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कविता

झांझ – झोला

आगी कस अंगरा, दहकय रे मंझनिया ।
धूकनी कस धूकथे, संझा का बिहनिया ।।
हरके बरजे कस, पाना नई खरके ।
आंखी तरेंरे जब, कडके मंझनिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

टूकूर – टूकूर देखे, नवा – नवा बहुरिया ।
भुकूर – भुकूर लागे, धनी मोर लहरिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

चूह चुहागे पछीना, सरी अंग अंगिया ।
जरे घाम भोंभरा, ऐ…ओ परनिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

पियासे हे तन – मन लेवई अउ चिरईया ।
डोंगरी पहाड अउ गांव का सहरिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

झांझ झोला बरसे, आगी के गोला ।
कहां लुकाबो रे, नई बाचे चोला ।।
सांय – सांय करे अमरईया ।
आगी कस अंगरा, दहकय रे मंझनिया ।
धूकनी कस धूकथे, संझा का बिहनिया ।।

रामकुमार साहू ‘‘मयारू’’
ग्राम – गिर्रा (पलारी)
मो.नं. 98261 98219

8 replies on “झांझ – झोला”

garmi ke sughghar chitran karehav mayaru bhai banech maya kart rahav au aani bani ke kavittlikhtech rahav….9617777514

Laklakat gham ma jood chhawn kas lagis he kavita la parh ke, aapke kalam chalat rahay, hum chhawn
Ma judawat rahibo.

जेठ के महीना के बड सुघ्घ्रर वर्णन करे हव ,बड निक लागिस अइसने अउ सुघ्घ्रर कविता के अगोरा म

संपादक जी जय जोहार
मै हा एक ठन (क कहिथे नई जानव) भेजत हंवव ।
एकर पूरा कहानी के आसा हे आप मनसे ।
” जस करनी जस करम गति, जस पूरबल के भाग ।
जम्मू तो वैसे बोले तूम कस बोले काग ।।
सुभाष कुर्रे दल्ली राजहरा
बालोद

जेठ टोनहा
कवित भाई दादूलाल जोशी “फरहद ” जी के “कुछ पंक्ति …..
जेठ टोनहा, रंग सोनहा,
भुईंया म दरार फाड़े हे चारो खूट उजियारे हे …….
झेंगुरा धोखिया, झांज परलोखिया
कईसन कनझट पारे हे…… चारो….
करिया बादर एकमन आगर
कोजनी काबर कति डहर मुखला टारे हे….चारो खूट …..
जरत भोंभरा पलपला मा कांदा डारे हे … चारो खूट उजियारे हे. ,.
सं सुभाष कुर्रे ……

रामकुमार भाई ! बढिया कविता लिखे हावस ग ! तोर कविता ल पढ के , एसी म बइठे हन तिहां
घाम लागे लागिस हे । सम्यक अउ सटीक शब्द संयोजन । मजा आ गे ।

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