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कविता

दू कबिता ‘प्रसाद’ के

Matura Prasad Verma-१-

देख के इकर हाल मोला रोवासी आ जाथे,
रोए नी सकव मोर मुँह मा अब हाँसी आ जाथे।।

आज काल के लइकामन भुला गिन मरजादा,
मुहाटी मा आके सियान ला तभो खासी आ जाथे।।

बरा अउ सोहारी बेटा बहु रोज खाथे,
सियानिन के भाग मा बोरे बासी आ जाथे।।

पढ लिख के बेटा हा हो गेहे सहरिया,
हाल पुछे बर कभू कभू चपरासी आ जाथे।।

-२-

माडी भर चिखला मा तन ला गडाए, कारी मोटियारी टुरी रोपा लगात हे।
असाढ़ के बरसा मा तन ला भिजोए, अवइया सावन के सपना सजात हे।।

धान के थरहा ला धर के मुठा मा, आज अपन भाग ला सिरतोन सिरजात हे।
भुख अउ पियास हा तन ला भुला गेहे, जागर के टुटत गउकिन कमात हे।।

मेहनत के देवता ला आज मनाए बर, माथ के पसिना ला एडी मा चुचवात हे।
सावर देह मा चिखला अउ माटी के, सिंगार हर मोर संगी कइसन सुहात हे।।

भिजे ओनहा ला सरीअंग मा लपेट के, कोन जनी कोन धन ला लुकात हे।
सुरूर सुरूर चारो कोती चलत पुरवाई मा, गोरी के जाड़ मा ओठ कपकपात हे।।

सरितोन कहत हो कवि देखके वोला, तन मा लगत हे आगी मन हा जुडात हे।
महादेव लागत हे जइसे आज पारवती के, परेम मा मतंग हो के मदरस बरसात हे।।

कभू खल‍खला के हासे करे रे ठिठोली, कभू का सोच सोच मने मन लजात हे।
गीत गा के मनमोहनी हिरदे मा हुक मारे, अउ कभू नाचे सही कनिहा डोलात हे।।

देख के रूप गोरी के मय हो गेव पानी पानी, देख के देखत मोला मुड ला नवात हे।
ताना मारे सहीं अपन संगी संगवारी मन ला, जाने कोन भाखा काय समझात हे।।

जतिक तउरत हौ मै हा डुब डुब मरत हावव, पियास मोर काबर आज नी सिरात हे।
गुरू मोर मन ला छोड आज कहां चलदे तै, अब मोला कोनो नहीं रददा बतात हे।।

मथुरा प्रसाद वर्मा  ‘प्रसाद’
सड़क पारा कोलिहा बलौदाबजार छ ग
मो. 8889710210

3 replies on “दू कबिता ‘प्रसाद’ के”

Mr. Prasad Jee, please, you must study first the ‘SAMPADKIY’ of vichar vithi may-july 2013 and than trying to write some thing best. Thanks
kuber

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