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व्यंग्य

टुरी देखइया सगा

हमर गांव-देहात म लुवई-टोरई, मिंजई-कुटई के निपटे ले लोगन के खोड़रा कस मुंह ले मंगनी-बरनी, बर-बिहाव के गोठ ह चिरई चिरगुन कस फुरूर-फुरूर उड़ावत रइथे। कालिच मंगलू हल्बा के नतनीन ल देखे बर डेंगरापार के सगा आय रिहिस। चार झन रिहिन। दू झन सियनहा अउ दू झन नवछरहा टुरा। ठेला करा मोला पूछिस- ‘कस भइया, इहां हल्बा नोनी हावय बर-बिहाव करे के लइक।’ कहेंव- हव, कइसन ढंग के लड़की चाही आप मन ला। एक झन मोट्ठा सगा ह अंटियावत दांत निपोरीस- ‘कुंआरी।’ ओखर हांथी खिसा दांत ल देख के एक हुद्दा लगातेंव तइसे लागत राहे पर का करबे गांव-घर म आये सगा ए, सगा हर सगा होथे अउ लडक़ी देखइया ए काबर के गांव-घर के सबो के बेटी अपने बेटी होथे। सोंचके मन ल मुसेटेंव- ‘हाव सगा हो, चलव लेग देथंव। आगू-आगू मंय, पाछू मं भेंड़ कस मुंडी गड़ियाय सगा मन चलिन। मंगलू हल्बा घर पहुंचेंन।’
बोधन भइया हावय का गा? हूंत करात मंय आगू निंगेंव सगामन ल बेंच खुरसी म बइठे बर इसारा करेंव। टुरा मन बेंच म टुप्प ले बइठिन। लडक़ा के बाप हर खुरसी मं धंसिस। मोट्ठा ह ‘ये दे बने लागथे’ काहत खटिया म हरहा-थकहा गोल्लर कस गोड़ ल लमइस। उही करा चन्नी-सुपा ल चुचकार के इस्टुल म मंय मांढेंव। हुरहा मोर नजर एकझन जवनहा टुरा ऊपर परीस। सुटुर-पुटुर, घुरघुराय कस, पूछी चपके पिला कुकुर सहीं मुंड़ी निहारे बइठे राहै। मंय समझगेंव- ‘बस येखरे निहर ही अब।’ थोरिक देरी के बाद मंगलू के बहू हर दूनों हांथ म लोटा भर पानी धरे निकलीस। पांव-पयलगी होइस। पील्हर के ओधा ले अपन नारी टोंटा के बड़ा बढ़िया उपयोग करीस- ‘कोन गांव के सगा आय मास्टर बाबू?’ ‘घीना करा के डेंगरापार के ताय भवजी मुंह ल लमियायेंव… ‘कांह हे, तुंहर घर के भइया हर, नी दिखत हे। मिंजाई तो सिरागे का। बड़े बबा घलो नइ दिखत हे।’ मोर गोठ के आरो पावत सियनहा मंगलू ह बिगड़ाहा डेक असन बाजिस- ‘हांवव गा। बइठार ना गा सगा मन ला बोधन ह बियारा कोती गेये हे, आवत हो ही।’ चद्दर ओढ़े, गोरसी पोटारे, पीड़हा मं माढ़े मंगलू के फरमान मं हामी भरेंव।
बोधन आइस। जोहार-भेंट होइस। बइठीस। ‘इही आय लड़की के पिताजी’ सगा मन ल बतायेंव। ताहन सगामन बोधन के गोड़ के नख ले मुंडी क़े माईंचोंटई तक झांकिन। अइसे लागिस जइसे इही ला देखे बर आय हे। सगामन के ठउर ठिकाना के गोठ होइस। खेती-किसानी के गोठ होवत राहै तइसने मं लड़की ह इस्टील के ट्रे म गिलास पानी धरे आइस। सबो झन करा ट्रे ल टेंकाइस। आसमानी बरन सलवार सूट सन हल्का गुलाबी दुपट्टा लपेटे मुंड़ी निहुरे लड़की ऊपर सगा मन के आंखी ढुलगे। गिलास मन ऊपर अंगरी के नचई सुरू होगे अउ सबो के ऊपर मोर कन्नेखी नजर राहै। परखत राहवं सबो ला। पंवरी हलावत मोला अपन जमाना के सुरता आवत राहै। कोठा म टंगाय संकर-पारवती के फोटू ऊपर नजर परीस। खालहे म लिखाय राहै ‘लछमी सदा सहाय रहय’ पढ़ के मने मन गुर खाय कोंदा कस मुस्कायेंव। अंते मुंड़ी करे बोधन गोड़ हलावत अपन अंगरी मन ल मुरकेटत राहै। रंधनी कुरिया के भुलकी म मोर नजर थमगे। बोधन के बाई हर भुलकी ले दुआर के ‘आंखों देख हाल’ के मजा लेवत राहै। वो भुलकी के निरमान आज सारथक होइस। लड़की हर सगा मन के पांव परत राहै। मंय गिनत राहंव। एक झन के पांव ह तीन घांव टमरै कुल मिला के अठारा घांव अब सगा मन लड़की के अंग-अलाल नजरे नजर म नपई सुरू कर दीन। मुंड क़े करिया लाम-लाम चुंदी, थोरिक ऊंच कपार, सेल्हई चिरई सहीं कजरारी आंखी, सुआ नाक, खोखमा फूल कस फुंडा-फुंडा गाल ले ले के, पीयंर पंवरी तक लगते कातिक के पिंयर धान अउ काया ह नजरे-नजर म घेरागे। लड़का के बाप हर पूंछिस- ‘तोर काय नांव हे नोनी?’ ‘सुनयना’ सुत सहीं पातर मंधरस कस मीठ भाखा सुन के एकझन जवनहा अपन संगवारी ल, जेखर बर लड़की देखत राहय, देख के गदक गे। ओ लड़का हर लटपट मुस्कइस। मोट्ठा हर पानी पीइस अउ ‘ओम बम’ डकारीस। अइसे लागिस जइसे ये घिंदोल बदन मेंढक ह अपन जिनगी के पहली घांव ढंकारत हो ही अउ आजे बर बचाय रिहिस अपन ओम बफ ला। सबो झन के खुसुर-फुसुर सुरू होगे। हरकत सुरू होगे। लड़का के बाप हर अपन मेंछा ल सोझियाइस। मोट्ठा हर अपन पेट मं आधा सीसी माईलोगन बरोबर अपन पेट मं हाथ रेंगइस। लड़का ह कलेचुप अपन संगवारी ल ‘छिनी अंगरी’ देखइस। दूनो झन बखरी गीन। वो लड़का ह एक गिलास पानी तको सह नइ पाइस। मने मन कहेंव ‘अब लगे रइ ही बाबू, ये पानी पिअई अउ अइसने जवई हा।’ ताहन गांव-गंतरी पूछिक पूछा होइन। नत्ता-गोता जानिक जाना होइन। सगा-सोदर के खोज खबर लेइक-लेवा होवत राहै तइसने मं लड़की ह चाय धरे आइस। दूध के गाढ़ा लदबदहा आदा डराय गुरचाय देख के मोट्ठा के मुंह पंच्छागे। ‘टोंटा बने सेंकाय अस लागही बिया ह आदा डराय चाहा ए।’ काहत ढेंठा ल धरत दू ठन कप ल केंदइस। सुर्र-सुर्र, सुपुर-सुपुर चाय मियुजिक सुरू होगे। चाय चुहकत लड़का के बाप के नजर दंउड़ धूप मं बियस्त होगे। दुआर म माढ़े बीस पच्चीस ठन धान बोरा के थप्पी ल देख के मुस्कइस। वोखर दूनो आंखी के जम्मो हरकत ल मंय कन्नी देखत राहौ। मंहू अपन सटका डियुटी निभावत राहौ। आखिर ‘रमनराज’ के मिडिल इस्कूल के नोखन ले नोकदर्रा गुरूजी आंव। सुपा धरे बखरी जावत बोधन के बाई के गोड़ के दलगिरहा सांटी, कनिहा के करधन, गला, नाक, कान मं सांय-सांय नजर दंउड़इस। परछी के लोहा कस लकड़ी के पील्हर, कुरिया मन के मोठ-मोठ कपाट, अउ कांड़, मिंयार, भदरी सब ला नजरे मं सुंघत राहै। कप ल मढ़ाय के ओखी म पानी देय फुलकंसिया लोटा ल दू घांव उचा-उचा के देखिस। लोटा के बारा म अंगठा ल दू भांवर रेंगइस। चाय पियई के दृस्य खतम होइस।
बोधन के टुरा ह सोंप-सुपारी के डब्बा लाइस। बोधन मोला अमरीस। एक ठन लाइची ल दबायेंव। डब्बा ह अपन करत धरम निभावत आखरी मं मोट्ठा मेर रबक गे। सोंप-सुपारी लउंग-लाइची ल चिमटी-चिमटी धर-धर के हंथेली म उल्दत गीस। सबो ल अपन भरका कस मुंह मं एक्के घांव म खपलीस। कलेचुप एकठन सिगरेट अपन खिसा मं डारिस। बिड़ी ल कान म अरझइस। एकठन सिगरेट ल सुल्गइस। बोधन के घर फयक्टरी के चिमनी खड़े होगे। खेती बाड़ी के गोठ चलते रिहिस तइसने मं लड़का के बाप हर किहिस- ‘ये दे लड़का आय सगा, येखर बर देखत हन। मोर बाबू ये।’
‘हाव भई, ठीक है’ बोधन हर टेटका बनिस।
‘के झन हे लइका मन हा ठाकुर?’ फेर पूंछिस।
‘एक लड़का, एक लड़की’ बोधन निभइस।
‘बिहाव कर बे नहीं सगा?’
‘हाव गा, करबोन।’
‘का उमर हे नोनी के?’
‘इही देवारी म बीस पुरीस हे।’
सबो गोठ ल लड़का सुनत राहै सुटुर-पुटुर करत। अउ ओखर संगवारी ह मुस्मुसात राहै।
‘लड़की पढ़त हे तइसे लागथे?’
‘हाव, येसो बीएससी फायनल मं हे। गनित लेय हे।’
