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व्यंग्य

दसवा गिरहा दमांद

जोतिस के जानकार मन ल नौ ले उपरहा गिनतीच नइ आवय। तेकर सेती जोतिस म नौ गिरहा माने गे हे। फेर लोकाचार म दस गिरहा देखे बर मिलथे। ओ दसवा गिरहा के नाँव हे दमांद।
अलग -अलग गिरहा के अलग- अलग प्रभाव होथे। सबले जादा खतरा सनि ल माने गे हे। जेन हँं मनखे ल जादा ढेलवा -रहचुली झुलाथे।
कोनो जब जादा परेसान हो जथे त कहिथे एकर उपर सनि चलत हे गा ! तेकर सेती पेरावथे बिचारा हँ। फेर ओकर ले जादा पेरूक तो दमांदमन होथे।
एकर मतलब मैं तुमन ल पेरूक नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
जोतिस सास्तर के नियम हे के कोनो बात ल सोज्झे -सोझ नइ केहे जाय। अइसे कहा जेन मनखे के समझ घलो आ जय अउ रंज घलो झन लगय।
साँपो मर जाय अउ लउठी तको झन टूटय।
ओ साँप काहत हे तेला तैं डोरी कहा। ओ डोरी मानत हे तेला तैं साँप कहा।
त समझव दमांद दसवा गिरहा कइसे होथे ?
सबले पहिली तो जेकर घर बेटी जनम ले लिस माने ओकर घर दसवा गिरहा के छईहाँ पर गे समझौ। काबर के बेटी के पीछू ही दमांद होथे। गिरहा के छईहाँं पहिली परथे। तेकर पीछू गिरहा आथे। लगथे तेकरे सेती बेटी ल हमर जुग म कलंक माने गे हे। फेर सोंचे के बात ए हे के असली कलंक कोन आय ?
एकर मतलब मैं तुमन ल मुरूख नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
गिरहा के छईहाँ परिस ताहेन मनखे के माथा म चिंता हँ इस्पस्ट बहुमत के साथ डांड़ बना लेथे। ए बात अलग हे के काकरो माथा म भारती कुपोसित लइकामन बरोबर दुब्बर -पातर पैडगरी रद्दा होथे त काकरो म गाड़ी रावन के खोल्दावन पर जाय रहिथे। कखरो दिखथे त कखरो नइ दिखय ।
कोढ़िया मनखे घला ओ दिन ले कुकुर कस लाहक -लाहकके कमाए बर धर लेथे। बेटी के बिदा करे बर सरी चीज के जोरा -जंगारा तो करेच बर परही न। अइसने थोरे बिदा देबे। अइसने के बातेच् नइ ए !
कतको दाइज -डोरा दे। दमांद गिरहा बर कमेच् रहिथे। दमांद तो ससुरार के चीज -बस बर मुँह फारे खड़ेच् रहिथे बेटी के पीछू म।
टीकावन म साइकिल देबे त दमांद भीतरे-भीतर चैन राहत घलो बेचैन होके छटपटाही -फटफटाही : नहीं गा ! फटफटी होना रिहिसे।
पंखा देबे त बिन गरमी के तँवारा मारे कस फड़फड़ाही- नहीं गा ! कूलर होना रिहिसे।
कोनो दमांद भीखमंगा सरेनी म सबले उप्पर होथे। मुँह फटकार के माँग देथे। आजकाल अइसन दमांद कुकुरमुत्ता कस उगे लग गे हावय। अब तो अइसनो चलागन चालू हो गे हावय के मोर घर म टीबी हे । हाँ ! त तुमन टीबी के जघा दूसर चीज दे देवव । या नही ते ओकर नगदी बना देवव।
घोसना -पत्तर बनाके ससृरार म थमा दे रहिथे। ए घोसना -पत्र के पूर्ति ससुरारी सदस्यमन बर अगिन परीक्छा ले कम नइ होवय।
सनि कइ परकार के होथे । साढ़ेसाती , अढ़ैया तइसे दमांदो के कइ परकार होथे। कइ घँव कोनो गिरहा हँ पेरे के संगे -संग मनखे ल फायदा घलो पहुँचाथे।
माने गिरहा के परभाव हँ ओकर नजर उपर होथे। फेर दमांद के गिनती हँ ए अपवाद के सबले नीच पयदान म होथे। माने अइसन दमांद बिलुप्त होए के करार म अँटियावत खड़े हे।
समाज ल अइसन दमांद के संरक्छन खातिर भक्कम उदीम -उपाय करना चाही। अइसे मोर डिमाक म ओ उदीम हवय फेर लेवइया होना चाही। मैं बिन माँगे मुफत म अनचित सुलाह देना उचित नइ समझवँ।
