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अनुवाद नाटक

ठेंसा

जान चिन्हार:
सूत्रधार, सिरचन, बेटा, दाई, नोनी, बड़की भौजी, मंैझली भौजी, काकी, मानू
दिरिस्य:1
सूत्रधारः- खेती बारी के समे, गांॅव के किसान सिरचन के गिनती नी करे, लोग ओला बेकार नीही बेगार समझथे, इकरे बर सिरचन ला डोली खेत के बूता करे बर बलाय नी आंय, का होही ओला बलाके? दूसर कमियामन डोली जा के एक तिहाई काम कर लीही, ता फेर सिरचन राय रांॅपा हलात दिखही, पार मा तौल तौल के पांय रखत, धीरे धीरे, मुफत मा मजूरी दे बर होही, ता अउ बात हावय।——- आज सिरचन ला मुफतखोर, कामचोर, चटोर कह ले कोन्हों, ओकरो एक दिन समें रिहिस, फेर ओकर कुरिया तीर बड़खा बड़खा बाबूमन के सवारी बंॅधे रहय, ओला मनखेमन पूछतेच नी रिहिन, ओकर खुसामद घलो करें।——– अरे! सिरचन भाई! आप तो तुंहरेच हाथ मा ये कारीगरी रह गे हावय, इलाका भर मा, एको दिन समे निकाला, काल बड़खा ददा के चिट्ठी आय हावय सहर ले, सिरचन करा ले ऐ जोेड़ा चिक बना के भेजिहा।
दिरिस्य: 2
ठौर: हवेली
दाईः- जा बेटा, सिरचन ला बला के लानबे।
बेटाः- भोग मा का का लागही?
दाईः- हांॅसके कइथे – जा जा बेचारा मोर काम बर पूजा भोग के बात नी करय कभू।
बेटाः- नीही दाई, बाम्हनटोली के पंचानंद चैधरी के छोटे लइका ला एक घ मोर आघू मा बेपानी करे रिहिस सिरचन हर, तोर भौजी नख ला खोंटके तरकारी परोसते अउ अमली के रस डाल के कढ़ी ला तो हामन कहार कुम्हार के घरवाली बनात हे, तोर भौजी काहांॅ ले बनाईस।
दिरिस्य: 3
सूत्रधार:- मोथी घास ले औ पटवा के रंगीन सीतलपाटी, बांॅस के तीली ले झिलमिलाती चिक, सातरंग के डोर के मोढ़े, भूसी चुन्नी राखे बर मूंॅज की डोरी के बड़खा बड़खा जाला, नंगरिहा मन बर ताल के सूख्खा पान के छतरी टोपी अउ इसने बड़ काम हावय जेला सिरचन के छांॅड़ कोन्हों नी जानय, ये दूसर बात हावय आप गांव मा इसने काम ला बेकाम के काम समझथे, बेकाम के काम जेकर मजूरी मा अनाज अउ पैसा दे के कोन्हों जरूरत नी ए, पेट भर खवा देवा, काम पूरा होय मा एकाध जून्ना फून्ना कुरता देके बिदा करा, वो कुछू नी कहय, कुछू नी किही इसने बात घोलो नी ए, सिरचन ला बलाइयामन जानत हावय, सिरचन बात करे मा घलो सिरचन हावय, मोर बात हर कोन्हों बिस्वास नी आत होही ता देखा।
दिरिस्य: 4
नोनीः- रूक! मैंहर दाई ला कहत हों, अमका बड़खा बात।
सिरचनः- बड़खा बात हावय, बेटी! बड़खा लोगमन के बातेच हर बड़खा होथे, नीही ता दू पटेर के पाटीमन के काम सिरिफ खेसारी के सत्तू खवाकर कोन्हों करवाथे भला? येला तोर दाई हर करवा सकत हावय बबूनी!
दिरिस्य: 5
दाईः- सिरचन ला देखके,- आवा सिरचन आवा, आज माखन मथथ रेंहे, ता तुंहर सूरता आगिस, घी के करोनी के संग चिवरा तुंहला अबड़ पसंद हावे ना, अउ बड़खा बेटी हर ससूराल ले किहिस हावय, ओकर नंनद रिसाय हावय, मोथी के सीतलपाटी बर।
सिरचनः- मूंहू ले लार ला ढोंकत- घी के कहरई सूंघ के आय हावों काकी!नीही ता इ सादी बिहा के मौका मा दम मारे के घलो फुरसत काहांॅ मिलत हावय?
