Categories
कविता

तुलसीदास

बाल्मीकी जब लिखे रमायन,
पंडित ग्यानी गावत रिहिस!
बावहन पढ़है संस्कृत भासा,
आन जात मन दूर ले पावत रिहिस !!
राम कथा ह पोथी म लुकाके,
ऊंच जाति के मंदिर सोहावत रिहिस !
जइसन सुनावै तइसन सुनन,
कोनो ह उलटा गंगा बोहावत रहिस !!
तब एक रामभगत गुनगान करिस,
हमर तोर देहाती के भासा !
रामचरित जनजन बर लिखिस,
नाव कहाइस तुलसीदासा !!
अनपढ़ गरीब ऊँच नीच सबो,
अब राम कथा सब जानत हे !
धरम ह पोथी के बंधना ले छुटगे,
सब मानस गंगा मानत हे !!
ऊंच नीच बड़े छोटे सबो,
पुन्य गंगा मा डुबकी लगावत हे!
छूआछूत मिटाके सुवर्ण ह सुने,
छोटेजात ह रमायन गावत हे !!
रामकथा भर नोहे रमायन ,
जिनगी के रद्दा देखावत हे !
पापी कलजुग घोर बढ़हे,
तिंहा मरजादा के पाठ पढ़ावत हे !!
समय के लाठी सबला परही,
श्री राम घलो ह बांचय नही !
करम के हिसाब ह पोठ हवय,
तोर भाग ल कोनो ह खांचय नही !!
बाप के किरिया बर बेटा इंहा,
तियागे हे सुख सिंघासन के !
पति के पूजा बर देबी सीता,
रूप धरिस हे बनवासन के !!
लखन जइसे भाई के सेवा,
चउदा बछर जेन जागे हे !
भरत जईसन सउतभाई होइस,
जेन भाई म नरायन ल पागे हे !!
सेवक देखौ बीर हनुमान,
सौ जोजन ल घलो लांघ डरिस !
चीर के छाती राम सिया ल,
जुग जुग बर भक्ति मांग डरिस !!
मया कभु ऊंच नीच नइ देखै,
भगवान इंहा करके हे देखाइस !
नीच जाति के भक्तिन सबरी के,
जूठा बोइर ल राम ह खाइस !!
झन करौ गरभ अन्न धन के इंहा,
कुबेर खजाना घलो सिराही !
एक मुड़ी के काहे बोझा,
दस दस मुड़ी घलो पिराही !!
लालच के खेत ह पाप ल बोंथे,
रावन जइसे ग्यानी सिरागे !
कुल के दिया बरइया नइ बांचिस,
लाखो लाख परिवार तिरागे !!
धियान धरे श्रीराम के जौन,
सतमारग मा जेन जोगत हे !
दानव के बीच मानव बनके,
भिभीसन कस सुख भोगत हे !!
धन हे बाबा तुलसी तोर,
राम कथा सब सार हवय !
पर चीज ल जेन पथरा मानिस,
भवसागर डोंगा पार हवय !!

राम कुमार साहू
सिल्हाटी (स. लोहारा)
कबीरधाम
मो. नं 9977535388
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]