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कविता

जब तोर सुरता आथे

दाई ओ! जब तोर सुरता आथे,
तब मोला लागथे-
तैं ह मोरे तीर म हस,
नई गे हावस दुरिहा।
जब-जब हताशी म आंसू ढारथंव
ते ह अपन अंचरा के कोर म पोंछ देथस। कहिथस- ”झिन रो बेटा, मे ह तोर करा हंव हतास झिन हो।
जा, बने पुलकत-कुलकत काम कर।”
तोर आशिर्वाद ल पाके, मोर मन ह जुड़ा जाथे मेह भगवान सोज इही गोहरावत रथौं-
”मोर फेर जनम होही त तोरे कोख म जनम लेवां। सिरतोन कहत हांवा दाई!” 
राघवेन्द्र अग्रवाल
(खैरझटा ),बलौदाबाजार
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