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व्यंग्य

तीजा नई जावंव

बड़े मौसी काबर नई आय हे ओ दाई। ओखर छोटे नोनी के नोनी-बाबू अवइया हे का? अउ छोटे मोसी ह घलो नइ आय हे का दाई? ह हो ओखर सास ह पटऊहां ले गीर गे हे अउ ओखर बाखा पकती मन दरक गे हे। बपरी हर सास महतारी के सेवा मा, ऐसो के तीजा तिहार ला घलो नई जानिस। त स्वीटी दीदी ला तो भेज दे रहितिस का करबे बेटा आजकल के लइका मन गांव-देहात मा नई रहना चाहे। फेर ओखर पीएससी के मेनस परीक्षा हे काहत रिहिस हावय। आतना मा बाई जी के थोथना ह ओरम गय।
घर मा देवता, भिंभोरा पूजे ल जाए- ये कहावत ह, परबुधिया मन बर बने हे। फेर कइसन परबुधिया, जेन हर अपन ल नई माने, नई जाने अउ पर के खातिरदारी मा अपन जिनगी ला लगा देथय। तभे केहे गय हावय, घर के कुकरी दार बरोबर। ऐमा मंगलू अउ बुधारू के कोनहो दोस नइ हे। काबर कि ऐखर ददा सुखरू हर जनम दिन के लेड़गा हरे। अउ बेटा मन सिधवा सुजानिक हो गे। फेर जब ले ओ कालजागरी, बिलइगतर के बहु हर आय हे, तब ले तेलीपारा मा जम्मो कुटुम ल पेरथे अउ तेल हेरथे। का बताबे अउ काला चेताबे। मोर तो मेनता भोगा जथे, जब ओखर मटकुल रेंगइ ल देखथों त। फेर काय कहिबे अउ कतिक ल कहि डारबे। थोरको तो अपन दाई-ददा के डेरउठी के मान-मरजादा ल जानना चाही।
पऊर के तीजा मा रस बेटा के एकलऊतीन दाई हर मोर दिमाक ला डोला डारिस। ऐसो तीजा नई जाववं जोड़ी, लइका हर नान्हे हे, थोरिक दाई महतारी अउ भाई-बहिनी के मया मा नानुक पिलवा के तबियत हा झन बिगड़य। अभीन पानी बादर के दिन मा का मइके जाए के साध मरबे। मेहा केहेंव बने बात ताय बाईजी, पढ़े-लिखे के इही हर फायदा अउफरक आय। अब तेहा स्वयं जानत हस त, मोला काय करना हे। हां भई, तोर जोरा ला मेहा जरूर पूरा करहूं। तीजा हफ्ता ही पहिली रिसाली मारकिट के बड़का दुकान मा लेगेंव अउ केहेंव, देख ले तोर बर नवां एक ठन लुगरा बिसा देथंव। काबर के मइके के सुरता तो आबे करही इही म मन ला मढ़ा लेबे। सोला सौ के मार चमचमाती लुगरा कत्था रंग मा, सोना किनार ओमा सितारा लगे। आह हा! नवां दुरपतरी बरोबर दिखबे ओ सीली।
मैं सोचेंव चल मइके के सुरता ला भुला गये हे। फेर वाह रे! तिरिया जनम, कुकुर के पुछी ले अउ टेड़गा। जेन कभहूं सोज होबे नइ करय। पहिली दिन परोसी दीदी-बहिनी मन संग करू भात खइन। बिहान दिन उपास रहिगे। फेर फरहारी के दिन अइस, बिहनचे ले पूजा-पाठ के हुम धुंगुर के धुंगिया पूरा पारा भर बगर गय। सबे जान डारिस के आज रस के महतारी ह शिव-भोला बर अउ ओखर नंदी बर अपन जम्मो शक्ति अउ अराधना ल चघा दे हे तइसे लागत हे।
रंग-रंग के फल-फलहारी, मिठई, अउ किसम-किसम के पकवान के मारे रंधनी खोली ह चारों खुट खचाखच पटाय परे हावय। सीली के फरहारी होइस ताहन हांसत मोर तिर अइस, तभे मेहा जान डारेंव कि अब परलय आने वाला हे ओखर अंतस के भााखा ल ओरखत मेहा कहि परेव बता डार।
का बात ऐ, मया ऊप्पर मया। अइसन म तो हमर जिवरा नई बांचे। बता डार काय बात ऐ तेला। हमरो मन गदगद हो जाही। ऐ जी! मे हा एक बात काहव। मेहा केहेंव एक का दू ठन कहि डार। तोर दिन बादर हे, तोरे चलही, हमर का गतर हे। मेहा काहत रेहेंव- तेहा नावां लुगरा ले हस न तेहा न एकदम जबरदस्त हे। त फेर कइसे। ओ काय कहिथे न मोला ये लुगरा पहिरे दाई कोनो देखतिस न त बड़ खुस होतीस। गउ इमान से। ऐ जी! उहिती जातेन का एक जुवार बर।
मेहा सोचत रेहेंव पिरदा गांव जातेन जालबांधा तीर मा हमर आजी दाई के गांव हावय। ऐसों हमर दूदू दाई हर घलो, अपन दाई घर तीजा मानही। ममा मन आए रिहिन हे तीजा लेवाय बर। फेर रद्दा मा शिवनाथ नदी घलो परथय। तेहा गाड़ी मोटर ला बने चला डरबे न मेहा केहेंव, देख बाई जी कार मा जाबोन, पानी-बादर के का डर। पुरे नदिया के भीतरे भीतर थोड़हे चलाना हे रे भाई। ओ हा तो पुलिया ऊप्पर ले जाही। तेमा का के डर हावय। सबो मनखे मन आवत-जावत होंही, अपन-अपन मयारू घर।

