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कविता

जिनगी के का भरोसा

जिनगी के का भरोसा कब सिरा जही
तेल के बढ़ात देरी हे दीया बूता जही
दुःख-सुख म सबके काम आ रे मनखे
इहि जस तोर चोला ला सफल बनाही

झन अकड़बे पइसा के गुमान म कभू
समय के लाठी परही त सब बदल जही
एखर थपेड़ा ले धनमान होथे कंगला
किरपा होहीे त कंगला, धनमान बन जही

जुरमिल रईबे त जम्मो दुःख लेबे झेल
अजुरहा बर काँकर घलो पहाड़ बन जही
अपन बर सब जिथे ,दूसर के घलो सोंच
दुःख के नीरस सुरूज हा घलो ढल जहि

झन फस चारी-चुगली के मेकराजाला म
तोर पुन परताप जम्मों अभीरथा हो जही
सुरूज कस नही ,अपन पुरती तो बर के देख
दुनिया ले एक दिन अंधियार मिट जही|
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सुनिल शर्मा
देवांगन पारा(शिक्षक कॉलोनी)
थान खमरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
रचना दिनाँक 9/4/2015,बिरस्पत

10 replies on “जिनगी के का भरोसा”

ना जाने हमर जमाना ला काय होगे. आप मन के प्रयास बने लगीस. राम राम.

बड़ सुघ्हर रचना हे सुनिल भैया!

बहुत बढ़िया शर्मा जी आपके लेख ल पढ़ के मन गद गद होगे

बहुत बढ़िया रचना हे
शर्मा जी बधाई हो

आप जम्मो झन के मया अउ दुलार बर धन्यवाद ……छत्तीसगढ़ी जियव….छत्तीसगढ़ी बोलव…छत्तीसगढ़ी बर जउन हो सकय अपन डाहर ले करव भैया हो इही जम्मो भाई मन ले अपेक्षा अउ गोहार हे….राम राम…जय छत्तीसगढ़ महतारी

आप जम्मो झन के मया बर धन्यवाद भाई हो……मया बनाए रखहू…जय छत्तीसगढ़ महतारी……..

छत्तीसगढ़ी बोलव..छत्तीसगढ़ी लिखव…छत्तीसगढ़ी जियव

छत्तीसगढ़ी बोलव..छत्तीसगढ़ी लिखव…छत्तीसगढ़ी जियव

जम्मो भाई मन ला जय जोहार

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