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धर्मेन्द्र निर्मल के पाँच गज़ल

कौड़ी घलो जादा हे मोल बोल हाँस के

कौड़ी घलो जादा हे मोल बोल हाँस के।
एकलउता चारा हे मनखे के फाँस के।।

टोर देथे सीत घलो पथरा के गरब ला।
बइठ के बिहिनिया ले फूल उपर हाँस के।।

सबे जगा काम नइ आय, सस्तर अउ सास्तर।
बिगर हाँक फूँक बड़े काम होथे हाँस के।।

हाँसी बिन जिनगी के, सान नहीं मान नहीं।
पेड़ जइसे बिरथा न फूलय फरय बाँस के।।

दुनिया म एकेच ठन चिन्हा बेवहार हँ।
घुनहा धन तन अउ भरोसा नइहे साँस के।।

कोन ल कहन अपन संगी

दुवारी के नाम पलेट कस, हाल हवय परमारथ के।
कोन ल कहि अपन संगी, संग हावय इहाँ सुवारथ के।।

छोटे बड़े दूनो ल चाही, अपन अपन बढ़वार ठसन।
अपने अपन बीच घलो, जंग हावय इहाँ सुवारथ के।।

भूखे पेट कमावत हे अउ पेट भरे मेछरावथे।।
एक पेट एक भूख कई, रंग हावय इहाँ सुवारथ के।।

सभयता संसकीरति के हम, गुनगान आगर करथन।
घिरलउ ओन्हा म घलो तन, नंग हवय इहाँ सुवारथ के।।

उप्पर जान हरू फूलपान, खाल्हे जान मान भारी।
उप्पर वाले घलो देख, दंग हवय इहाँ सुवारथ के।।

अब तो जग के करता धरता, बन बइठे हे रूपइया।
दया मया इमान धरम, चंग हावय इहाँ सुवारथ के।।

कहाँ गरीबन के पाँव उसल जाही

कहाँ गरीबन के पाँव उसल जाही।
पाँवे संग सरी छाँव उसल जाही।।

कोन हवय जीव ले जाँगर कमइया।
अमीर मन के तो नाँव उसल जाही।।

गाहीच कइसे कुहु कोइली सुछंद ।
जब कऊँवेच के काँव उसल जाही।।

कइसे के काला उछरहीे भुईंए हँ ।
जब कमइयेच के ठाँव उसल जाही।।

कते साहर कोन गाँव नइ बसे हे।
साहरे कहाँ जब गाँव उसल जाही।।

दुनिया म जम्मो पूरा ककरो

अपन रद्दा खुदे बनाथे खोजे मिलय नहीं किताब।
मया पीरा म हीरा पीरा के होवय नहीं हिसाब।।

नानुक जिनगी ल झगरा करके झन कर खुवार अइसे।
मया करे बर कभू समे दुबारा मिलय नही जनाब।।

लहुट नइ सकबे आके सुरता दूर गजब ले जाथे।
काकर संग गोठियाबे अकेल्ला मिलय नही जवाब।।

मया सींचे म मया पनपथे काम दगा हँ नइ आवय।
काँटा हे तभो बंबरी म कभू फूलय नही गुलाब।।

जतका हे ततके के खुसी म मजा हे जिनगानी के ।
जग म जम्मो कभू पूरा ककरो होवय नही खुवाब।।

कमाल होगे राजा

परजा के नारी ल छूवत मत्था ल ताड़ गे।
कमाल होगे राजा तोर हत्था हँ माड़ गे।।

पाँच साल के बिसरे आज घरोघर घुसरथस।
कमाल होगे राजा तोर नत्ता हँ बाड़ गे।।

अकाल म कोठी खुले बाढ़ म धोए बंगला।
कमाल होगे राजा तोर छत्ता हँ बाड़ गे।।

परजा के पिरा गे मुँहू फारे मँहगई ले।
कमाल होगे राजा तोर भत्ता हँ बाड़ गे।।

कुकुर खाय बिदेसी चारा परजा बर पैरा।
कमाल होगे राजा तोर सत्ता हँ बाड़ गे।।

धर्मेन्द्र निर्मल

2 replies on “धर्मेन्द्र निर्मल के पाँच गज़ल”

बहुत बढिया गजल लिखे हस संगी मजा आगे | एकर बर आप ला गाड़ा गाड़ा बधाई |

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