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गुड़ी के गोठ

छत्तीसगढ़ी के विकास यात्रा

‘छत्तीसगढ़ी के विकासयात्रा ल जाने के जरूरत हे तभे छत्तीसगढ़ी के लेखन ह समझ में आही।
छत्तीसगढ़ी ल बोली के मापदण्ड के ऊपर उठाके भासा के मापदण्ड म लिखे जाना चाही। लोकभासा मन ले परिष्कृत ‘हिन्दी’ ल नागरी लिपि के वर्ण माला के सबो अक्षर संग सजा के शुध्द बनाए गीस, वइसने छत्तीसगढ़ी ल घलोक ‘नागरी’ वर्णमाला के सबो अक्षर संग शुध्द बनाए जाना चाही।’
अइसे कहे जाथे के कोनो भी भाखा ल जब प्रकाशन के मंच मिलथे, त वोमा अउ वोकर लेखन म धीरे-धीरे निखार आए लगथे। छत्तीसगढ़ी भाखा संग ये कहावत ह रिगबिग ले देखब म आवथे। बोलइया मन म जिहां राष्ट्रीय अउ अंतर्राष्ट्रीय भाखा के सम्पर्क हें उहें लेखन म घलोक स्तर म बढ़ोतरी के संगे-संग विषय के बढ़वार दिखत हे। एक समय रिहीस जब छत्तीसगढ़ी के नांव म सिरिफ पद्य रचना उहू म पारम्परिक गीत शैली म ही लिखे जावत रिहिसे, उहें अब गद्य लेखन म विषय के विविधता देखे जावत हे।
छत्तीसगढ़ी के लेखन ल कुछ इतिहासकार मन कुछ जुन्ना मंदिर म मिले ताम्रपत्र अउ शिलालेख के माध्यम ले मानथें, उहें कुछ साहित्यकार मन संत कबीरदास के बड़का चेला धनी धरमदास के निरगुन रचना ‘जमुनिया के डार मोर टोर देव हो…’ आदि ले मानथे। फेर रिहिसे, भलुक उत्तर भारत के अन्य बोली मन संग सांझर-मिंझर कर के लिखे गे रिहीसे। भलुक ये कहना जादा अच्छा होही के उन्नींसवीं सदी तक अइसने गढ़न के लिखे जावत रिहीसे। शायद एकर पाछू ये भावना रिहिस होही के इंकर मन के रचना ल आने क्षेत्र के पाठक मन घलोक पढ़ अउ समझ जावयं।
जिहां तक प्रकाशन म छत्तीसगढी क़े आरूग रूप देखे के बात हेतु एला हम डॉ. दयाशंकर शुक्ल के संपादन म प्रकाशित ‘छत्तीसगढ़ी मासिक’ ले मान सकथन। ए समय छत्तीसगढ़ी के आरूग रूप के संगे-संग लेखक मन के संख्या म घलोक बढ़ोतरी देखे बर मिलिस। आज हमन छत्तीसगढ़ी लेखन के पहिली पीढ़ी के रूप म जेकर मन के नांव के उल्लेख बड़ा आदर के साथ करथन सब उही समय के उपजन-बाढ़न आय। एकर बाद डॉ. विनय कुमार पाठक के संपादन म ‘भोजली’ नाव के एक तिमाही पत्रिका आइस, अउ एकरे साथ छत्तीसगढ़ी के लेखन म व्यापकता घलोक आइस। इहां एक बात जरूर उल्लेखित करे जाना चाही के ये समय तक छत्तीसगढ़ी के लेखन ह पद्य तक ही सीमित रिहिसे।
कहूं हम पत्रिका के सम्पूर्ण रूप ल देखिन त सुशील वर्मा ‘भोले’ के संपादन म प्रकाशित छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका ‘मयारू माटी’ ल छत्तीसगढ़ी भाखा के पहिली पत्रिका मान सकथन। काबर ते एकर पहिली प्रकाशित दूनो पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ी मासिक’ अउ ‘भोजली’ मन म सिरिफ पद्य रचना छपत रिहिसे। ये दृष्टि ले वोमन ल सिरिफ पद्य संकलन के ही श्रेणी म रखे जा सकथे, सम्पूर्ण पत्रिका के श्रेणी म नहीं। भाखा विज्ञानी डॉ. बिहारी लाल साहू के बोले ये बात सही लगथे के ‘मयारू माटी’ ही छत्तीसगढ़ी के असली पत्रिका रिहिस, जेकर आज घलो कोनो पूर्ति नइ कर पाइन हें। भले आज वोकर बाद तिमाही ‘लोकाक्षर’ अउ चौमाही बरछाबारी घलोक छपत हे, फेर पत्रिका पढ़े के जेन संतुष्टि होथे, वोला सिरिफ ‘मयारू माटी’ ह पूरा करत रिहिसे। एकर बीच म जागेश्वर प्रसाद के संपादन म साप्ताहिक ‘छत्तीसगढ़ी सेवक’ घलोक छपत रिहिसे, फेर वोकर कुछ पर्व विशेष म निकले वाला अंक मन के छोड़े बाकी मन ला ‘पत्रिका के श्रेणी म शामिल नइ करे जा सकय।’
ये बीच म एक बहुत अच्छा बात ए होइस के इहां के कुछ दैनिक समाचारपत्र मन ‘मड़ई’, ‘चौपाल’, ‘अपन डेरा’, ‘पहट’ आदि के नांव ले छत्तीसगढ़ी म परिशिष्ट निकालत हें। ‘मड़ई अपन आप म एक पूरा छत्तीसगढ़ साहित्यिक अखबार आय जेला, ‘देशबन्धु’ ह 35-36 बछर ले निकालत हावय। एकर मन के प्रकाशन ले ‘मयारू माटी’ संग भरदराए ये गद्य लेखन ह विविध विषय संग देखे ले मिलत हे। वइसे छत्तीसगढ़ी के लेखन ह अब ये परिशिष्ट मन के छोड़े घलोक बहुत अकन पत्र-पत्रिका मन म देखे ले मिलत हे खास कर के छत्तीसगढ़ राज बने के बाद। अउ वोकरो ले जादा राज्य सरकार द्वारा एला राजभासा घोषित करे के बाद।’
फेर अब लागथे के छत्तीसगढ़ी के लेखन ल बोली के मापदण्ड ले ऊपर उठके भासा के मापदण्ड म लिखे जाना चाही। जइसे लोकभासा मन ले परिष्कृत ‘हिन्दी’ ल नागरी लिपि के वर्णमाला के सबो अक्षर संग सजा के शुध्द बनाए गीस। वइसने छत्तीसगढ़ी ल घलोक नागरी वर्णमाला के सबो अक्षर संग गूंथ के शुध्द बनाए जाना चाही, तेमा येला पढ़ाई अउ आने कारज खातिर गैर छत्तीसगढ़ी भाषी जेमन नागरी लिपि ल जानथे उहू मन एला आसानी के साथ अपना सकयं।
सुशील भोले
41-191 डॉ. बघेल गली
संजय नगर टिकरापारा रायपुर