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गोठ बात

छत्तीसगढ़ के चिन्हारी आय- सुवा नृत्य

सुवा गीत नारी जीवन के दरपन आय। ये दरपन म वियोग, सिंगार, हास्य, कृषि, प्रकृति प्रेम, ऐतिहासिक, पौराणिक, लोककथा के संगे संग पारिवारिक सुख-दु:ख के चित्रण देखे बर मिलथे। पंजाब के लोक नृत्य भांगड़ा, असम के लोक नृत्य बिहू अउ गुजरात के लोकनृत्य गरबा कस छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य सुवा नृत्य के देस-विदेस म चिन्हारी कराये के उदीम आय। दुरूग के राय स्तरीय सुवा महोत्सव हा। सुवा नृत्य गौरी-गौरा के विवाह संस्कार ले जुडे हे अइसे लोक मान्यता हे। फेर सुवा के सुरुवात ले बिसरजन तक चिंतन करे के जरूरत हे।
सुवा के जनम
दंतकथा के मुताबिक एक समे भोले भण्डारी हा अमरनाथ के गुफा मा पारबती ला कथे कि- ‘पारबती मेंहा तोला एक ठन सुग्घर अमरकथा सुनाथंव। तेंहा चेत लगा के सुनत जा अउ बीच-बीच म हुंकारू देवत जाबे।’ अइसे कहिके संकर भगवान हा तीन घांव थपरी मार के जम्मो चिरई-चिरगुन अउ फांफा मिरगा ला भगा दिस ताकि ये अमर कहानी ला पारबती के अलावा कोनो झन सुन सकै कहिके। भगवान संकर के थपरी बजाय ले सब तो भागगें फेर उही मेर खोलखा म चिरई के खोंधरा राहय जेमा एक ठन घोलहा अण्डा परे राहय। संकर भगवान के अमर कहानी हा आधा होय रिहिस कथा सुनत-सुनत हुंकारू देवत पारबती ला नींद आगे। वोतके बखत वो खोलखा के खोंधरा ले हूं… हूं.. हूं… कहिके हुंकारू सुनइस। काबर कि खोंधरा के घोलहा अण्डा म अमर कहानी के पुन परताप ले वोमा जीव परगे राहय अउ उही अंडा ले निकले सुवा हा पारबती के बल्दा मा हुंकारू भरत राहय। उही बखत ले घला अइसन माने गे हे कि सुवा चिरई हा मनखे के गोठ ला जानथे अउ समझथे।
सुवा गीद
छत्तीसगढ़ आदिवासी अंचल आय। छत्तीसगढ़ वनांचल आय। पूरा छत्तीसगढ़ जंगल, झाड़ी मा तोपाय राहय। जउन हा एदे लोक गीत ले सिरतोन लागथे
जंगल-जंगल झाड़ी-झाड़ी खोजेंव संवरिया ला…
जंगल-जंगल झाड़ी-झाड़ी खोजेंव संवरिया ला…
जब संवरिया हा काम बुता बर जंगल जावत रिहिन होही तब उहें काम-बूता करत खानी सुवा चिरई मिलिस होही। सुवा ला सुन्दर देख के घर लाइस होही। घर मा लान के पोसिस होही। पहिली घर मा डोरी मा बांध के राखिन होही। वोकर बाद सुवा बर पिंजरा बनइस होही। सुवा ला खावत-पियावत काम-बूता करत-करत सुवा सन गोठियाये ला धरिन होही। तपत-कुरू, तपत कुरू काह रे मिट्ठू, सगा आवथे काह रे मिट्ठू। मीठ-मीठ गोठियाथे तेकर सेती सुवा के नाव मिट्ठू परिस होही अइसे लागथे। मिट्ठू ल जइसन पढ़ावय वोइसने पढ़ देवत रिहिस हे। तिही पाय के सुवा नारी मन के सुख-दु:ख के संगवारी बनगे। काबर कि पुरुष हा तो काम-बूता मा बाहिर चल देवें। तब घर मा संगवारी के रूप म सुवा के आधार बन जावत रिहिसे। व्यवहारिक जीवन मा जउन भी घटना के एहसास करै वोला सुवा के माध्यम ले व्यक्त करे ला धरिन होही। हिरदे ले उद्गरे भाव ला सुवा के माध्यम ले उजागर करीस उही सुवा गीद के रूप लीस होही। नवा-नवा बिचार अउ एहसास ले नवा सुवा गीद के रचना होइस होही जउन आजो घलो देस, काल, परिस्थिति के मुताबिक सुवा गीत के नवा रचना पढ़े-लिखे अउ सुने बर मिलथे। जउन गीत ला सुरुवात म सुवा ला पढ़ाय गे रिहिस होही सुवा गीत के धुन हा टपट-कुरू-टपट-कुरू काह रे मिट्ठू के आसपास बंधे दिखथे।
सुवा नृत्य
