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कविता

झंडा फहराबो

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हमर देश होईस अजाद,
आजे के दिन,
आवव संगी झूमे नाचे बर जाबो।
जगा जगा झंडा फहराबो,
अऊ आरूग तिहार मनाबो।
लईका लोग अऊ सियान,
सुन ग मोर मितान,
संसकिरती अऊ माटी के,
मान ल सुग्घर बढ़ाबो।
हमर सियान के सियानी रद्दा म,
सोजे सोज जाबो।
अतलंगी करैया मनखे ल,
मया के भाखा सिखाबो।
पुरखा के हमर सपना ल,
मिर जुर के संजोबो।
जग जग ले होवय ऊँजयारी,
झन रहाय कोनों मुड़ा अंधियारी।
कोनों मत रहाय फाका म,
ककरो मत होवय लचारी।
सिरतोन म अईसन,
आरूग तिहार मनाबो,
अऊ जगा जगा झंडा ल फहराबो,
आवा संगी झूमे नाचे बर जाबो।
हमर देश होईस अजाद,
आजे के दिन।
-विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
सेक्टर-4 भिलाई

2 replies on “झंडा फहराबो”

रंगबे तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन, किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
झंडा – फहराए बर महूँ – हर जाहौ ऊपर म टेसू – रंग देबे बरेठिन ॥

सादा – सच्चाई बर होथे ज़रूरी भुलाबे – झन छोड देबे सादा- बरेठिन
नील रंग म चरखा कस चक्का बनाबे नभ ल अमरही तिरंगा बरेठिन ॥

बहुत सुंदर, शकुंतला दीदी नभ ल अम्रराही तिरंगा बरेठीन I

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