अउ अइसे भी योग्य गुरू के असल सिक्छा हँ योग्य सिस्य तीर जाके ही गुरू अउ ग्यान के सान -मान ल बढ़ाथे।
एकर मतलब मैं तुमन ल भीखमंगा नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
अइसे हर दमांद पेरूक अउ जीछुट्टा नइ होवय। ओकर परभाव हँ दमांद के नियत उपर होथे । गिरहा के सीधा -सीधा नजर ओतका जादा घाती नइ होवय जतका ओकर तिरछी नजर होथे।
ककरो होवय तिरछीच् नजर हँ घाती होथे । तिरछी नजर ले ही दुनियाँ म कोनो ल नजर लगथे। चोरहा ,ढोरहा अउ नीयतखोर मन के नजर निसदिन तिरछीच् रहिथे। तेकरे सेती तिरछी नजर वालेमन ल नीयतखोर माने गे हे।
अइसन नीयतखोर के सरेनी म दमांद गिरहामन दमांदबाबू नाँव के उज्जर सोनहा आखर म सबले तिलिंग म हावय। तिरछी नजरवाले मन ले मनखे ल हमेसा सावधान अउ दूरिहा रहना चाही ।
कभू न कभू सबो ल तिरछी नजर म देखे बर परी जथे। माने कभू न कभू सब के नजर तिरछी होथेच्। अब जेन जनम के तिरछा आँखी के हे तेकर बात अलग हे भई ! ओ समझ -समझ के बात हे।
एकर मतलब मैं तुमन ल तिरपट नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
जिहाँ तक मोर अनमान के बात हे। दमांद मन सुग्घर दोगला प्रजाति के होथे। अपन गला के सुर ल बेटी के गला से निकलवाथे। अपन नइ कहि सकय। बेटी तीर कहवाथे। ससुरार म बोले बर मुँह सिला जथे । ओमन बाइ ल सकउ पाथे।
माने दमांद गिरहा हँ ससुरार ल पेरे के माध्यम बाइ ल बनाथे। एकर ले ए सिध होथे के दमांद मन के सक हँ बाइच् भर तीर चलथे। मरद मन तीर नइ चलय।
बेटी के जात हँ ओ घुना कीरा होथे जेन हँ दू परवार के बीच जिनगी भर पीसावत -रमजावत रहिथे।
दोगला के संगे -संग इन दुमुँहा प्रवित्ति के घलो होथे। बेटी संग मइके म अलग अउ ससुरार म अलग बात करथे। इन्कर मुख्य वाहन बेटी माने दमांदबाबू के गोसाइन होथे। नानमुन बात बर घलो इन बेटी के मुड़ म सवार रहिथे।
इन्कर कार्यसैली अउ किरिया-करम अइसे होथे के तोर दाइ -ददा ल बलाहूँ । घर ले तोर निकाला कर देहूँ कहि- कहिके बेटी अउ ससुरार म कम दबाव के छेत्र बना देथे। जेकर पर-भाव से सबके आँखी ले भारी बरसा होए ले दमांद के आसरा अउ माँग के फले- फूले- घउदे के संभावना बाढ़ जथे।
रिस्तादारी म दमांद के गिनती हँ सबले अव्वल होथे। कतको दमांद अइसनो होथे जेमन बाईब्रता माने पत्निसेवक होथे। अइसन बेगमदास मनखेमन ल समाज म मेड़वा के संग्या ले सम्मानित करे जाथे।
अब दमांद तो बन गे। ससुरार म बेटी दमांद के आना- जाना लगेच् रइही। जब -जब दमांद आही। ओकर बर चाहा -पानी ,खान -पान के सुग्घर जोरदरहा बेवस्था करेबर परथे।
इन अतेक कोंवर अउ घुरघुरहा होथे के इन ल बिहिनिया के गरमागरम दूधवाले चाहा हँ सूट नइ करय। तेकर सेती इमन संझा बेरा के लाल वाले जुड़ चाहा ल जादा सोरियाथे।
दमांद मन अपन घर म भाजी- भाँटा अउ कढ़ही -बासी भर खाए बर जानथे। मुरगा -मटन ससुरारे म देखे बर पाथे। ओकर सेती उन्कर बर कुकरी से लेके कुकुर अउ बोकरा से लेके बघवा तक के कुछू भी होवय बेवस्था होना चाही।
अइसे नइ होही त गिरहा के मुँहू फुग्गा कस फूल जाही। गिरहा जादा झिन पेरय तेकर बर हवन -पूजन , फूल -पान , दान- पुन के बिधान बेद सास्तरो म बताए गे हे।