उहां गेन त भंग-भंग ले कोनों कनवा कुकुर भुंकइया नई हे। हमर गाड़ी के जानबा म आजी दाई बेस ला खोलिस अऊ कुरबुरात कहिस, आवव भीतर कोती ऐ दे पानी। बखरी कोती जावव, हाथ-गोड़ ला पहिली धो लेवव। हमन राधा स्वामी वाला आन। कहां धुर्रा- माटी मा सनाये आवत होहूं। एसी कार म कहां धुर्रा गा। पुरे दाई के गोठ ताय कहुं कही ते ठेसरा अउ तीन थपरा कस ताय।
बड़े मौसी काबर नई आय हे ओ दाई। ओखर छोटे नोनी के नोनी-बाबू अवइया हे का? अउ छोटे मौसी ह घलो नइ आय हे का दाई। ह हो ओखर सास ह पटउहां ले गिर गे हे अउ ओखर बाखा पकती मन दरक गे हे। बपरी हर सास महतारी के सेवा मा, ऐसो के तीजा तिहार ला घलो नई जानिस। त स्वीटी दीदी ला तो भेज दे रहितिस का करबे बेटा आजकल के लइका मन गांव-देहात मा नई रहना चाहे। फेर ओखर पीएससी के मेनस परीक्षा हे काहत रिहिस हावय। आतना मा बाई जी के थोथना ह ओरम गय। काय तीजा मनाही, कोनों तो संगी जहुरिया ला नई हबरइस। तभे मेहा रतिहां केहेव, देख बाई, अपन घर अपन हरे।
काली पहाती ले चल देबोन, दाई हर पाछू आत रही। तीज-तिहार के रोटी-पीठा अउ जोरन ला धरके। हमर बर तो अब हमरे घर-दुवार ह सरग कस लागथय। दूनों नोनी-बाबू अउ तोर मया के अंगना हा, इंद्र लोक के रहवासी ले कोनहो कम जान नई परय, मोर मयारू के रसिक वाटिका हा।

राजाराम रसिक

रसिक वाटिका, फेस 3, वी.आई.पी.नगर, रिसाली, भिलाई. मो. 09329364014