1. आदिवासी मन संकर भगवान ला बूढ़ादेव कहिथें। हो सकथे महादेव ला बड़ा देव काहत रिहिन होही वोकर बाद बड़ा देव ला बूढ़ादेव काहत होही।
2. संकर पारबती ला गौरा-गौरी केहे के सुरुवात कब ले होही येला तो नइ कहि सकन फेर जउन आम चलन म राम सीता कस जोडी फ़भे हे कहिथन उही किसम ले आदिवासी संस्कृति मा गौरा-गौरी कस जुग जोड़ी फभे हे कहिके उंकर तुलना करत होही। काबर कि गौरा-गौरी संकर अउ पारबती के पर्याय आय। गौरा-गौरी हो सकथे गोंड़-गोंड़िन के बदलत स्वरूप होही या फेर गाेंड़-गोंडिन हो सकथे गौरा-गौरी के बदलत स्वरूप।
अतका बतलाये के मतलब ये आय कि संकर पारबती अउ सुवा के जुड़ाव लोक संस्कृति सुवा नृत्य मा हवै। वोइसे तो सुवा ऊपर अलग-अलग विदवान मन के अलग-अलग बिचार हे कोनो सुवा नृत्य म सुवा ला बीचोंबीच राख के गौरा-गौरी के प्रतीक मानथे। त कतनो मन एक ठन सुवा ला आत्मा अउ पांच ठन सुवा ल इन्द्रिय मानथे। त कतनो मन पिंजरा के सुवा ला आत्मा अउ पिंजरा ला सरीर मानथे। आदिवासी परम्परा म अपन अराध्य देव गौरा-गौरी के विवाह पर्व के धूमधाम ले मनाये के उत्साह के नृत्य आय सुवा नृत्य। गौरी-गौरी विवाह के तइयारी आय सुवा नृत्य गौरा-गौरी मन दूसर राजा अउ रानी के आघू मन अपन जीनगी के बखान आय सुवा नृत्य। संकर भगवान अउ आदिशक्ति पारबती के भक्ति आय सुवा नृत्य। अइसे जन मान्यता हे कि गौरा-गौरी के बिहाव खातिर धन सकेले खातिर सुवा नृत्य के सुरुवात होइस होही। चाहे सुरुवात जइसे भी होइस होही फेर आज हमर संस्कृति के मजबूत अंग बनगे हे। सुवा नृत्य छत्तीसगढ़ के चिन्हारी बनगे हे।
सुवा नृत्य के सुरुवात
सुवा नृत्य छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय नृत्य आय। भारतीय साहित्य म जउन जघा कोइली ला मिले हे उही जघा लोक जीवन छत्तीसगढ़ी म सुवा (मिट्ठ, तोता, सुग्गा) ला मिले हे। आदिकाल ले सुवा ला संदेशवाहक (संदेसिया) के रूप म जाने जाथे। सुवा ले जुड़े सुवा नृत्य हा छत्तीसगढ़ के आदिवासी मन धारमिक मान्यता अउ बिसवास ले जुड़े हे। गोंड़ मन संकर (गौरा) अउ पारबती (गौरी) के बिहाव ला ‘सुरहोती’ के दिन ला गौरी-गौरा पर्व के रूप मनाथे। धनतेरस के दिन ले सुवा नृत्य के सुरुआत होथे। इही रात ले गोड़िन मन गौरी गुड़ी मा फूल कुचरथे अउ दिन सुवा नृत्य के माध्यम ले घरों घर जोहारे बर जाथे। प्रमुख रूप ले गौरा-गौरी के बिहाव के आयोजन खातिर धन राशि सकेले के उद्देश्य ले माइलोगन मन के सुवा नृत्य के सुरुवात होइस होही।
सुवा नृत्य ला दल प्रमुख हा गाथे तेला अउ बाकी मन दुहराथे। कोनो-कोनो दल मन आधा मन पहिली उचाथे तेला दूसरा मन दुहराथे या फेर गीत ला पूरा करथे। ताहन टुकनी मा रखे सुवा के चारों मुड़ा किंजर-किंजर के थपरी बजावत झुक के पैर ला थिरकावत सुवा नृत्य करथे।

दुरगा प्रसाद पारकर

One reply on “छत्तीसगढ़ के चिन्हारी आय- सुवा नृत्य”

दुर्गा भाई ! बढिया लिखे हावस ग ! सुवा गीत अऊ सुवा नृत्य हर बहुत लोकप्रिय हे । सुवा नाच म तो बाजा घलाव के जरूरत नइये , थपडी बजा – बजा के बहिनी मन , कतेक सुघ्घर नृत्य करथें । हमन पतञ्जलि – पीठ हरिद्वार गए रहेन न तव हमुँ मन ऊँहॉ सुवा – नृत्य करे रहेन । वोहर आस्था के माध्यम ले दुनियॉ भर म बगर गे , तौन हर बहुत नीक लागिस । सब झन बहुत पसन्द करिन । तोला बहुत – बहुत बधाई ग , दुर्गा भाई !

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