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कहानी

डॉ. सम्पूर्णानन्द के आस्था : नान्हे कहिनी

स्वाधीनता सेनानी डॉ. सम्पूर्णानंद के अपन देस के संस्कृति म खूब सरधा रहिस। वोकर इच्छा रहिस के हमर देस ह राजनीति भर म नहीं भलुक संस्कृति जेन हमर देस के हे वोहू म तरक्की करय अउ स्वतंत्र भारत म भारतीय सिक्षा नियम लागू होवय।
देस जइसने आजाद होइस। डॉ. सम्पूर्णानंद उत्तर परदेस के सिक्षा मंत्री बनिस। वोकर कार्यकाल म कोनो बिस्वविद्यालय के कुलपति वोकर सोज मिले बर आइस। डॉ. साहेब उंकर संग शिक्षा भारत म कइसे दे जाय ये बिसे मे बातचीत सुरू करिन। उन कहिन- अंग्रेज मन जेन पध्दति के सिक्षा देत रहिन तेमा पढ़इया लइका मन ल गुलामी के भी पाठ पढ़ाय जाथे। कुलपति महोदय कहिस – सर तुंहर बात सोला आना सत हे। आप आज्ञा करव वोसनेहे करे जाही। बातचीत चलत रहय वो कुलपति ह बेर-बेर सर कहिके सम्बोधन करय त सम्पूर्णानंद जी ह भड़क गे। कहिस- आप तो कइ ठन भासा के ज्ञाता हव, एक विश्वविद्यालय के कुलपति अब, लाखों लइका के चरित्र अउ भविष्य के निर्माण के जुवापदारी हे तभो ले आप सर-सर के रट लागय अंग्रेजियत के बोझा ल काबर उठाय हव? वोकर बात ल सुन के कुलपति महोदय डर्रा गे अउ उंकर से माफी मागिन। तब सम्पूर्णानंद जी समझाइन- देखव अंग्रेजी शिक्षा ह अंग्रेजियत अपनाए के सिखोना देथे, अब तो हम आजाद हो गेन। हमका अपन संस्कृति के अनुरूप बोलना बताना सीखना चाही। बड-दु:ख के बात हे के देश ल अजाद होय काफी लम्बा समे निकरगे तभो ले हम अंग्रेजी के गुलाम बने हन। जरूरी हो गे हम ये गुलामी ल टोर के दुनिया म अपन-अपन पहिचान बनावन।
राघवेन्द्र अग्रवाल