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संपादकीय

दू आखर

बेरा हा कईसे ढरकत जाथे पता नई चलय, देखते देखते हमर ये गुरतुर गोठ के दू महीना पुर गे । ये बीच म हम आपमन बर हमर भाखा के कबिता, कहनी अउ साहित्‍य के थोकुन सुवाद आपमन बर परसेन । आपो मन अपन टिप्‍पणी ले हमला बल देहेव आपके ये मया हा हमला सरलग रहे बर पंदोली के काम करिस । आपमन के परेम बने रहिही त हम आप मन बर अइसनेहे धीरे बांधे रचना परसतुत करत रहिबोन ।
हमर प्रदेस म पाछू महीना चुनाव तिहार के बडा जोर रहिस । पांच साल म हमला अपन सरकार बनाये बर बोट डारे के मउका मिलिस अउ अपन अपन बिचार के मुताबिक हमन अपन नेता ला चुने बर बोट डारेन । ये महीना हमर पसंद के राज बनही तेखर संगें संग हमर भाखा के बिकास के नवा परिभासा ह अपन रूप धरही । सरकार ह हमर भाखा के सुध नई धरही त हमन ला देवता जगाये बर परही ।
हमर भाखा के बिकास बर हमर साहित्‍यकार मन के उच्‍छाह ह तो दिन दूना रात चउगुना बाढत हावय फेर ये संबंध म हमर भाखा के पत्र-पत्रिका के संपादक अउ सियनहा साहित्‍यकार मन के चिंता हा घलव बाढत हावय । ‘लोकाक्षर’ के आदरणीय संपादक श्री नंदकिशोर तिवारी जी अउ ‘मडई’ के संपादक सुश्री सुधा वर्मा के पाछू दिनन म प्रकाशित संपादकीय म इही चिंता ह गहीराये दिखथे । लिखईया मन झंउहां झउंहा गीत, कबिता अउ कहनी लिखत हावय फेर अपन लेखनी म समाज बर संदेसा के छापा छोडत बनत नई हे । इही बात के चिंता ल हमन सब ला करना चाही तभे हमर भाखा के सही मायने म बिकास होही । हम हमर ‘गुरतुर गोठ’ म स्‍तरीय छत्‍तीसगढी रचना देहे के प्रयास करत रहिबोन अउ आपो मन रचना मन में अपन टीप दे के उंखर परिमार्जन के अपन दायित्‍व ला निभावत रहिहूं इही आपमन से हमर आसा हे ।
बम्‍बई म हमर देस के बैरी दुस्‍मन मन के टोनहाये नजर ला लालमिर्चा के फोरन डार के उतरइया हमर एनएसजी के बईगा जवान मन के बंदन अउ उंखर संग लडत लडत सहीद होये हमर जवान मन ला हम सलाम करत हांवन । ये हमला म हमर देस के अउ परदेस के भाई बहिनी मन के अकाल मृत्‍यु होगे उमन ला हम अपन श्रद्धांजली अर्पित करत हावन । दुख अउ संकट ले लडे बर अब हम अपन कनिहा ला कस लेहे हन परदेसी ह मितान कस रहिही त अपन हिस्‍सा के भात बासी खवाबोन अउ अइसनेहे हमर खटिया हमर बेटिया करिही त ओखर घर म घुसर के डंडा बजाबोन । 

जय भारत, जय छत्‍तीसगढ !

संजीव तिवारी