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चौकीदार घुघवा ( बाल कहिनी)

एक समे के बात ए। सब पंछी मन सकला के तय करीस के आज ले हमर चौकीदार घुघवा रइही। जगवारी अऊ रखवारी के बूता ल घुघवा के सिवा अऊ कोनो दूसर पंछी मन नई कर सकयं। रात के घुघवा ह सबला देख सकत हे। मुखिया पंछी के निरनय ल सब मान लेथें।

घुघवा के चौकीदार बने ले चिरई-चिरगुन मन खुसी मनाइन। रात के बेफिकरी होके राहयं। सोच-गुन म परगे ओमन जऊन इंखर सिकार करय। इंखर अंडा-पिलवा ल खाय। घुघवा के चौकस रखवारी ले ऊंखर सिट्टी-पिट्टी गुम होगे। बड़ मुसकिल होगे सिकार करना।
एक दिन कोलिहा ल आवत देख घुघवा अपन असगन बोली म नरिया के सचेत करीस- ‘जागत रहो जागत रहो’। कोलिहा तीर म आके कहीस- ‘का घुघवा महाराज? हमीं ल देख नराज।’
फोकटे-फोकटे नरियावत हव, बिन सोचे-समझे हड़बड़ावत हव।
अरे रथिया किंजरथन, परे डरे मूंगा-मोती बिनथन।
घुघवा घलो ओइसने हंकन के जवाब दीस- ‘हम चौकीदार रात के, नई होवन अपन बाप के। घुघवा हमर नांव हे, रखवारी हमर काम हे।’
कोलिहा घलो हुसियार रहीस कहिस- ‘तैं चौंकीदार, हम सलाहकार, हम दूनों एक जोड़ीदार।’
ओ दिन ले कोलिहा अऊ घुघवा मितान बद लेथें। दूनों के मितानी ल देख पसु-पक्छी मन ला अचरज होथे।
‘कोलिहा ककरो सगा होये हे भला? एक न एक दिन धोखा खाबे रे घुघवा’ करिया कंउवा कांव-कांव करिके कहीस।
घुघवा हांसत कहीस- ‘तोर तन करिया ओइसने तोर मन घलो करिया। हमर मितानी उपरछवा नोहंय। देख लेबे।’
अतका सुन पंड़की ले रहे नई गीस- ‘हम पंछी के नाक ल कटवा देस, अब का के भरोसा।’ पंड़की अऊ कंउवा दूनों उड़ावत दूसर रूख म जाके बइठ जथे। उहां सबके मांदी-मांदर होवत रहीस।
पंड़की, परेवा, सुवा, मैना, कुकरा, कोयली, सलहई, चिरई, सब मिलके भोज के तैयारी करीन। कनकी-कोदो के चारा चरीन। फल-फूल झड़ीन। घुघवा ल कोनो नेवता नई देइस। चुरमुरा के देखत रहिगे घुघवा। करिया कंउवा बिजरावत कहीस- ‘पंछी मन ल छोड़ के पसु के संग रहिबे त अइसने सजा पाबे।’
घुघवा तभो ले मुंड़ उठा के कहीस- ‘दोस्ती मितानी म ऊंच-नीच अऊ जात-पांत बड़े नई होवय बल्कि भाईचारा बाढ़थे।’ देख लेबो एक दिन…।
असाढ़ के करिया-करिया बादर उठीस। कोलिहा कइथे- ‘चल घुघवा मितान इहां ले भाग चलीन। करा पानी अवइया हे।’ घुघवा चिंता करत कहीस- ‘फेर मय तो जादा दूर जा नई सकंव।’
कोलिहा कहीस- ‘आ मोर पीठ मा बइठ जा।’ घुघवा ओकर पीछ मा बइठ के चल देथे। जऊन देखिस तऊन कहीस-‘घुघवा के जातरी आए हे’।
घुघवा ल भरोसा रहीस कोलिहा दिल से बइमान अउ बुरा नइए। दूनों भांठा भिया म आके ठहर जाथे। उही मेर एक ठन कुंदरा रहीस। कुंदरा के रखवार भीतरी म रहीस। दूनों ल लागत रहीस भूख। घुघवा अक्कल लगाके कहीस- ‘सुन मितान, मंय गीत गांहू त तैं कुंदरा म खुसर जबे। रखवार ह मोला भगाय बर आबे करही, तहां काम बन जही, ले आबे खाए-पिए के समान।’
घुघवा के चलीस तरह-तरह के असगुना असुभहा बोली। कुंदरा के रखवार निकलिस डंडा धर के भगाए बर। कोलिहा कुंदरा के भीतर म खुसर जथे। रखवार देखिस घुघवा विधुन होके नाचत- गावत हे। बने देखीस। कुंदरा ल चिंया अऊ पिसान के मोटरी ल धर के भागत कोलिहा ल रखवार देख परथे। भूत -भूत काहत उही डाहर भागथे।
घुघवा अऊ कोलिहा दूनों मन भर के खाइन। कोलिहा के मन होथे दही खाए के। घुघवा कहीस- हमर अक्कल कब काम आही।
‘फुर्र-फुर्र फदर-फदर, घुघवा नाचीस जतर-कतर
दही उलंड के गहिरा के, खाइस दूनो डपट के’
दही वाले राउत ह घुघवा ला गारी गल्ला देवत चल देथे। घुघवा कहीस- ‘चल मितान अब चला जाए अपन पुराना अड्डा।’ दूनो आ जथे। कोलिहा कहीस-‘घुघवा मितान, अब इही पहाड़ी मा राह। कहां जाबे ओती? घुघवा ल पहाड़ी म ठहरा लेथे।’ बिन चौकीदारी के चिरई-चिरगुन अधर होगे। कोलिहा अपन होसियारी म अव्वल होगे। बस चलीस ओकर अंडा खाना अऊ चिंया-चिरई खाना। एक दिन घुघवा ल पता चलथे। ‘ए तो अकेल्ला झड़त हे घुघवा कहीस- ‘चोर मिले चंडाल मिले, दगाबाज झन मिले।’ ओ दिन ले घुघवा कोलिहा के माड़ा ल छोड़के भगा जथे। अपन पंछी मन के समाज म। घुघवा के करनी ल माफ करके फेर ओला चौकीदार बना देथे।
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
जिला दुर्ग
फोटू विकीपीडिया ले साभार

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