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गीत

जनकवि स्व.कोदूराम’दलित’ जनम के सौ बरिस म बिसेस : ”धान-लुवाई”

चल संगवारी ! चल संगवारिन ,धान लुए ला जाई ,
मातिस धान-लुवाई अड़बड़ ,मातिस धान-लुवाई.

पाकिस धान- अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,
कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी.

धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,
वो जग-पालनहार बिछाइस ,ये सुनहरा बिछौना .

गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय ,
टेंय – टुवाँ के नंगत दूज के चंदा जस चमकावय

दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,
आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के.

मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,
चलो दादा हो !,चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के.

कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,
फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं , छै-छै रुपिया भाड़ा.

लकर-धकर सुत- उठके, माई-पीला बासी खावयं ,
फेर सूर , हँसिया, डोरी धर , धान लुए बर जावयं.

चंदा , बूंदा , चंपा , चैती , केजा , भूरी , लगनी,
दसरी,दसमत,दुखिया,धेला,पुनिया,पांचो,फगनी.

पाटी पारे , माँग संवारे , हँसिया खोंच कमर-माँ,
जायं खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- माँ.

छन्नर-छन्नर पैरी बाजय ,खन्नर-खन्नर चूरी,
हांसत,कुलकत,मटकत रेंगय , बेलबेलहीन टूरी .

भांय- भांय बस्ती हर बोलय ,खेत-खार रुपसावय ,
देख उहाँ के गम्मत , घर के सुरता घलो न आवय.

कोन्हों रंग-रंग के कहिनी-कथा सुनायं लहरिया,
कोन्हों मन करमा फटकारायं,कोन्हों गायं ददरिया.

भौजी के भाई हर नाचय ,पहिरय चिरहा-फरिया,
फेर बटोर करँगा-वरंगा ,वो चरिह्या,दू -चरिह्या.

राम-लखन के पल्टन जस,जब सब बनिहार झपावयं,
चर्र – चर्र, लू – लू के छिन – माँ कतको धान गिरावयं .

सांकुर-सांकुर पांत धरयं ,ते-ते मन तो अगुवावयं,
चाकर-चाकर,पांत धरयं ,जे-जे मन तें पछुवावयं.

काट-काट के धान मड़ावयं, ओरी – ओरी करपा,
देखब-माँ बड़ निक लागय ,सुन्दर चरपा के चरपा.

लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय,
चुकुर – चुकुर नान्हें – बाबू-ला, दुदू पिया के आवय.

ताते च तात ढीमरीन लावय , बेंचे खातिर मुर्रा,
लेवयं दे के धान सबो झिन , खावयं उत्ता-धुर्रा.

दीदी लूवय धान खबा खब ,भांटो बांधय भारा,
अउहा,झउहा बोहि-बोहि के ,लेजय भौजी ब्यारा.

अन्न-पूरना देबी के मंदिरेच साहीं ठौंका,
सुग्घर-सुग्घर खरही गाँजय ,रामबती के डौका.

रोज टपाटप मोर डोकरी-दाई बीनय सीला ,
कूटय-पीसय,राँधय-खावय,वो मुठिया अउ चीला.

धीरेबाने रोज उखानय , मोर बाबा हर कांदी,
क्लेश किसानन के कटही अब,जय-जय हो तोर गाँधी.

घर घुसवा बड़हर ,खेती के मरम भला का जानयं ,
कोन्हों पेरयं जांगर , कोन्हों हलुवा-पूड़ी छानयं .

तइहा के ला बइहा लेगे,आइस नवा जमाना,
कहय विनोबा-चैतौ दादू ! पाछू मत पछताना.

जउन कमाहै , तेकरेच खेती -बारी अब हो जाही,
अजगर साहीं खायं बइठ के,ते मन करम ठठाहीं .

जाड़-घाम,बरखा के दु:ख -सुख ,सहय किसान बिचारा,
दाई – दादा असन डारय ,सबके मुंह-माँ चारा.

पहिनय,ओढय ,कमरा-खुमरी ,चिरहा असन लिंगोटी,
पीयय पसिया-पेज,खाय कनकी-कोंढ़ा के रोटी.

जेकर लहू-पसीना लक्खों रंग-महल सिरजावय ,
सब-ला सुखी देख,जे छितका कुरिया-माँ सुख पावय .

अइसन धरमी चोला के गुन,जीयत भर हम गाबो,
सोला-आना सहकारी खेती-ला सफल बनाबो.

पावयं सब झन अन्न-वस्त्र ,घर-कुरिया,रुपिया-पैसा,
सुखी होयं सब पालयं घर-घर, गइया,बैला,भैंसा.

रहय न पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना.
सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना.

प्रेषक – अरुण कुमार निगम