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कविता

छत्तीसगढिय़ा हांव मैं

छत्तीसगढिय़ा हांव मैं
सब ले बढिय़ा हांव मैं
इहां के पानी इहां के माटी
रहईयां इहां के इहां के भूईय्या
कहे सोन चिरईय्या हंव मैं
छत्तीसगढ़ के मोर भुईय्या ला धान कटोरा कईथे
सब्बों धरम के संगी साथी जुरमिल के बने रहिथे
लड़ई अऊ झगड़ा ले दूर रहिथें
हम सब झने मन एक हे कहिथें
अऊ कहिथे-छत्तीसगढिय़ां हंव मैं
सबले बढिय़ा हंव मैं
बस्तर के डोंगरी मन मा बड़ लोहाय लोहा भरे
देवभोग के डोंगरी तीर तीर मा हिरा लबालब गडे
सिसम अऊ सागौन के रूख के हरियर
चिरई मन ऐती ओती उडथे भर भर
अऊ कहिथए
छत्तीसगढय़ा हांव मैं
सब ले बडिय़ा हांव मैं
इहां के पानी इहां के माटी
रहईया इहां के इहां के भूईय्या
कहे सोन चिरईय्या हंन मैं छत्तीसगढिय़ा हांव मैं
सब ले बढिय़ा हांव मैं
तपेश जैन