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कहानी

जयलाल कका के नाच

जयलाल कका ह फुलझर गॉव म रहिथे। वोहा नाचा के नाम्हीं कलाकार आय। पहिली मंदराजी दाउ के साज म नाचत रिहिस। अब नई नाचे । उमर ह जादा होगे हे। बुढ़ुवा होगे हे त ताकत अब कहां पुरही । संगी साथी मन घलो छूट गे हे। कतको संगवारी मन सरग चल दिन। एक्का दुक्का बांचे हे, तउनो मन निच्चट खखड़ गेहें। गॉव के जम्मों लोगन वोला कका कहिथें। सब छोटका बड़का वोला गजब मान देथें। कतरों झन रोजाना वोकर तीर म संकलाथें अउ वोकर गोठ बात ल सुनथें। तईहा जमाना के वोकर बात ल सुन के सब झन अड़बड़ मजा लेथें। आज घलो गॉव के पन्दरा-बीस झन जुरियाये हें। वोकर घर के अंगना म पलास्टीक के जठाये बोरी म सब बईठे हें। जयलाल कका ह जुन्ना बात ल सुरता करके बतावत हे:- ’’सुनत हव गा ! बाबू हो? इही गॉव म हमर नाच पाल्टी के नाचा होय रिहिस हे। एक बेर नहीं! कई बेर। गॉव के भीतर चौंक म। अनसम्हार भीड़ होवय। एक हजार मनखें ह हेल्लामल्ला बईठ जांवय। बहू-बेटी ,दाई-माईं एक डाहर बइठें अउ दूसर डाहर मरद मन बइठें। सब झन मरजाद के खियाल ल राख के बइठंय।’’
कका के बात ल सुन के गंगाराम ह किहीसः-’’ कका ! अब तो उंहां पचास आदमी घलो नई बइठ पाहीं। चारों मुड़ा ले तो लोगन मन कब्जा कर लेहें। हांथ भर ह, बीता बरोबर होगे हे। पहिली के बड़का चंउंक अब नानकुन होगे हे। इही गॉव के जम्मो गली चाकर-चाकर रहय। दू ठन बईलागाड़ी एके संघरा गुजर जावंय। अब तो दू ठन फटफटी मन घलो नई निकलन संकय।’’
’’ बने कहत हस बेटा! जउन बखत बरात के परघौनी होवय तब बारा बईला के घेर म हम मन नाचन। नाचत-नाचत गिदगिदा के दउंड़न, फेर का मजाल के कोनो ल थोरको धक्का लग जातीस?’’ जयलाल कका हा किहीस।
यहा बात ल सुनते साठ मोतीराम ल घलो थोकिन रोस चढ़गे। वोहा उंच अवाज म बोलिसः- ’’ अब तो गली मन अइसन सांगुस होगे हे के कहूं एक ठन गोल्लर आ जही त वोकर बाजू ले गुजरना मुसकुल हो जही। सब झन गली ल घेर डारे हें। आगू डाहर बढ़ा – बढ़ा के मकान बना डारे हैं।’’ जयलाल कका ह लम्बा सुआंसा ले के उदासी म बोलिस:- ’’ इही बात के तो दुख हे बेटा! मोर फुलझर गॉव ! काहत लागे। अतराब म सदा दिन के नाम्ही रिहिस हे। इहां भाईचारा रिहिस। गजब के एक्का रिहिस। अब तो बात बात म ठेंगा निकल जाथे। कोनों काकरो ल कोनों सुनबे नई करंय। सब मनमानी करत हे।’’
मनसुखलाल घलो रोजेच्च कका के डेरौठी म गोठबात सुने बर आथे। वोहा तीस बछर के गबरू जवान हे। पढ़े लिखे हे। कका के पीरा ह वोकर हिरदे म उतरगे। तेकरे सेती जानकारी देये बर किहीस:- ’’ कका ये मामला म कई बेर गॉव म बईठका होगे हे।
सब झन कब्जा छोड़े के बात तो करथें फेर छोड़े कोनो नहीं। एक दिन तहसीलदार ह घलो आये रिहिस। गली के नाप जोख करिस। सब झन ला समझाइस बुझाइस। आगू म सब हव-हव किहीन पाछू सब मिटका दिन।’’ जयलाल कका ह मनसुख ल जोस देवाय बर किहिस:-’’ बेटा हो ! कोनों तो बघवा बनव ! आगू आवव अउ सुधारौ ये गॉव ल।’’ कका के जोस ल देख के मनसुख ह पूछिस:-’’ त तहीं बता न कका ? कइसे सुधारबो तउन ल?’’
जयलाल कका ह मनसुख के भाव ल जान के समझाय लागिस:- ’’देख बेटा! अवइया छे महिना पाछू ग्राम पंचायत के चुनाव होवइया हे। तंय आगू आ! चुनाव लड़। सरपंच बन के गॉव ल अंजोर दे। अनियाव करइया मन के आगू म बघवा बन के गरज।’’