वो लड़का फेर अपन संगवारी ल छिनी अंगरी देखावत एकेझन उत्ता-धुर्रा बखरी चल दीस। सबो झन चुप। लड़का के बाप हर किहिस- ‘अब अइसे सगा, हमर तो जादा किसानी नइ हे। चार झन बाबू, चार झन नोनी हे मोर। इही बाबू के छोड क़े सबो के बर बिहाव होगे हे। लइका मन ल बांटा दे देहंव। अधिया-रेगहा कमाथय। हमन डोकरी-डोकरा ल रइथन इही बाबू सन।’ लड़का के का नांव हे गा सगा? मोरो मुंहू थोरिक खजवइस। हांसे के ओखी करत अपन चार-पांच ठन दांत ल देखावत कइथे- ‘अब काला बताववं जी, आखरी हरे ये हा, झारन-पोसन, येकर सेती येखर नांव पोसन रखत-रखत ‘पुसऊ’ रख देन। में हा गांव म दू पंच वरसीय ले पंच रहेंव। में अटल कांगरेसिया आंव। ये भाजपा सरकार के ढिलाय ले, का करबे मोरे ह ढिल्ला होगे हे। अब कुछु कहीं, येती वोती कर के महूं ह अपन रोजी निकालथंव। मोर बाबू तो जादा नी पढ़े हे। दू घांव दसवी मं फेल होगे। येसो पतराचार म फारम भरे हे। कइसनो कर के येला बारवीं पास करवाहूं। अभी गांव के प्रायमरी इसकूल म सुवीपर पद म लग जाय रथिस, महीं मना कर देंव टार अइसन नवकरी ल कहिके। खेती म घलो येखर धियान नइ हे अउ महूं चाहथंव के खेती-बारी ले दुरिहा राहै। ये मा कुछु मजा नी हे। गोठ चलते रिहिस तइसने मं मोट्ठा हर मोला बखरी कोती इसारा करीस। गेंव। लड़का ल कइथे- ‘कइसे रे पुसऊ, लड़की पसंद हे नी रे। लड़की ह रंग-रूप मं, उमर म बने हे, पढ़े-लिखे घलो हे।’ लड़का के हक्का-बक्का बंद। बखरी के अवई-जवई मं निंचोय चेंदरी अस निथरगे राहै। पोसवा बिलई पिला कस ओखर हालत राहै। बिड़ी सुहलगावत मोट्ठा हर मोर मेर आइस, तुकबंदी मारत दांत निपोरत गिजगिजइस- ‘अब देख गुरुजी, आपके ऊपर हे, आप आव सटका, लगाहू एकाध झटका, फेर हमर काम नी अटका, पक्का हे आपके दू ठन पटका।’ मंय कहेंव- ‘सगा, ये तो मोर हाथ के बात नो हे। मंय अपन काम कर देंव।’ वोखर हांथी सरीर के भंइस्सा विभाग ल तब टमरेंव जब बखरी मं फेंकाय चेपटी सिसी ल धर के सुंघिस अउ भांडी ऊपर खड़े बासत कुकरा ल देख के जीभ ले अपन दूनो ओंठ ल लपेटीस- ‘येखर टंगरी म मजा आ ही साले हा।’ बखरी ले आयेन। लड़का के बाप ह बोधन ल कइथे- ‘हमर कोती ले ‘ओके’ हे सगा। आप बताहू, देरी आप डहर ले हे। हमर कोती हे ‘हन्डरेड परसेंट’ जम गे।’ बोधन कइथे ‘ले ना सगा, सोंच विचार के बताबोन, हाव नहीं के खबर पठोबोन।’ ‘ले ठीक हे’ काहत सगा मन उठिन। लड़का तो सट ले खोर निकलगे। लड़का के बाप ह फेर कइथे- ‘नांव-वांव रास-पाटी के चिंता झन करबे सगा। सब जमाबोन। मोट्ठा हर फेर एक ठन बिड़ी धरिस डब्बा ले, सुलगइस अउ माचिस ल खिसा मं डार लीस। लड़का के बाप हर खोर-मुंहाटी के कपाट अउ चउंखट ल टमरत कइथे- ‘सइगोन के हरे तइसे लागथे, बढ़िया मजबूत हे बिया हा। संबंध जम जतिस ते बने रिहिस। ही… ही… ही…।’

टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’
बालोद

5 replies on “टुरी देखइया सगा”

कतिक सुघ्घर रचना हावय, सिर्तोन मे अएस्नेच होथे…..

Majaa aa ge bhaiyya aap ke biyang la padh ke,mahu har apan bar khojat haw au esnech hothe.mola ghalok ekhar anubhav hoge he.jay johar. MURLI GAHARWAR

टीकेश्वर जी,निक लागिस आपके कहिनी ल पढ़के,अईसनेच तो होवय गाँव गंवई मा I

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