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कविता गीत

तोर दुआरी

सुरता के दियना, बारेच रहिबे,
रस्ता जोहत तैं ढाढेंच रहिबे।
रइही घपटे अंधियारी के रात,
निरखत आहूं तभो तोर दुआरी।

मैं बनके हिमगिरी,तैं पर्वत रानी,
मौसम मंसूरी बिताबो जिनगानी।
कुलकत करबो अतंस के हम बात,
निरखत आहूं तभो तोर दुआरी।

मैं करिया लोहा कसमुरचावत हावौं,
तैं पारस आके तोर लंग मैं छुआजाहौं।
सोनहा बनते मोर,बदल जाही जात,
निरखत आहूं तभो तोर दुआरी।

आये मया बादर छाये घटा घन घोर हें,
जुड़हा पुरवइया संग नाचत मन मोर हे।
सावन भादो कस हिरदे हरियात,
निरखत आहूं तभो तोर दुआरी।

मनोहर दास मानिकपुरी