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कहानी

दू ठो नान्हे कहिनी

आदिमानव
सुकारो के छुट्टी झटकुन हो जथे। रद्दा म खेलत-खेलत घर आथे अउ अपन बस्तर ल पठेरा म मड़हा के हडिया-कुडेड़ा ल मांजे बर बोरींग डाहर जाथे, रातकुन घर म पढ़ेबर बइठेन ताहन ओकर बबा ह पूछथे, तो गुरूजी मन का पढ़हईस गोई! त सुकारो ह लजावत कहिथे- आदिमानव के बारे म बतइसे। आदिमानव मन ह पहिली उघरा किंजरे कथे। ओतकीच बेर खेत डाहर ले मोहन आथे अउ टी.वी. ल चालू करके ताहन एक्स एम चैनल ल लगाथे त ओमे ‘कांटा लगाऽऽऽ’ कहिके अड़बड़ झन टूरी मन नाचत रथे। तेला सुकारो देख के डेर्रा जाथे, अउ खुशी म चिल्लावत अपन बबा ल कथे, वाह दे गा आदिमानव मन टीबी म आए हाबे!


परिवर्तन
शहर डाहर जावत रेहे हाबों रद्दा म मोला मेहत्तर ह मिलगे अउ कथे सुकुमार कहां जावत हस जी, आ बइठ ले ताहन जाबे कहिके जिद करके घर कोती लेगीस। मन म महूं केहेंव चल रे भई इही बहाना तोर घर ल देख लूहूं। जइसे ओखर मुहाटी म चघेंव त ऊपर म लिखाय राहे ”अतिथि देवो भव:।” मैं केहेंव बड़ सुग्घर लिखाय हाबे जी अउ बढ़िया संदेश घलो जाही।
पांच साल बाद मोर टूरा के बिहाव करे बर टूरी खोजे बर भोरहा ले उही गांव म पहुंचगेंव जिहां मेहत्तर रथे, अउ संयोग म फेर मेहत्तर रद्दा म मिलगे त कहिथे बहुत दिन बाद दरस देव कवि राज। सब बने-बने हाबे निही। चला घर डाहर बइठ के जाबे जइसे घर के मुहाटी म गेंव त देखथंव घर ह पक्की बनगे हाबे अउ चौखट के ऊपर म लिखाय राहे- ”कुकुर मन ले सावधान!”
जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा राजिम

आरंभ म पढ़व :-
कोया पाड : बस्‍तर बैंड
गांव के महमहई फरा

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