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कविता

डुमर डारा : कबिता

कोचके भौजी भइया ला
कइबे जाके सब पारा
आज मड़वा गड़ही भाई के
काटे जाहा डुमर डारा।

हरियर-हरियर छाय लागही
ढेड़हा-ढ़ेड़हीन ल जागे लागही
सजाही मंगरोहन पिढुहा

फुफुदीदी धरे पर्रा
भौजी के बहनी उड़ावय गर्रा
भड़त-भड़त थक गे समधीन
चाबत हे बहेरा, हर्रा।

लाली-लाली पहिने लुगरी
दीखत हे सोन परी
लिबिस्टिक लगाय समधीन
पहिने सोनाटा घरी।

आय हे सब भाई मन
देखे डिपरा खाल्हे पारा
कहत हे सब झन ल भईया
काटे जाहा डुमर डारा।

चुलमाटी जाही बाजा संग
पड़ी समरही दऊवा
ददरिया संग झूमरे लगबे
पिये बर लागही आधा पऊवा।

भाटो संग हरदाही खेलबो
समधीन संग ददरिया गाबो
बनवाय हंव मीठा पान समधीन बर
हांस-हांस के पान खाबो।

जोरे हे चिला रोटी
चलव फांद के भइसा गाड़ा
आस मड़वा गड़ही भाई के
काटे जाहा डुमर डारा॥

श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू, बलौदाबाजार.

आरंभ म पढ़व :-
कठफोड़वा अउ ठेठरी खुरमी
गांव के महमहई फरा