दिरिस्य: 6
सूत्रधार:- सिरचन जाति के कारीगर हवय, मैंहर घंटों बइठ के ओकर काम करे के ढंग देखे हावों, एक एक मोथी बउ पटेर को हाथ मा लेके बड़े जतन ले ओकर कुच्ची बनाथे, फेर कुच्चीमन के रंगे ले सुतली सुलझाय मा पूरा दिन खतम, काम करत बेरा ओकर लगन मा थोरकुन बाधा पड़ही ता गहुंॅआ सांॅप जइसने फुंॅकारही, फेर दूसर ले काम करवा लेवा!सिरचन मूंॅहजोर हावय, कामचोर नी होय। बिना मजूरी के पेटभर भात मा काम करवइया कारीगर! गोरस मा गूर नी मिलही कोनें बात नीए, फेर बात मा थोरे झार वोहर बरदास्त नी करे सके, सिरचन ला लोगबाग चटोर घलो कइथे, तली बघारी तरकारी, दही के कढ़ी, साढ़ीवाला गोरस, ये सबो ला ले आनबे, फेर सिरचन बलावा, दूम हिलात हाजिर हो जाही, खाय पीये मा चिक्कन मा कमी होही, ता काम के सबो चिकनाई खतम। काम आधा करके उठ जाही, आज तो आप अधकपारी ले माथा छनछनात हावय। थोरकुन बांॅचे हावय, कोन्हों अउ दिन आके पूरा कर दिंहा, — कोन्हों दिन माने कभू नीही।
दिरिस्य: 7
बड़की भौजीः- मानू नंनद खत आय हावय।
मानूः- काहां ले?
बड़की भौजीः- काहांॅ ले , के का मतलब, तोर ससूराल ले दुल्हा हर लिखे हावे, मानू के संग मिठाई नी आही, कोन्हों बात नीए,
मानूः- जल्दी जल्दी पढ़ा न, अउ का लिखें हें।
बड़की भौजीः- धीरज धरा महारानी, लिखें हें, तीन जोड़ी फेसनेबल चिक अउ पटेर की दू सीतलपाटी के बिना मानू आही ता बैरंग वापस।
दिरिस्य: 8
दाईः- देख सिरचन! इ दारी नावा धोती दिहां। असली मोहरछाप के धोती। मन लगाके इसने काम करा कि देखेवइया मन देखत रह जांय।
सिरचन:- काकी हामर काम मा कभू खोट नी मिलय, मैंहर काम ला तन मन लगाके करथों।
दाई चल देथे, सिरचन काम मा लग जाथे, डेढ़ हाथ के बिनाई ला देखके मनखेमन समझगिन कि इ बेरा एकदम नावा फैसन के चीज बनत हावय, जो आघू कभू नीं बनीस हे।
मैंझली भौजीः- पहिली इसने जाने रइथे मोहरछाप के धोती दे ले बढ़िया चीज बनथे ता महूंॅ मोर भईददा ला कह देथें।
सिरचनः- मोहरछाप धोती के संग रेसमी कुरता देय मा घलो इसने चीज नी बने बोहरिया, मानू दीदी काकी के छोटे बेटी हवय, मानू दीदी घर के दामाद अफसर हवय।
काकीः- काकर मेर गोठियात हस बोहरिया? मोहरछाप धोती नीही, मूंॅगिया लड्डू! बेटी के बिदाई के बेरा रोज मिठाई खाय बर मिलही, नी देखत हस।
दिरिस्य: 9
बेटाः- दाई आज दूसर दिन चिक के पहिली पांॅति मा सात तारा जगमगात हावें सात रंग के। सतभैया तारा, आज सिरचन ला कलेवा कोन दे हवय, सिरिफ चिंवरा अउ गुर।
दाई:- मैंहर एकेझिन काहांॅ काहांॅ काला काला देखों, अरी मैंझली सिरचन को बुंॅदिया काबर नी देत हस?
सिरचनः- मूंॅहू मे चिंवरा भरे, बुंॅदिया मैंहर नी खांव काकी!
मैंझली भौजी कड़कड़ात आके मूट्ठी भर बुंॅदिया सूपा मा फेंक के चल देथे।
सिरचनः- पानी पी के,- मैंझली बोहरिया, आपन मइके ले आय मिठाई ला इसने हाथ खोल के बांॅटथस का?
