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गोठ बात

नंदावत हे लोककला, चेत करइया नई हे…

गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा से खास बात

‘देवार डेरा’, ‘चंदैनी गोंदा’, कारी बर लिखे गीत अऊ कवि सम्मेलन मा सोझेच अपन मन के बात कहइया गीतकार कवि लक्ष्मण मस्तुरिहा के कहना हे कि नवा राज बने नौ बछर बीतगे फेर छत्तीसगढ़ के लोककला के चिन्हारी करइया नई मिलीस। जतका बड़का आयोजन होइस ओमा दिल्ली, बम्बई के कलाकार ला नेवता देइन, इहां के कलाकार के पूछारी नई हे। इही हाल रईही त हमर लोककला नंदावत देरी नई लागय। कतका उछाह उमंग नवा राज बनिस त मन मा रहिस फेर मन के साध मने मा रहिगे। ये तो उही बात होइस कि ‘घर के जोगी जोगना आन गांव के सिध्द’।
‘देशबन्धु’ के कला प्रतिनिधि ले होय भेंट मा गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा हा अपन मन के बात छत्तीसगढ़ी मा गोठियाइस ।
उनखर ले छत्तीसगढ़ के लोककला अऊ संस्कृति ले जुड़े बात घलो पूछे गिस।
नवा राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी फिलिम अब्बड़ अकन बनिस अऊ बनत घलो हे का येमा इहां के गीतकार मन ला मउका मिले हे?
दू चार फिलिम मा गीत लिखे बर केहे गिस फेर उहू मा टोकाटाकी करे जाथे। गीत के मूल भाव ला निर्माता-निर्देशक मन नई समझय। उनला अपन हिसाब से गीत चाही। ये पायके आज होवत ये है कि उही मन खुदे गीत लिखथें गवइया घलो उखरे ठिकाना नई हे। इही पायके केउ ठिन फिलिम फेल खागे।
पहली अऊ आज के स्थिति का फरक हे? एक गीतकार के रूप मा आप मन का सोचथौ?
बहुत फरक आगे हे। लोकगीत के नाम मा जोड़-तोड़ के कहां ले कहां गीत बना लिंही कहि नई सकस। इहां के संस्कृति से खिलवाड़ होवथे। फेर कोनो बरजत नई हे। जानत सबो हे फेर कलेचुप बइठे तमाशा देखत हैं। ब्योपारी मन सनिमा बनाही त कहां ले इहां के कलाकार मन ला काम मिलही। तभे तो बम्बई, कलकत्ता, उड़ीसा ले हीरो -हीरोइन बुला के काम करवाथें। सच कहव त मन उमठगे जी। पहिली कस श्रोता घलो नई हे। अब नाच गाना चाही भले काहीं रहय या नहीं फिलिम मा मारकाट होना चहे। कोनो न कोनो ल आगू आय बर परही नई ते काहींच नई बांचय।
आकाशवाणी, दूरदर्शन मा आप मन के गाये गीत बहुते पसंद करे गिस अब का होगे?
होय काहीं नईये सब जगा सिरीफ खानापूरती चलथे। सोचे के लइक बात ये हे कि जब नवा राज नई बने रिहीस त उही आकाशवाणी, दूरदर्शन हा एक से बढ़के एक कलाकार ला खोज निकालिस तीजन बाई, झाडूराम देवांगन, किस्मत बाई देवार, शेख हुसैन अऊ कतको कलाकार होइन अब तो अपन राज होगे तब काबर गांव देहात के कलाकार ला मउका नई देवय। छत्तीसगढ़ मा एक से बढ़के। एक गुनी कलाकार हावे। फेर उनखर कला के चिन्हारी करइया कमतियागे।
राज्योत्सव मा घलो उही हाल हे। मोला अइसे लगथे कि इहां के लोगन ला आगू बढ़त नई देख सकंय। छत्तीसगढ़ ला जगाना नई चाहेय। उलझाय रखना चाहत दें। सरकारी आयोजन मा कहूं कोनो कलाकार ला मौका दे दिन त ओला पूरा समे नई देवय। बाहिर के कलाकार ला जादा रकम देथंय इहां के कलाकार ला कमती पइसा देय के टरका देथंय । कहिथे झटकुन कार्यक्रम ल पूरा करव। प्रायोजक मन मनमानी करत हें। इहो के कलाकार ला दुतकारथें कहिथे तुमन लायक नई हौ। करमा ददरिया छोड़ के भांगड़ा, गरबा नचावत हे त ओमन का लायक होंगे?
इहां के कलाकार के रग-रग मा लोककला बसे हे। पीढ़ी दर पीढ़ी ओमन देखके सुनके सीखथें। पढ़े भले नई फेर गढ़े तो हें। केन्द्र अऊ राज्य सरकार इहां के कलाकार मन के कला ला जानय, समझय। अऊ जइसे राजस्थान मा उहां के कलाकार मन ला अभ्यास करे बर जइसे मानदेय देय जाथे। उही परकार ले छत्तीसगढ़ मा घलो लोक कलाकार मन ला बढावा देय बर अइसन बेवस्था होना चाही।

देशबंधु ले साभार