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कविता

दाई के पीरा

बड़े बिहनिया सुत उठ के, लीपय अँगना दाई ।
खोर गली ला बाहरत हावय , ओकर हे करलाई ।
आये हावय बहू दू झन , काम बूता नइ करय ।
चाहा ला बनावय नहीं, पानी तक नइ भरय ।
आठ बजे तक सुत के उठथे, मेकअप रहिथे भारी ।
काम बूता ला करय नहीं, करथे सास के चारी ।
घिलर घिलर के दाई करथे, सबो बूता काम ।
का दुख ला बतावँव सँगी , माटी हे बदनाम ।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com