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व्यंग्य

दर्रा हनागे

संझौती बेरा कोतवार हाका पारत रिहिस- नरवा मा नावा बने पुलिया हा तियार होगे हे, आज ले पांचवा दिन इतवार के हमर कोती के मंतरी फकालूराम हा फीता काटके उदघाटन करही। कोतवार केहाका ला सुनके गांव के लईका-सियान, दाई-बहिनी तिहार बरोबर उछल-मंगल मनात हें, अऊ टुटपुंजिहां गांव के नेता मन अइसे करत हें, जईसे ऊही मन मंतरी ले बाड़गे हे.

गौरा-चौरा मेर तो दू पारटी के नेता मन धरी-धरा होगे रिहिन,अभीन के सरपंच किथे-मोर परयास ले पुलिया हा बने हे, पहिली वाले सरपंच किथे- मंत्री ला मेंहा केहे रेहेंव तेकर आसवान ले आज पुलिया हा बनेहे येकर बर सबले पहिली गांव के पंचईत भवन मा मंतरी ला लिखित में दरकास मिहि हतो दे रेहेंव। पुछलेव पटेल ला- पटेल घलो हामी भर दिस।
ओतका बेर कोनो सरकारी मनखे नी रतिस ता एकाद झन के मुड़ी-कान घलो फूटे रितिस तईसे लगथे। फेर वोमन मान-मनऊल कराके छोड़ईस। नेता आय के तियारी अउ ईही गोठ जगा-जगा होवत हे- गरमी के नाहकती अऊ बरसात के लगती रहाय। मंतरी के उद्घाटन होही ता रसता खुलही कहिके रसता छेंकाय रिहिस, पयडगरी बलले सबे आय-जाय, सड़क हा पुलिया अतका ऊंच रहाय।
मतरी आयके दु दिन पहिली हवा गरेर चलिस पानी गिरिस ते रूख-राई टूटगे, कतको घर के छानी-खपरा उड़ागे। रद्दा छेकाय रिहिस पयडगरी रसता अऊ पुलिया बीच तरिया कस पानी भराय रहाय। पानी के निकले बर जगा नी रहाय इती-उती ले निकले, कोनहा अतिक ला जानत हे हुरहा पानी गिरदिही कहिके-येकर सेती बरसात लगेके पहिली उद्घाटन हो जतिस ते आय-जाय बर सुभित्ता होतिस कहिके सब लगे रिहिन।
फेर हावा-पानी-आगी मा काकरो जोर थोरे चलना हे। चाहे कुछु कर ले। ये डहान पानी सल्लग गिरते रहाय- थामे के नाव नी लेवय रेतियहा माटी हरे। एको कनी पानी के झेल ला नी सहियारे। सईकिल, मोटर-गाड़ी के झेल ला एकोकनी नी सहे।
गांव के मनखे एकरे सेती मन ला संतोस करत अतेक दिन कतको साल ला अईसने भरे बरसात मा मुड़ भर पानी ल तऊर के जाय-आय, अऊ दू दिन के तो बात हरे तेकर सेती वोतक संसो अब ये बखत नई हे। चारो मुड़ा पानी-पानी होगे, एती-वोती ले पानी नाहकत हे। पहली बरसात ला देखई के मजा सब लेवत हें.
मंतरी आये के तियारी हा पूरा होगे हे, मंतरी बिहिनिया ग्यारा बजे अवइय्या हे, ऊंकर जेवन-पानी गांवे मा रिही, तेकरो बंदोबस्त करे जात हे। विपक्षी मन हा- नेता ला समसिया के ज्ञापन देबो कहिके तियारी मा हे, वृद्धावस्था पेंशन संघ, आगंन-बाड़ी, स्व सहायता समूह अउ अपन अलग संगठन के परतिनिधी मन नेता के अगोरा मा लगे हें। सरकारी पईसा उरक गेहे-त स्वागत सतकार टेंट-माईक फूलमाला, खाये-पीये बर चंदा वसूली चलत हे बेरा नी बाचे हे- फेर तियारी मा दू हजार खरचा होगे हे-पुलिया बर पईसा निकले रिहिस तेमा रेवड़ी बटई मा आत ले अईसने आधा हिससा बंटागे आय के बाद फेर आघू मन ला बंटई मा निकलगे।
फेर अभिन घलो कोनो-कोनो के देनी बाचे हावे, उती अधिकारी हा सरपंच ला धमकी देथे-तोर ऊपर खानगी के दरकास निकलत हे-वोला देखे ल लगथे। येती चंदा के घलो ऊरकती आ गेहे कोनो डहान पईसा आयके असार घलो नी दिखत हे- फेर चलत हे, चलही कार नही- चलाना हे त कईसनो चलाले। पहाती-पहाती जझरंग ले हुरहा आरो अईस जानो-मानो कोनो पहार टूटके गिरत हे का? तईसे। कोनो ला समझ नी अईसे वोतक बेर। फेर थोरकिन अंजोर होईस त देखथें नरवा के पुलिया बोहा गेहे तेकर चिन्हारी घलो नी मिलत हे करम फूटगे रे- सब एक दूसर ला दोस देवत हे।
मंतरी ला- सरपंच किथे साहेब – पुलिया रिहीस ते जगा बड़े जनिक दररा हना गेहे, अऊ पुलिया बोहागे हे, मंतरी कथे- कईसे होईस रे-सरपंच किथे नी जानो साहेब मेंहा अपन डहान ले कोनो कमी नी करे हों- सबला तुमन जानत हो- मंतरी कुछु कहान नी सकिस।
सरकारी पईसा पानी मा बोहागे। येकर हिसाब लेने अऊ देने वाला मन कर दररा हनाय हे, तेकरे सेती सबो बूता अईसने दररा हनाय बरोबर होत रिथे, ये दररा हा,  नी पटाही- तब तक सबो हा अईसने पानी पूरा कस बोहाही।

दीनदयाल साहू