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गुड़ी के गोठ

छत्तीसगढ़ी : कामकाज अउ लेखन के रूप : सुशील भोले

Sushilजबले छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दरजा दे के ए भरोसा जगाये गे हवय के अवइया बेरा म ए ह शिक्षा के संगे-संग राजकाज के भाषा बन सकथे, तबले एकर साहित्यिक लेखन के रूप अउ कामकाज माने प्रशासकीय रूप ऊपर भारी गोठ-बात अउ तिरिक-तीरा चलत हे। ए संबंध म राजभाषा आयोग ह एक ठ विचार गोष्ठी के आयोजन घलोक करे रिहिसे, जेमा ए बात प्रमुखता ले आइस के कामकाज के भाषा ल आम बोलचाल के रूप म ही लिखे जाना चाही।

ए विचार ले लगभग महूं सहमत हवंव। काबर के प्रशासनिक काम-बुता म बहुत अकन अइसन शब्द आथें, जेकर मनके अनुवाद करे म आने के ताने असन लागथे, वोकर मूल अभिव्यक्ति नइ हो पावय। ए बात ल उही मन समझ सकथें, जेमन छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखत हें, उहू म गद्य रूप म। फेर पद्य लेखक मन या फेर वोमन, जेकर मन के लेखन ह सिरिफ नेंग छूटे असन हावय, वोमन ह आरुग भाषा के संगे-संग लिपि (वर्णमाला) के प्रयोग के मामला म घलोक परंपरावादी रूप के प्रयोग के बात करथें।

मोला लगथे के एला हमन ल उही रूप म लेना चाही, जइसे हिन्दी ह लोकभाषा ले राष्ट्रभाषा के खुरसी म बइठे खातिर अपनाइस हे। माने जब तक वोला खड़ी बोली के रूप म लिखे गेइस तब तक श,ष, ऋ जइसन शब्द के प्रयोग ले दूरिहा रखे गेइस फेर जइसे राष्ट्रभाषा के खुरसी म बइठे के उदिम रचे गेइस वइसनेच एकर रूप ल उच्चारण के शुद्धता के अनुरूप कर दे गेइस। माने नागरी लिपि के जम्मो वर्ण मनला आत्मसात कर ले गेइस। मोला लागथे के अब हमूं मनला अइसने करना चाही। छत्तीसगढ़ी  लेखन खातिर हमन नागरी लिपि ल अपनाए हावन त वोकर सब्बो वर्णमाला ल घलोक अपनाना चाही। जब तक छत्तीसगढ़ी ह बोली के रूप म जाने जावत रिहिसे तब तक भले हम श,ष, ऋ जइसे वर्ण मनके प्रयोग नइ करत रेहे हावन, फेर अब जब इहू ल प्रदेश स्तर म राजभाषा के दरजा दे दिए गे हवय, प्रशासनिक काम-काज ल एमा करे के जोखा मढ़ाए जावत हावय त एला भाषा के जम्मो मानक के अनुरूप बनाये जाना चाही। ए हम सबके जिम्मेदारी आय।

अभी साहित्यिक लेखन म दू किसम के रूप देखे जावत हे। पहला रूप तो परंपरावादी मनके हे, जेमन संस्कृति ल संसकिरिति, शंकर ल संकर, प्रसार ल परसार, ऋषि ल रिसि लिखत रहिथें। मोला लागथे के छत्तीसगढ़ी के अइसन रूप ल आज के वैश्विक (ग्लोबल) दुनिया ह पचो नइ पावय, आत्मसात नइ कर पावय। फेर सबले बड़े बात ये हे के कोनो भी आने क्षेत्र के मनखे मन अपन भाषा ल बिगाड़ के दूसर के भाषा ल नइ सिखंय।     हमला छत्तीसगढ़ी ल ए पूरा राज के हर आदमी मन के संगे-संग विश्व के लोगन संग जोडऩा हे, उनला छत्तीसगढ़ी लिखे, पढ़े अउ बोले खातिर प्रेरित करना हे, त ए जरूरी हवय के हमला अपन दृष्टिकोण ल बड़े बनाए बर लागही, हमला अपन सोच ल विश्वव्यापी बनाए बर लागही अउ पूरा एकमई होवत दुनिया (ग्लोबल होवत) के हर वो संपर्क भाषा ल अपन संग जोड़े बर लागही, वोकर मनके वो प्रचलित शब्द मनला अपन संग संघारे बर लागही, जेमन कोनो न कोनो किसम ले हर दिनचर्या म शामिल होवत जावत हें।

आज हमन अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी के ए कहि के विरोध करथन के वोकर सेती हमर अपन भाषा के अस्तित्व खतरा म परत हावय। फेर वोकर वो बड़प्पन ल काबर भुला जाथन के वोहर अपन आप ल बड़े बनाए खातिर दुनिया के हर भाषा अउ वोकर प्रचलित शब्द मनला आत्मसात करके अपन आप ल बड़े बनाए हे। वोकरे सेती वोहर आज पूरा दुनिया म राज करत हे। अउ एक हमन हावन जेन कुआं के मेचका बरोबर बने रहना चाहथन, अउ सपना देखथन के ए हर जन-जन के भाषा बनय, राजकाज अउ शिक्षा के भाषा बनय।

मोर अरजी हे के जतका जल्दी हो सकय एकर व्यापकता ल देखत-समझत अपन सोच अउ दायरा ल बड़े बनाय के दिशा म कदम बढ़ावन।

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811

2 replies on “छत्तीसगढ़ी : कामकाज अउ लेखन के रूप : सुशील भोले”

Thik kahew bhole ji, apan bhasa bar prem -aadar -garab hona chahi fer samay ke sang chale bar,
Vishw -bajar ma apan jagah banae bar intarnational bhasa la apnaye bar parhi.

भोले जी आपके बिचार बड सुघ्घर हवय मंहु आपके बिचार ले शत प्रतिश्त सहमत हंवव हमन छत्तीसगढी ल जइसन बोलथन वइसने लिखे के जरूरत हवय

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