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कविता

छत्तीसगढ़ के नारी

मैं छत्तीसगढ़ के नारी औं-२
मया पिरीत के जम्मो रूप,
बाई. बेटी अऊ महतारी औं !!

गउ कस सिधवा जान, अबला झन समझव !
नो हौं मैंहा पांव के पनही,
मोर मन्सा ल झन रमजव !!
लंका जइसे आगी लगाहूं, धधकत मैं अंगारी औं..

तन के गोरस मैं पिआके,
बीर नरायन कस सिरजाथौं !
जिअत मरत के पीरा सहिके,
तब ‘महतारी’ कहाथौं !!
दुरजोधन दुस्सासन बर, मैं टंगिया दुधारी औं…

हर परिवार ल जोड़ें रहिथंव,
मैं ममता के गारा औं !
पिढ़ी के पिढ़ी संग बोहइया,
पबरित गंगा धारा औं !!
अंधरा बर मैं लाठी कस, बांझन बर किलकारी औं….
मैं छत्तीसगढ़ के…….

राम कुमार साहू 
सिल्हाटी (स.लोहारा)
कबीरधाम
मो.नं. 9977535388
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