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छत्तीसगढ़ी भाखा

छत्तीसगढ़ी भाखा हे : डॉ.विनय कुमार पाठक

एक हजार बछर पहिली उपजे रहिस हमर भाखा





छत्तीसगढ़ के भाखा छत्तीसगढ़ी आय जउन एक हजार बछर पहिली ले उपजे-बाढ़े अउ ओखर ले आघु लोकसाहित्य म मुंअखरा संवरे आज तक के बिकास म राज बने ले छत्तीसगढ़ सरकार घलो सो राजभासा के दरजा पाए हे। छत्तीसगढ़ी भाखा ल अपने सरूप रचे-गढ़े बर बड़ सकक्कत करे ल परे हे-

पीरा-कोख मा जन्मेे, मया- गोदी मा पले,
माटी महमई धरे अंचरा, छत्तीसगढ़ी भाखा हे।
महानदी लहरा, जेखर मुअखरा,
होंठ देरहौरी गाल बबरा,
छत्तीसगढ़ी भाखा हे।

छत्तीसगढ़ी ह ब्रज-सांही गुरतुर भाखा हे। पूर्वी हिंदी के बोली के रूप मा अवधी अउ बघेली के संग छत्तीसगढ़ी ल जघा दे गे हे। सुराज के पहिली तक एला बोली के रूप मा जानय फेर पचास-साठ बरिस आघू एखर मूल्यांकन होईस अउ एला उपभासा नइ तो विभासा के दरजा दे गईस। ये सब सोध होए ले अउ साहित्य पोठ होय ले माने गईस। काहे के एखर व्याकरन घलो जुन्ना हे अउ एमा पचास-साठ बरिस ले साहित्य-लेखन मा गति जरूर आईस हे। अलग राज बने के पाछू छत्तीसगढ़ सरल उदम बाढ़े लागिस। एला राज्य सरकार राजभासा के दरजा देईस अउ आयोग घलो बना दिस। अब ओहर भासा कहे गईस अउ राजकाज बर हिंदी के संग एखर उपयोग करे माने लिखई- पढ़ई अउ बोलई के भाखा मान लिए गईस। छत्तीसगढ़ ल दक्छिन कौसल अउ महाकौसल कहे जाथे, ए तरा माता कौसिल्या के अवतरे जघा ए आए-

बाल्मीकि, धरमदास, सबाले ल संवारे।
राम के गोड़ ल पटवारे, छत्तीसगढ़ी भाखा हे।

छत्तीसगढ़ी ल दू करोड़ ले जादा मन बोलथें अउ समझथें। एहर लोक व्यवहार के बोली ए अउ एक संग मातृभासा, लोकभासा, संपर्क भासा अउ सरकार डहर ले राजभासा के रूप मा माने के कारन राजभासा घलो मान लिए गे हे। इहां जउन भी बाहर ले आईन, इहां के हो के रहि गिन अउ जउन एखर लूट-खसोट करे बर आईन, उनला ए राज छोड़ के जाना परिस। जउन एला अपन धरती मानिस, ओला इहां के धरती अपन बेटा असन मया-दुलार दिस। एही कारन हे के इहां के संस्किरिति मा सब बर जघा हे, ठउर हे। इहां जउन आईन, मया पाके फिर हो गईन। इहां के भाखा घलोक दूसर भाखा ल चूड़ी पहिरा के, भात खवाके अपन जात मा मिला लिए हे। एही गुन इहां के लोगन मा देखे जा सकत हे तभे तो छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया कहे गे हे।

छत्तीसगढ़ी सबो कोनो बोलथें अउ समझथें घलोक फेर एला बाहिर जाके दूसर मन मेर बोले मा लजाथे अउ ओ मेर उंकर लोक व्यवहार नंदा जाथे, ये बने बात नोहय। सब ल अपन मातृभासा उप्पर गरब करना चाही। ओही तो ओखर चिन्हारी आय। अंगरेजी सिक्छा के परचार हर पूरा देस मा छेत्रीय भासा, लोकभासा अउ बोली ल गंवाय अउ पिछड़ा बताए रहिस तभे तो हमन ला अपन-आप मा दीन हीन जिनगी बिताय अउ छत्तीसगढ़ीपन ल लुकाए के टकर परगे जउन सुराज के सत्तर बछर पाछू घलोक मन म पलत हे, ये बने बात नोहय। राजभासा बने के ये अरथ अब कारयालय मा हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी मा कामकाज करे जाही। आयोग के पहिली अध्यक्छ ह एखर नींव डारिस अउ दूसर ह परसासनिक सब्दकोस बना दिस।




हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश हर मन ल ए राज के मनखे के भावना ल समझत हुए छत्तीसगढ़ी मा फैसला करे के बिनती करे गईस हे। काहे के एखर पहिली माननीय न्यायमूर्ति फकरुद्दीन हर एक फैसला छत्तीसगढ़ी मा दे के इहां के लोगन के भावना के सुआगत करिन। एकरे साथ बेमेतरा के एक अर्जीनवीस हर बैनामा छत्तीसगढ़ी मा लिखके न्यायालय मा कामकाज करे के रसदा खोल दिए हे। परसिक्छन, कारयसाला, संगोस्ठी करके, छत्तीसगढ़ी भासा के ग्रंथ अउ सब्द सागर छापके, मंत्रालय अउ सचिवालय ले परसिक्छन के सुरूआत करके आयोग ह एक बछर मा छत्तीसगढ़ी मा चेतना जगाए हे जेखर ले पूरा परदेस मा एखर हलचल दिखत हे। राजभासा के कामकाज म जउन कमी अउ बाधा हे, तेला दूरिहाए बर आयोग काम करिही। आने वाला चुनाव छत्तीसगढ़ी ल लेके होही। कतकोन विदवान अउ भासाविद् घलो मन लोकभासा ल राजभासा के दरजा देए अउ आठवीं अनुसूची मा अंकवाए के उदिम ल हिंदी के बिकास अनुसूची मा अंकवाए के उदिम ल हिंदी के बिकास बर ठउके नइ मानय। अरे भाई हो? हिंदी के जतका सामरथ लोकभासा बनही, हिंदी ओतके पोठ बनही काहे के डारा-पाना अउ साखा के बढ़ोत्तरी रूख-राई के बढ़ोतरी ये। साखा पेड़ ले अलगियावत कहां हे? जब एखर जादा ले जादा साखा माने लोकभासा आठवीं अनुसूची मा आही तौ हिंदी अपने-अपन रास्ट्रभासा के गरिमा ल बढ़ोही? लोकभासा ल आठवी अनसूची मा नइ लेना सामरथ भाखा के बढ़ती अउ बिकासल रोकना कहे जाही। एखर बर सरकार ल पहल करना चाही, नइ तो राजनीति बलद जाही। आठवीं अनुसूची म अंकाय ले भासा हर जी जाही जउन आज के जुग के मांग हे।भासा- बोली के भेद ल नइ जानने वाला, राजभासा के करतब ल नइ समझने वाला जब नकारात्मक बात करके भासा के राजनीति करथे अउ सकारात्मक सोच कोती ले आंखी मुंद लेथे तौ अइसन मुड़पेलवा अउ अपन कुकरी के एक टांग तोड़ के अपन कहावत- ‘मोर मुरगी के एक टांग’ कहावत के डींग मरैया लोगन ल मालूम होना चाही के आयोग कोनो जादू के छड़ी नोहय जउन तुरते- फुरते सब कर डारय।

डॉ. विनय कुमार पाठक
अध्यक्छ, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, बिलासपुर

(भास्‍कर, बिलासपुर में प्रकाशित आलेख)