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कविता

जय ३६ गढ़ महतारी

जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी
फिरतु हाँ फिलिप होगे
हवय बड़ लाचारी
ओकर घर चुरत हे बरा,सोहारी
मोर घर माँ जुच्छा थारी
जय जय ३६ गढ़ महतारी

खेत खार बेचे के फैले हे महामारी
लुट-लुट के नगरा कर दिस
नेता अऊ बेपारी
गंवईहा मेट हे दारू मा
बेचावत हे लोटा थारी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी
मोर मन के पीरा ला
कैसे मै सुनावँव
चारों मुडा लुट मचे हे महतारी
तोलो कैसे मै बचावँव
मोर जियरा जरत हे भरी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी

आपके संगवारी
ललित शर्मा
राष्‍ट्रीय महासचिव
अर्टिसन वेलफेयर ओआरजी. न्यू दिल्ली
अभनपुर के रहवैया
मोर ब्लॉग हे –

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