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कविता

जाड़ के महीना

आ गे जाड के महीना , हाथ गोड जुडावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह , गोरसी ल दगावत हे ।
पानी ल छुत्ते साठ , हाथ ह झिनझिनावत हे ।
मुहूं म डारते साठ , दांत ह किनकिनावत हे ।
तेल फुल चुपर के , लइका ल सपटावत हे ।
कतको दवई करबे तब ले , नाक ह बोहावत हे ।
नावा बहुरिया घेरी बेरी , किरिम ल लगावत हे ।
पाउडर ल लगा लगाके , चेहरा ल चमकावत हे ।
गाल मुहूँ चटकत हावय , बोरोप्लस लगावत हे ।
एड़ी हा फाट गेहे , अब्बड़ के पीरावत हे ।
आगे जाड़ के महीना , हाथ गोड़ जुड़ावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह , गोरसी ल दगावत हे ।

महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com