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दोहा

चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 1 : अरुण कुमार निगम


ओ मईया ……


मूड़ मुकुट- मोती मढ़े, मुख मोहक-मुस्कान।

नगन नथनिया नाक मा, कंचन-कुंडल कान।। ओ मईया ……

मुख-मंडल चमके-दमके, धूम्र विलोचन नैन।

सगरे जग बगराये मा, सुख-संपत्ति,सुख-चैन।। ओ मईया ……

लाल चुनर, लुगरा लाली, लख-लख नौलख हार।

लाल चूरी, लाल टिकुली, सोहे सोला सिंगार।। ओ मईया ……

करधन सोहे कमर मा, सोहे पैरी पाँव।

तोर अंचरा दे जगत ला, सुख के सीतल छाँव।। ओ मईया ……

कजरा सोहे नैन मा, मेहंदी सोहे हाथ।

माहुर सोहे पाँव मा, बिंदी सोहे माथ।। ओ मईया ……

एक हाथ मा संख हे, एक कमल के फूल।

एक हाथ तलवार हे, एक हाथ तिरसूल।। ओ मईया ……

एक हाथ मा गदा धरे, एक मा तीर-कमान।

एक हाथ मा चक्र हे, एक हाथ वरदान।। ओ मईया ……

अष्टभुजा मातेश्वरी, महिमा अपरम्पार।

तीनों लोक तोर नाम के, होवै जय जयकार।। ओ मईया ……

नव राती धर आये हे, नौ दुर्गा-नौ रूप।

गरबा खेले भक्त संग, आनंद अति-अनूप।। ओ मईया ……

अरुण कुमार निगम

सरलग …..

3 replies on “चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 1 : अरुण कुमार निगम”

बहुत बढ़िया जस गीत है|माता श्रृंगार के साथ माता के आठों हाथ कि स्थिति शस्त्र और आशीर्वाद
भक्ति में डूब जाने का मन करता है|अलंकार का भरपूर प्रयोग जोर दर है

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