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गीत

चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 6 : अरुण कुमार निगम

मात-पिता के मान हो, गुरु के हो सम्मान।
मनखे बन मनखे जीये, सद्बुद्धि दे दान।। ओ मईया ……

लोभ मोह हिंसा हटे, काम क्रोध मिट जाय।
सतजुग आये लहुट के, अइसन कर तयं उपाय।। ओ मईया ……

अनपूरना के वास हो, खेत खार खलिहान।
कोन्हों लाँघन झन रहै, समृद्ध होय किसान।। ओ मईया ……

तोर बसेरा कहाँ नहीं, कन-कन तहीं समाय।
जउन निहारे भक्ति से, तोर दरसन फल पाय।। ओ मईया ……

अँचरा मा ममता धरे, नैनंन धरे सनेह।
बिन मांगे आसीस मिलय, शक्ति समाये देह।। ओ मईया ……

कटय तोर सेवा करत, जिनगी के दिन चार।
तोर नाम के आसरा, तहीं मोर संसार।। ओ मईया ……

अरुण कुमार निगम

2 replies on “चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 6 : अरुण कुमार निगम”

बहुत सुघ्घर रचना निगम भैया जी
जय माता दी

चैत नेवरात आए म अभी 15 दिन बॉहचे हे फेर अरुण भाई तोर बर जसगीत के चार डॉढ समर्पित हे –
” चंदन कस तोर माटी हे मोर छत्तीसगढ महतारी छत्तीसगढ महतारी ओ दायी छ्त्तीसगढ महतारी ।
तोर कोरा हे आरुग दायी तयँ सब के महतारी तयँ सबके महतारी ओ दायी छत्तीसगढ महतारी ॥
धान – कटोरा कहिथें तोला धान उपजथे भारी धान उपजथे भारी ओ दायी छत्तीसगढ महतारी ।
रुख- राई मन ओखद ए सञ्जीवनी डारी – डारी सञ्जीवनी ए डारी ओ दायी छत्तीसगढ महतारी ॥
मया – बरोबर नरवा नदिया पलथे खेती – बारी पलथे खेती – बारी ओ दायी छत्तीसगढ महतारी ।
शीतला माई रोग – दोख म करथे तोर रखवारी करथे तोर रखवारी ओ दायी छ्त्तीसगढ महतारी ॥
चंदन कस तोर माटी हे मोर छ्त्तीसगढ महतारी छ्त्तीसगढ महतारी ओ दायी छ्त्तीसगढ महतारी ।”

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