मैंझली भौजी रोवत हवय, काकी दाई करा जाके चबाथे।
काकीः- छोटे जात के मुंॅहू घलो छोटे होथे, मुंॅहू लगाय मा मुंड़ी मा चेघथे। काकरो मइके ससुराल के गोठ काबर करिही ओहर?
दाईः- कड़कके- सिरचन तैंहर काम करे बर आय हस काम कर, बोहरिया मन करा बतकुट्टी करे के का जरूरत। जे चीज के जरूरत हे मोर करा कह।
दाई चल देथे, सिरचन के मुंॅहू लाल हो गे, ओहर कोन्हों जवाब नी दीस, बांॅस मा टांॅगे आधा चिक मा फान्दा डाले लागिस।
मानूः- पान के बीड़ा देत,- सिरचन बोबा, काम काज के घर! पांॅच किसिम के लोग पांॅच किसिम के बात करिही, तैंहर काकरो गोठ मा कान झन देबे।
मानू चल देथे।
सिरचन:- छोटी काकी, थोरकुन आपन डिबिया के गमकौआ माखुर तो खवाबे, बड़दिन होगिस–
काकीः- मसखरी करथस? तो बाढ़े जीभ मा आगि लगे, घर मा घलो पान अउ गमकौआ माखुर खाथस? चटोर काहांॅ के!
सिरचन आपन सबो कुछू ला धर के अंगना से बाहिर निकल गे।
काकी:- ददा रे ददा! अतकी खरखर! कोन्हों मुफत मा काम नी करय, आठ रूपया मा धोती आथे। इ मुंॅहझौंसे के मुंॅहूंॅ मा लगाम हे ना आंॅखि मा सील। पैसा खरच करे ले सैकड़ो चिक मिलही, बातरटोली के मईलोगन मन मुंॅड़ी मा गट्ठर बोहके खोल खोल घूमत हवय।
मानू कुछू नी किहिस, कलेचूप आधा चिक ला देखत रिहिस।
दाईः- जान दे बेटी, जी छोटे झन कर मानू! मेला ले बिसाके भेज दिंहा।
दिरिस्य: 10
बेटाः- सिरचन बोबा चला!
सिरचन:- बबुआजी आप नीही! कान धरत हों आप नीही! मोहरछाप धोती लेके का करिहांॅ, कोन पहिनीही। ससुरी खुद मरीस, बेटा बेटीमला घलो ले गिस, बबुआ मोर घरवाली जिन्दा रथिस ता मैंहर इसने दुरदसा भोगथें, ये सीतलपाटी ओकरे बिने हावय, इ सीतलपाटी ला छू के कहत हों, आप ये काम नी करांे, गांव ीार मा तुंॅहरे हवेली मा मोर कदर होत रिहिस,आप का?
बेटाः- मने मन- समझ गें कलाकार के दिल मा ठेंसा लगे हवय, वोहर नी आय।
दिरिस्य: 11
बड़की भौजी:- आधा चिक मा रंगीन छींट के झालर लगात- ये घलोक बेजा नी दिखत हवय मानू?
मानू कुछू नी किहिस
बेटाः- काकी अउ मैंझली भौजी के नजर नी लाग जाही ऐमा घलो।
दिरिस्य: 12
ठौर: टेसन
सिरचनः- बबुआ जी!
बेटा:- का हे?
सिरचन:- पीठ मा लादे बोझा ला उतार के, – कूदत आय हावों, दरवाजा खोला,
मानू दीदी काहांॅ हावय, एक घ देखों।
मानूः- सिरचन बोबा!
सिरचनः- येहर मोर लंग ले हवय, सबो चीज हवय दीदी, चिंक अउ एक जोड़ी आसनी कुश ।
मानू दाम देबर धरथे, सिरचन हर जीभ ला दांॅत मा काट के दूनों हाथ ला जोड़ दिस, मानू किल्ला किल्ला के रोवत हे, बेटा बंडल ला छोरके देखथे, इसने कारीगरी, इसने बारीकी, रंगीन सुतलीमन के फान्दा के काम, पहिली बार देखत रिहिस।
परदा गिरथे।

ठेस कहानी- फणीश्वर नाथ रेणु
एकांकी रूपान्तरणः- सीताराम पटेल