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कहानी

ढेला अऊ पत्ता

छोटकू म पहिली कक्षा म भरती होयेन त छोटे गुरूजी बिजलाल वरमा हर ढेला अऊ पत्ता के कहिनी सुनाये रिहिस से तेकर सुरता आज ले हावे।

ठेला अऊ पत्ता दू परोसी दूनों म अड़बड़ मया राहय बिपत के बेटा म तको एक दूसर के संग देवे म गूलाझांझटी नई करेय।
एक दिन ढेला हर पत्ता ल कहिथे संगवारी असाढ क़े दिन बादर आगे पानी गिरे ल धरही तइसे तैंहा मोर ऊपर तोपा जाबे एकर से मय घुरे ले बांच जाहूं। पत्ता हर ठेला के बात ल मान के हुंकारू भरथे। पत्ता हर तको ढेला ल कहिथे संगवारी ढेला हर गरेर चलही त तहूं हर मोर ऊपर बईठ जाबे एकर ले मैंहा उड़ाये ले बांच जाहूं।
एक दिन होथे का हवा अऊ पानी दूनों संगरा बरसे ल लगिस पत्ता हर पानी ले फीले झन कइके ढेला ल घूरे ले बचाए के परयास करथे अऊ ढेला हर हवा गरेर म पत्ता झन उड़ाये कहिके पत्ता ल उड़े ले बचाय के परयास करथे-
विधि के विधन ल कोन
टाल सकथे भइर्ढया
पत्ता ह उड़ागे
ढेला ह घूरगे
दार-भात चूरगे
मोर कहिनी पूरगे
गुरुजी ततकी बेर कहिनी ल पूरोइस तइसे ठउक्का रेजर के घंटी बाजथे तिहां हमर हे…हे…हे… चिल्लावत पेजबासी खाये बर पल्ला घर कोती भागगेन।

जितेन्द्र शुक्ला