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कविता

दारु के निसा

अगोरा करथे बारह बज्जी के
मंदिर कस भीड़ सकलाय रहिथे
गांव गांव के दारूभट्ठी म
दारु बर लाईन लगाय रहिथे

सियान जवान निसा म मोहाय
चेपटी पउंव्वा चघाय रहिथे
कोट कोट ले पीके दारू
मंद मताउंना म पगलाय रहिथे




कोनो चिखला अउ कोनो डबरा म
टुन्न ले पीके परे रहिथे
अपन तन के हियाव नईहे
उपराहा अउ धरे रहिथे

पीए बर पईसा मांग-मांगके
घर दुवार ल गिरवी धरत हे
खाय बर चाउंर दाना नईहे
धान चाउंर बेचके पीयत हे

कतरो मनखे दवा टानिक सरि
एकरे भरोसा म जीयत हे
नसा शरीर के नाश ए
धीरे धीर जींव ल लीलत हे!!

सोनु नेताम”माया”
रूद्री नवागांव धमतरी