जोतिस म गिरहा के टोर -भाँज के घलो नियम हे। पालन होवय चाहे झन होवय। नियम बनाना हमर देस के हर किसम के माने धारमिक, सांसक्रितिक, राजनितिक समाजिक पहिचान अउ सान हरे।
हर मनखे सुख चाहथे कोनो जानबूझके अपन मूड़ ल खलबत्ता म नइ घुसेर देवय। गँहू संग कीरा रमजाथे तेकर बात अलग होथे।
सियान के करनी ल लइका भुगतथे। तइसे कस ससुरार म दमांद गिरहा के भाव-भगत के कमी ल बेटी ल भुगते बर परथे। लोग लइका के सुख दाइ -ददा के सुख। नइते दमांद हँ ससुरार ले जाके बेटी के रार मता देथे।
दमांद गिरहा के पेरूक कथा तो आए दिन देखत -सुनत रहिथव। बहू के होरा भूँजके दही के भोरहा म कपसा ल खा डारथे अउ सबो ससुरारी सरकार के मुख अतिथि बन जाथे। माने बेटी के सास , ससुर अउ ननंद ,देवर मन दमांद गिरहा के सहायक गिरहा होथे।
घर म सुख -दुख के कोनो काम होवय। सबले पहिली दमांद ल नेवत के मनाए जाथे। नहिते ओकर कुपित होए के चायनस चार सौ बीस परसेंट बाढ़ जथे।
कोनो दमांद होय। ससुरार म आते साठ ओखर दिमाक के पारा हँ अपने -अपन एक सौ नौ डिगरी ले उपर हो जाए रहिथे। अइसन अपन मइके ले बाई के मइके जाए से आबहवा अउ इस्थान परिवर्तन के प्रभाव के सेती होथे।
कभू अइसनो दमांद होवत रिहिसे जेन हँ ससुरार ल मइके समझ के घरजियाँ रहि जावत रिहिसे। जेन हँ अब तइहा के डाइनासोर कस कहानी नंदा- खिया गे हे।
पहिली गउर -गनेस आगू नेवतावय अउ आगू पूजावय। अब पूछे -पूछाए पूजे -पूजाए के अंक तालका म गौर -गनेस ल एक पयदान खाल्हे ढकेलके दमांद गिरहा हँ सबले उप्पर बिराजमान हो गे हवय।
दमांदमन अतेक प्रभावसाली होथे के ससरार के हर कार्यकरम अउ किरिया-करम के सिरजन से लेके बिसरजन तक उन्कर संग सुलाह -मसवरा करना अति आवस्यक होथे। नइते ससुरार म कब कतका बेरा भूकम आ जही तेकर कोई ठिकाना नइ रहय।
नेवता मिले के पहिली इन पहुँच जथे। हर काम म इमन ल आघू म रखना परवार के नाक अउ नाम दूनो बर गजब जरूरी रहिथे।
कोनो काम ल इन कर सकय चाहे झन कर सकय। हमला नइ पूछिस कहिके मुँह ल कोंहड़ा कस फूलोए बर आगू रहिथे। ताहेन इन अप्पत घेक्खर ल मनावत रहा। घर ले बरात निकालना हे। दूल्हा ल संभराना -ओढ़ाना हे। ओतके बेर इन गाइब। खोजत रहा।
सिकार के बेरा कुतिया गायब। दमांद के नेंग ल कोन करही ?
अच्छाच टेम म इन घालथे । माने जे मेरन इन्कर जररत परथे। इन गाएब हो जाथे। फालतू टेम म कुकुर कस लूट -लूट करना दमांद गिरहा के पैदइसी गुन होथे। दमांदे मन के बात नइ हे। ए जम्मो मनखे जात के सर्वोपरि सिरमउर गुन होथे। अब देखेव -जानेव , सुनेव -मानेव के दमांद जात हँ कतका गुहरा होथे तेन ल ।
एकर मतलब मैं तुमन ल गुहरा नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
अइसने गुहरा ,नीयतखोर ,मतलबिया, जीछुटटा दमांदमन के सेती भारती समाज अउ संस्कृति के दुनियाभर म सोर उड़त हे। अतका पहिचान हमार नाक ल उँच राखे बर गजब हे।
बेटी हँ जनम ले कलंक माने जात हे फेर ए कलंक ल हम मिटा सकथन। बेटी ल अच्छा सिक्छा अउ संस्कार के धन -दाइज देके। जेकर परभाव से ओ हँ मनखे के बिचार ल संस्कारवान बना सकय। ससुरार म बने संस्कार बगराके समाजो ल सुधार सकय। अउ बेटी हँ बेटी भर नइ रहिके नवा जुग सिरजइया जगजननी बन सकय।

धर्मेन्‍द्र निर्मल

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