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कविता

दाई

जिनगी के पहिली भाखा,
सबले सजोर साखा आवस दाई|
अंधियार म उजास,
जेठ म जुड़ हवा के अभास आवस दाई|
बंजर म उबजैया बीज,
हर नजर ले बचैया ताबीज आवस दाई|
ममता के ऊंच अकास,
लईका के अटूट  बिश्वास आवस दाई|
सागर कस बिशाल,
चन्दन,चाऊर,रोली,गुलाल आवस दाई|
सावन के पहली पानी,
त्याग अउ ममता के कहिनी आवस दाई|
तीरथ कस पावन,
चन्दन-धुप कस ममहावन आवस दाई|
गीता के सीख,
कुरान के आयत सरीख आवस दाई|
जाड़ के कुनकुन घाम,
बिहनिया के राम-राम आवस दाई|
दया के भंडार,
असीस अउ दुआ के उपहार आवस दाई|
नोहस माँस-हाड़ भर,
नारी चोला म सकल ब्रम्हांड आवस दाई|
सरग शोभाहीन,
तोर आघु म देवता घलो महीन हे दाई|
बेद-पुरान महान,
ओखरो ले तेहा परधान आवस दाई|

सुनिल शर्मा”नील”
थान खमरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
रचना-07/05/2015
बिरस्प

6 replies on “दाई”

मां से बढ़के कोई नइहे बहुत सुंदर रचना हे नील जी |

दाई ये दुनिया म जिनगी के गंगोत्री आवे अउ दाई ऊपर लिखाय कविता अउ हर पंक्ति ह अंतस ल छुथे आपमन #माँ#ऊपर लिखे मोर भावना ल समझेव ओखर बर गाड़ा2 धन्यवाद आदरणीय #माटी#जी

Happy mothers day friends. ..maa se badke duniya me auv koi kono nai he …ma..meri..ma….mam.ma….

बढिया लिखे हावस ग सुनील ! ‘दायी ‘ हर ‘ दायिनी ‘ शब्द ले बने हावय , जेकर अर्थ होथे – ” देने वाली ” । एहर संस्क्रत के ‘दा ‘ धातु ले बने हावय जेकर अर्थ होथे – देना । वोइसने ‘ददा ‘ शब्द हर घलाव दादा के अपभ्रंश ए , जेकर मतलब होथे – जिनगी भर देने वाला , एहू हर ‘दा’ धातु ले बने हावय । संस्कृत हर सबो भाखा के महतारी ए । छत्तीसगढी म घलाव संस्कृत के हजारों शब्द हावय ।

शकुंतला दीदी आपमन मोर कविता ल पसंद करेव एखर बर आपमन ल धन्यवाद|संस्कृत में दाई-ददा के उप्पर दे आपके जनकारी बहुत सुग्घर लागिस …….जय जोहार अउ जय छत्तीसगढ़ दीदी

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