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गज़ल

तीन छत्तीसगढ़ी गज़ल

दादूलाल जोशी ‘फरहद’
(1)

सच के बोलइया ला ,जुरमिल के सब लतिया दीन जी ।
लबरा बोलिस खांटी झूठ , त तुरते सब पतिया लीन जी ।।
हमू ल बलाये रिहीन बइठका मा , फेर मिलिस नहीं मौका ,
कोन्दा लेड़गा मान के मोला , अपनेच्च मन गोठिया लीन जी ।।
न कुछु करनी हे ,न कुब्बत हे , आंखी मा बंधाये हे पट्टी ,
पर निन्दा करइया पापी मन हिरदे ल अपन करिया लीन जी ।।
मेहनत करइया भूखे रहिगे , भर के लबालब कोठी ,
उंकर थारी के मीठ कलेवा , बइठांगुर मन हथिया लीन जी ।।
नियाव धरम अउ हक के गोठ , अब तंय झन कर ‘फरहद’
ताकत वाला चतुरा मन येला गमछय मा गठिया लीन जी ।।

(2)

कंस के बंधाये मया के बंधना ला , टोरिक टोरा देखेंव जी ।
भरे सभा मा ,एक दूसरा के पागी छोरिक छोरा देखेंव जी ।।
लेवना कस हे गुरतुर बानी ,अउ दिखब मा निच्चट सिधवा ,
तउने मन ला छानी मा चढ़ के भूंजत होरा देखेंव जी ।।
मोर कटोरा खाली रहिगे , कहां ले मिलतीस भीख ?
गली-गली मा दानी मन ला धरे कटोरा देखेंव जी ।।
अपन कमी ला कोनों नई देखंय ,दूसर ला देथें दोस ,
हारे जुवारी जस नेता मन के तोरिक तोरा देखेंव जी ।।
छत्तीसगढ़ के नारी ला अब तैं अबला झन कहिबे ‘फरहद’
अतियाचार संग लड़े के खातिर भीरे कछोरा देखेंव जी ।।

(3)

कोन कोन ह रायपुर अउ कोन ह दिल्ली जांही पूछ तो रे ।
पांच बछर म नेता मन ए कोती कब कब आंहीं पूछ तो रे ।।
अंडा के जर राजनीति ,येला सब जानत हें ,समझत हें ,
फेर अहंकार म गोल्लर सांही ,कतका मेछराहीं पूछ तो रे ।।
येमा टेक्स वोमा टेक्स, एती वोती सब कोती टेक्सेच्च टेक्स,
बांच गेहे हवा पानी , इनमा कब टेक्स लगांहीं पूछ तो रे ।।
छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया ,ये कहे सुने मा सुघ्धर हे ,
पनही मार के गमछा म पोंछ के ,कतका भरमाहीं पूछ तो रे।।
जात बिछौना ,धरम के तकिया मा जम्मो सोगेन पांव पसार ,
तब छत्तीसगढ़ ल एक करे बर कोन जगाही पूछ तो रे ।।
खलक उजरगे लाखों आगे , देखे बर मदारी के खेल,
घेरी बेरी बेंदरा साहीं ,कतका नाच नचाहीं पूछ तो रे ।।
घूंस दलाली , पहिचान भरोसा कतको चढ़ जाथें दरबार ,
‘ फरहद’ सिरतों के गुन्निक मन ,कतका करम ठठाहीं पूछ तो रे ।।

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8 replies on “तीन छत्तीसगढ़ी गज़ल”

दादू भाई! तोर गज़ल मन ल पढ के नीक लागिस हे ग ! तोर उपनाव ‘फरहद’ हे तेन ह मोला आजो सुरता हे । मन खुश हो गे । तोला बहुत-बहुत बधाई । सन्जीव भाई ह बढिया बुता करत हे ग , सही म अपन ‘वेब’ ले छत्तीसगढ ल जगमग- जगमग करत हावय , दिनों-दिन वोकर जस ह वोकर वेब सरिख बाढ्त जात हे , अरे भाई ! जौन हर मेहेंदी पीसथे तेकर हाथ ह तो मम्हाबे करथे ।

Dhanyawad bahini ! aaj aapke maya sanay goth la parh ke bhilai vidyalay ma
sanghara parhawat rehen tekar surata aage !mor gajal la pasand karev yeha
mor bar bahut badaka palondi aay! aapke man au hirde doono aghat pavitra he,tekare seti aapke sabo vichar ma hamesha mangalkamna samaye rahithe !
aapke panv ma kabhu kanta jhan gaday ihi upar wal ye binti he !apan chhote
bhai bar aisane daya maya rakhe rahibe !
DADOOLAL JOSHI *FARHAD* 14/06/2013

सञ्जीव तिवारी के सेती हमर मन के भेंट होगे ग दादू भाई । सबो छत्तीसगढ ल जोरे के बुता करत हावय सञ्जीव भाई हर । उमर म छोटे हे फेर सियान कस बुता करत हे । भगवान करय हमर छत्तीसगढी हर दुनियॉं भर म बगरय ।
“ब्रज अवधी सरिख छत्तीसगढी बन जातिस सूर तुलसी सरिख साहित्य हमला रचना हे
मैथिली ल विद्यापति जइसे अमर बना दिहिस वोही ढॅग के भगीरथ प्रयास हमला करना हे।
चार वेद पढ्तेंव छत्तीसगढी म मोर मन हावय उपनिषद के घला अनुवाद हमला करना हे
चाणक्य विदुर-नीति पढतेन छत्तीसगढी म छत्तीसगढ तिजौरी ल मनी-मानिक ले भरना हे।”

दादूलाल जोशीजी आपके तीनों गजल पढके मोर मन एकदम गदगद हो गे कतका सुघ्घर संदेश अऊ शब्द मन के बंधना हे । वाह भाई वाह बहुत बहुत बधई आप ल ।

दीदी शकुंतला शर्मा के कामना कतका सुघ्घर हे ऐला हम जम्मो जुरमिल के पूरा करेके कोशिश करबो –
“ब्रज अवधी सरिख छत्तीसगढी बन जातिस सूर तुलसी सरिख साहित्य हमला रचना हे
मैथिली ल विद्यापति जइसे अमर बना दिहिस वोही ढॅग के भगीरथ प्रयास हमला करना हे।
चार वेद पढ्तेंव छत्तीसगढी म मोर मन हावय उपनिषद के घला अनुवाद हमला करना हे
चाणक्य विदुर-नीति पढतेन छत्तीसगढी म छत्तीसगढ तिजौरी ल मनी-मानिक ले भरना हे।”
-शकुंतला शर्मा

बने बने मा बात ह बनथे अऊ बिगरे मा झगरा 1 हमला लड़ा के ए सारे कब तक लराही पुछ तो रे॥ भुख मरन हम कमा के वोsays:

Achchha laga

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