Categories
कविता गोठ बात

छत्तीसगढ़ ला जनम दिन के बधई

अपन चुनर म जड़ एक नवा सितारा ले।
अउ बछर भर मन भरके तैं इतरा ले।।
कतको ऑंखी देख तोला अइसने फूटत हे।
बचके रहिबे आतंकी अबके खतरा ले।।
नवा नेवरिया के संग सुरू म नीक लागथे।
हो घसेलहा गिनहा बने पसरा बगरा ले।।
बचपने म पग पग म होवत हे धमाका।।
कइसे निपटबो कोन जनी उमर सतरा ले।।
बाहिरी बइरी संग लड़त मारत बनथे।
उबाए परत हे अपने लइका अब थपरा ,ले।।
मोर सोन चिरइया उड़ तैं सुछंद अगास।
धान कोठी के ले दाना अउ जग म बगरा ले।।
छत्तिसगढ़िहा सबले बढ़िया कइसे कहाथे।
जीये ल जानथे चेंदरा म खाके बासी कुंदरा ले।।
मोर डहर ले तोर जनम दिन के बधई।
हरियर पींवरा पीला होय तोर छत्तीस अँचरा ले।।

धर्मेन्‍द्र निर्मल