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कविता

धिक्कार हे

सुकमा जाय मा कांपत हे पोटा
दिल्ली ले कहत हे चुनौती स्वीकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे

कतेक घव बार-बार ये बात ला दोहराहु
बोलते रहि जहु फेर कुछू नइ कर पाहु
दम हे ता थोरकु बने दम ला दिखावव
दिल्ली वाले नेता आपो ग्राउंड जिरो ले हो आवव

आतंक वाले मन तो हजार दू हजार हे
तुहंर कना तो पूरा सरकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे

थोरकुन बांचे होही लाज-शरम
ता अब आर-पार के उठावव कदम
कब तक बस्तर पिसही-मरही आतंक के बीच
आशांति के इलाका मा शांति के लकीर तो खींच

कब तक कइहु शहादत नइ जावय बेकार हे
ये बताव कहां लोकतंत्र के सरकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे
तुहंला बड़ धिक्कार हे

वैभव बेमेतरिहा