कका के सुलाह ह मनसुख ल भा गइस। वोहा अभीन ले चुनाव के तियारी म लग गे। छे महिना बाद म चुनाव होइस। मनसुख के मिहनत ह रंग लाईस। वोहा भारी वोट पाके जीत गे। अब वोहा फुलझर गॉव के नवा सरपंच बनगे। आसीरबाद लेये बर जयलाल कका के घर म पहुंचगे। कका ह अघात खुश होके वोला आसीस दीस अउ किहीस:-’’ बेटा ! सदा भलई के काम करबे। अच्छा काम कर अउ नंगत के नाम कमा। मोर बात ल भुलाबे झन। अब सुधार दे गॉव ल।’’ कका के बिचार ल सुनके मनसुख ह फिकर म पड़गे। वोहा सोंचे लागिस के कइसे तरहा ले मय ह गॉव ल सुधारौं? अइसने सोंच बिचार करत महिना बीतगे। एक दिन मन म पक्का ठान के ग्राम सभा बलवइस। नवा सरपंच के नेवता पाके जम्मों गॉव भर के लोंगन मन संकला गे। अब मनसुख ठाढ़ होइस अउ दूनों हांथ ल जोर के अरजी करिस:-’’जम्मों भाई बहिनी हो! गॉव के चौंक अउ गली म तुमन जउन कब्जा करे हव तउन ल तुरते छोड़ देवव । सब अपन अपन हद म राहव।’’
यहा बात ल सुनीन तांहने सभा म हल्लागुल्ला मात गे। एक झन किसान ह खड़ा होके किहीस:-’’ सरपंच जी! तोर ददा ह तो घलो गली म कब्जा करे हे। चार हांथ भुंईया ल घेरके मकान बनाये हे। पहिली वोकर कब्जा ल तो हटवा !’’ किसान के गोठ ल सुनके मनसुख ह अकबका गे। ये मरम ल तो वोहा नई जानत रिहीस हे। थोरिक सोच बिचारके बोलिस:- ’’ ठीक हे भाई ! अगर मोर ददा ह कब्जा करे हे त काली मंय ह पटवारी ल बलवा के नाप जोख करवाहूं। अउ जतका भुंईयां म कब्जा हे तउन तुरते छोड़ दूंहूं। मोर मकान के कब्जा वाले हिस्सा ला फोर के गिरा दूहूं। मय ह सरपंच हरौं। ये पंचायत के मुखिया हरौं। मोर फरज पहिली बनथे। फेर अतका बचन देवव के मोर कब्जा छोड़ते साठ का तहूं मन अपन कब्जा ल छोड़ देहू?’’ सभा म सकलाय जम्मों झन हांथ उठाके एके सुर म बोलीन:- ’’ हव ग ! हमू मन अवैध कब्जा ल तुरते छोड़ देबो!’’
अतका सुन के मनसुख ह गदगद होगे । वोहा अपन दूनों हाथ ल उपर उठा के किहीसः- ’’ ठीक हे ! काली मय ह कब्जा छोड़े के सुरूआत करहूं।’’
दूसर दिन सरपंच मनसुख ह अपन बचन के पालन करिस । पटवारी ल बला के अपन घर के नाप करवाइस। चउंक के चार हाथ भुंईया ह अवैध कब्जा माने गीस। वोहा तुरते मजदूर लगा के अपन घर के देवाल टोरवा दीस। यहा चरित्तर ल देख के सब झन सन्न रहिगे। फेर का करतिन ? बचन देये रिहीन हे। एक के बाद एक सबके घर के नापजोख होइस। सब ल बता दे गीस के वोहा कतना भुंईंया ल घेरे हे। एक हप्ता के भीतर जम्मों अवैध कब्जा ल लोगन मन छोड़ दिन। फुलझर गॉव पहिली असन जस के तस बनगे। गली खोर सांगुस होगे रिहीस हे तउन अब चाकर – चाकर होगे। नाचा पेखन होय के जुन्ना ठउर, माने गॉव भीतर के मेल्ला चंउक पहिली जइसन मेल्ला होगे। सब डाहर सोर उड़गे। फुलझर गॉव म भारी उलट-फेर होगे। नवा पीढ़ी के सरपंच मनसुख ह तो कमाल कर दीस। जयलाल कका के छाती ह खुशी म फूल गे। वोहा खुद मनसुख के घर म चल दीस अउ किहीस:-’’ बेटा मनसुख तंय बड़ जबर काम करके देखा देस। तंय जुग-जुग जी बेटा। असली बात तो इही हरे – दूसर ल सुधारे के पहिली खुद सुघरौं। तब काम बनथे। जा बेटा मुनादी करवा दे। आज के रात मंय ह अपन जिनगी के आखरी नाच नाचहूं। उही चंउक म पाल-परदा लगवा दे। आज मोर हिरदे म अघात अनन्द समाये हे।’’
सरपंच मनसुख ह सब तियारी करके गॉव म मुनादी करवा दीस। चारों डाहर खुशी के बड़ोरा उड़े लागीस। रात के ठीक दस बजे कका ह अपन बजगरी संगवारी मन संग मंच म हाजिर होगे। चंउक म मनखे मन के सइमो – सइमो करे लागिस। नाच शुरू होइस। कका के मीठ अवाज ल लाउड स्पीकर ह दूरिहा-दूरिहा तक बगराय लागिस। कका ह बिधुन होगे राहय। नव जवान असन जोस कका म आगे राहय। अंतरा के बाद ठेही अउ झमाझम नाच।
आज अलबेला दाउ !
छई के रहव बारो मासे ……..
पंगपंगहा बिहनिया के होत ले जयलाल कका के गाना चारों मुड़ा म बगरत रिहीस।

डॉ.दादूलाल जोशी ’फरहद’
मोबा: 94061 38825

2 replies on “जयलाल कका के नाच”

जय होहार, “फरहदजी” बड सुघ्घर लगीर लगीस नचकरहा के किस्सा एक कलाकार के सम्मान म आप रचना रखेव आप ला बधाई अउ धन्यवाद

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