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कविता

तीजा लेहे बर आहूं

बड़ मयारू हच मोर बहिनी
तोला तीजा लेहे बर आहू आं,
सावन म तोर घर म जाके
राखी मैं बंधवाहूं ओ
भादो म तिहारिन बहिनी
भाई के घर म आबे
ससरार के जम्मो सुख-दुख ल
मइके म गोठियाबे
दाई के मया के मोटरा
धर के तोर बर लाहू ओ,
बड़ मयारू हच मोर बहिनी
तोला तीजा लेहे बर लाहू ओ
पढ़त-लिखत होही घर म
नाचत रहि नाचा
ममा-ममा चिल्लावत आही
मोर भांची अऊ भांचा
भांची-भांचा दूनो झन बर
कपड़ा मैं बिसाहूं ओ
बड़ मयारू हच मोर बहिनी
तोला तीजा लेहे बर आहूं ओ
बारा महीना म एक बार आथे
तिहार में तीजा-पोरा,
भाई-बहिनी के मया के गठरी
अऊ महतारी के कोरा॥
तीजा तिहार के तिजहा लुगरा
तोला मैं पहनाहूं ओ
बड़ मयारू हच मोर बहिनी
तोला तीजा लेहे बर आहू ओ
चंदन कस ममहावत रहिथे,
हमर गांव के माटी
लइकापन म खेलेन-कूदेन
संगे संग म बांटी।
रंग-रंग के पेड़ा, मिठई
तोर बर मैं बनवांहू ओ,
बड़ मयारू हच मोर बहिनी
तोला तीजा लेहे बर आहु ओ।

देवेन्द्र कुमार कश्यप
ग्राम बलौदी पलारी
जिला रायपुर