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संपादकीय

दू आखर…. : (सम्पादकीय) बुधराम यादव जी

साहित्य कउनो भाखा , कउनो बोली अउ कउनो आखर मा लिखे जाये . जब ओला समाज के “दरपन” कहे जाथे तब सिरिफ ओकर चेहरा देखाए भर बर नोहय , समाज के रंग रूप ल सँवारे के, कुछ सुधारें के, सोर अउ संदेस घलव साहित्य ले मिले चाही .

साहित्य ला अबड़ जतन ले सकेले अउ सहेजे गियान के खजाना घलव कथें . समे के पारखी छलनी मा एकर छनावब हा तभो जरुरी च हो जाथे . छनाये के बाद बांचे-खोंचे सार जिनिस हा देस अउ दुनिया के आगू मा समे के अजर अमर सच ला जस के तस परोसथे .

साहित्य के एक ठन अउ जबर गुन होए चाही के ओहा मनखे ला मनखे के अंतस ले पहिचान करावय, दुख पीरा ला जानय अउ जनावय , सबद के बल मे , भाव के भरोस मा , इसारा से गहिरा घाव तक मा मलहम चुपरे अउ मउका मा तलवार घलव ले जबर हिरदे मा घाव करय.

साहित्य भाखा, बोली – बतरस के सीमा के डोरी मा भले बंधाय-छन्दाय रहय, सोच अउ बिचार के संग भाव के सुछंद रहे चाही . धरती अउ सरग के बीच के जमो चर -अचर के गोठ ला गोठियावय , अपन में सबला समावय अउ जमो के अंतस में पोहावय . असल में साहित्य के महातम एही मा हवय.

देस परदेस अउ राज जमो के चिनहारी के परमान उनकर महतारी भाखा ले होथे . जईसे के गुजराती ले गुजरात , बंगाली ले बंगाल , पंजाबी ले पंजाब , उड़िया ले उड़ीसा , कन्नड़ ले कर्नाटक अउ मराठी ले महाराष्ट्र…बिलकुल अइसनाहे हमर महतारी भाखा छत्तीसगढी ले छत्तीसगढ़ के पहिचान बने हावय. कउन नई चाहय के साहित्य के भाखा, मीठ गुरतुर अउ सुनब मा नीक लागय ऐसनहा होवय. साहित्य संजीवनी के बूता घलव करथे , सिरिफ मन फरियाये अउ हरियाये भर के नहीं .

सिरिफ साढ़े सात बरिख के छत्तीसगढ़ राज के दुधरु दांत टूटे बर सुरु होये हवय के संजोग कहे जाय के येला अभी च अभी छत्तीतसगढी राजभाषा के रूप मा जुबान मिल गय .

ऊपर कहे जमो गोठ ला अपन अंचरा के छोर मा पोठ बांधे, छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढी के असमिता के चिनहारी बर मंतर साधे , एकर संसकार अउ संसकृति के रखवारी बर “गुरतुर गोठ .com” अगास दिया के अखंड जोत कस धरती भर बगरे बर जोम धरे हवय.

सिरतोन कलजुग हा कल-पुरजा के जुग आय . नवा नवा कल-पुरजा , मशीन के आन्छत तकनीक के रस्ता मा सरपटहा भागत , दौड़त देस अउ दुनिया ला जाने , परखे , समझे अउ सरेखे खातिर “गुरतुर गोठ .com” छत्तीसगढ़ के पहली पोठ जतन आय. खबरिया नेवरिया भले ह फेर चतुरा हे , येला अपन अउ ठौर ठिकाना के पता हावय जहाँ येला हबरे बर हे .

महानदी ,इन्द्रावती , शिवनाथ , हसदो, मांड , केलो , सोंढूर, अरपा, पैरी के कछार के कलमकार, सरसती दाई के छत्तीसगढ़ बेटवा बेटी मन ले गाड़ा भर भरोस अउ कांवर भर आसरा हावय के अपन बिबिध बिधा के लेखा , कबिता ,गीत , गजल , कहनी , किस्सा, लोकगाथा, उपन्यास , नाटक , जमो ले “गुरतुर गोठ” के भंडार ला छलकत ले भरे के उद्दिम मा तन मन ले लागे रईंही . बिना ढेरियाये, बिना उबियाये अउ बिना दुरिहाये.

मोला लागथे अमर लोक पाये के एहू हा एक ठन मारग आय. भाई संजीव तिवारी संचालक, प्रकाशक – गुरतुर गोठ जउने ये डगर मा चले बर छत्तीसगढी के जमो रचनाकार मन ला सोरियाथें, रेरियाथें आरो देवथेन .एकर खातिर उन गजब के बधाई के पात्र हें. मोर जइसन एक साधारण कलमकार ला छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढी के सेवा बर भाखा ला अधार बना के गुरतुर गोठ के संपादन के काम ला सौपें हावंय , एकर बर मोर कती ले झौहा भर धन्यवाद अउ बधाई..

मोर समझ मा ये साधे लाइक मंतर आय के…..

सबले गुरतुर गोठियाले ले तैं गोठ ला आनी बानी के
अंधरा ला कह सूरदास अउ नाव सुघर धर कानी के

सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर