिख के देंथाव, फेर जल्दी लानबे बड बेरा होगे हवय भइया ह गुसियाही बिहनिया ले तरिया गे हवय अउ आवत नई हे | हहो कहिके झट के जा के लानिस त फेर नहा के घर गेन झट के लहुते के बेरा आ गिस मोटर के बेरा सबे संगी साथी मन मोटर म चढ़ाये के नाव ले के मोटर स्टेंड तक आये रहीन देखते देखत मोटर आ गालो गे अउ मै चढ़ गेंव फेर कतको कन गोंठ ह पेटे भीतरी रहिगे | मोटर के खिड़की ले झाँकत बेरा मोरो आँखी म आंसू डबडबा गे | मोटर म बैठे बैठे फेर झट के आहूँ सोचते रहेंव तब ले मोटर छूट के, बने दुरिहा के जात ले लहुट लहुट के संगवारी मन ला देखत रहेंव,अउ ओ पीपर के तरी म खड़े होके मोटर कती ला देखत रहीन.

अविनाश बाबु बिजुरी