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कहानी

छत्‍तीसगढ़ी तिहार : छेरछेरा पुन्‍नी

एक समे कोसलपति राजा कल्‍याण साय दिल्‍ली के महाराजा के राज म रहिके राज-पाठराजनीत अउ लड़ई के सिक्‍छा पाये बर आठ बरिस ले रहिन,ओखर बाद सरयू नदी तिर ले बाम्‍हन महराज मन के टोली ल संग लेके छत्‍तीसगढ़ के तइहा के राजधानी रतनपुर पहुंचिन। कोसल के परजा आठ बरिस म अपन राजा ला आवत सुनके अड़बड़ खुस होगेपरजा मन राजा ला परघाये बर गाड़ी-घोड़ापैइदल रतनपुर कोती दौड़ चलिन। राज के जम्‍मो 36गढ़ के राजा मन कोसलपति के सुवागत म रतनपुर पहुच गए। छत्‍तीसगढ़ के जम्‍मो राजा – परजाकल्‍याण साय के जय-जयकार करत महल के दुवारे म सकला के नाचे गाए लगिन।

महल के दुवार म परजा मन राजा कल्‍याण साय के एक झलक पाए बर ताके लगिन परजा के मन म नजराना चिन्‍हारी पाये के आसा घलो रहिस। आठ बरिस ले राजकाज सम्‍हलइया रानी हा पति के परेम के आघू अपन परजा मन ला भुला गे, थोरिकुन देर बाद परजा के गोहार पारे ले रानी ला सुरता आईस । रानी फुलकैना राजा ला छोड़के परजा कोती दौउड़ बढि़सपरजा के अपार भीड़ ला देख के रानी मगन होके महल के अंटारी ले दुनो हाथ से सोना चांदी के सिक्‍का परजा बर लुटाये लगिन। कोसल के धरती म धान के भरपूर पैदावार होये रहिसराजा-परजा दूनों के घर के संगे संग राजखजाना छलक रहय। परजा ला धन के लालसा नहीं रहयउमन तो राजा के आये के खुसी म तिहार मनावत रहें। परजा मन के परेम अउ आनंद म झूमत देखके राजा कल्‍याणसाय हा जम्‍मो 36 गढ़पति मन ला फरमान जारी करिस, के अब ले पूस पुन्‍नी के दिन मोर घर वापस अवइ ला सुरता राखे बर जम्‍मो छत्‍तीसगढ़ म तिहार के रूप में मनाये जाही 

दिन-महीना-बरिस बीत गे राजा के सुरता के इही तिहार कौशल क्षेत्र छत्‍तीसगढ़ म छेरछेरा पुन्‍नी के रूप में मनाये जाये लगिस, अउ नजराना लुटाये के यादी खातिर घर के दुवार म आये नाचत गात मनखे मन ला धान के दान स्‍वेक्‍छा ले, दे जाये लगिस । समय के संगे संग ये परम्‍परा ला बड़का के बाद छोटे लइका मन हा सम्‍हाल लि 

पूस पुन्‍नी तक छत्‍तीसगढ़ के गांव मा धान के मिसई निपट जाथे, सबके कोठार-कोठी धान ले छलकत रहिथे, इही दिन गांवों गांव म लइका मन के टोली घरो घर जाथें अउ छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा ! कहिके चिल्‍लाथेंसबो घर ले धान के दान दे जाथेयेला सकेल के लइका मन गांव के सार्वजनिक गुड़ी-चौपाल म धान ला कूट-पीस के दुधफरा अउ फरा बनाथें अउ जुर-मिल के खाथेखुसी मनाथेंनाचथे गाथें 

चाउंर के फरा बनायेंवथारी म गुडी गुडी
धनी मोर पुन्‍नी मफरा नाचे डुआ डुआ
तीर तीर मोटियारीमाझा म डुरी डुरी
चाउंर के फरा बनायेंवथारी म गुडी गुडी !
………… ‘तारा रे तारा लोहार घर तारा …….
लउहा लउहा बिदा करवजाबो अपन पारा !
छेर छेरा ! छेर छेरा !/ माई कोठी के धान ला हेर हेरा !

संजीव तिवारी

फोटो साभार – तेजेन्द्र ताम्रकार के फ्लिकर ले 

3 replies on “छत्‍तीसगढ़ी तिहार : छेरछेरा पुन्‍नी”

अरन बरन कोदो दरन
जभे देबे तभे टरन
माई कोठी के धान ला हेर हेरा।

छेर छेरा पुन्नी के गाड़ा गाड़ा बधाई।

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