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कहानी

नंदिनी केहेस त मोर गांव देमार – कहिनी

आज दुखवा बबा के कुछ आरो नइ मिलत हे। बबा ल कुछु हो तो नई गे! आजेच ओखरघर के मोहाटी के कई बच्छर जुन्ना पीपर पेड़ हर जर समेत उखड़ गे हे। कहुं बबा ह उही मा चपका के… छी…छी… ये कहा मेहा अण्ड-बण्ड सोंचत हंव। बबा ल कुछु नई होवय अबहीन तो वो हा कई बच्छर अऊ जीही। अइसन सोंच के मेहा अपन आप ल धीर तर धरा डरेंव फेर मन के बेचइनी ल दूर नई कर सकेंव। मोर गोड़ अपने-अपन बबा के घर जाय बर उठगे।
दुखवा बबा के कतिक उम्मर होवथे हम्मन कोनो नई जानन। कोनो कहिथे अस्सी बच्छर होवथे, कोनो कहिथे नब्बे बच्छर होवथे। कोनो-कोनो त ओखर उम्मर ल सौ बच्छर लह्य घलो उप्पर बताथे। दुखवा बबा के अपन केहे बर त गांव भर हे फेर दुखवा बबा ल अपन कहइया कोनो नइहे। ददा ह बताथे के दुखवा बबा के घला कुटुम-परिवार रिहिसे। आज ले पचास-साठ बच्छर पहिली चौमास मा एक रात ओखर घर मा कारी डोमिन सांप खुसर के ओखर गोंसइन अउ बेटी-बेटा ल छू दिस तब ले बबा ह एके झिन हे। अब ये उमर मा बबा ह का कमाही? लउठी टेकत चार-दुवारी रोज घूमथे। नहीं…नहीं… भीख मांगे बर नहीं, आरो लेय बर। कोनो न कोनो घर मा बबा ल दू मुठा भात नइते आधा-थोरहा, पेटभरहा रोटी रोज मिलिच जथे। बबा पारा-मोहल्ला भर असीस देत घूमत रहिथे। उही बबा ल आज नइ देख के मोर मन चिंता मा परगे।
”बबा… कहां बबा…”
पीपर ह बबा के घर के एकंगु परही ल टोर के भरभरा के गिरे पड़े हे। ओखर डारा-पाना ह छतराय हे। बबा ह पेड़ के मइ डारा मा हाथ फेरत थरथरात खड़े हे। ओखर आंखी ले गंगा-जमुना कस आंसू बोहावत हे। बबा हर मोर पुकार ल सुनके लकर-धकर अपन आंसू ल पोंछत हे।
”बबा, का होगे बबा? काबर रोवत हस?”
” कुछु नहीं बेटा, मेंहा काबर रोंहूं? सियाना शरीर, आंखी-कान दिखय नहीं, तउन मा बड़े फजर एक ठन गोटी हा निंगे आंखी मा, उही ह कसकत हे।”
”नहीं बबा, ये बात नइहे, मन मा दूसर बात कसकत हे। तैं हर कुछु छुपावत हस, बता न बबा का बात हे?”
मोर चिउररी ल सुनके बबा ह भरभराय बांध कस फूटगे। धारो-धार रोये लागिस। बबा के अइसन रूप मेंहा कभू नइ देखे रेहेंव। अपन आप ल महूं हा रोक नइ सकेंव अउ ओखरे संग बोहाय लागेंव।
बबा ह जब जीभर के रो डरिस त पीपर के डारा ल सहलावत किहिस-”बेटा, आज मोर पुरखा के आखिरी निसानी घलो सिरागे।”
”ये का कहत हस बबा, ये पीपर हा तोर पुरखा के निसानी?”
”हां बेटा, मोर पुरखा के आखिरी निसानी।”
मेहा अतका तो जरूर सुने रेहेंव के ये पीपर पेड़ ह दू-तीन सौ बच्छर जुन्ना हरे। फेर ये नई जानत रेहेंव के एखर बबा के संग कोनो लागमानी हे। मेंहा कहेंव, ”बबा अराम से बइठ अउ सबो कहिनी ल बिस्तार से बता।” बबा बताय लागिस- ”बेटा तैंहा कभू सोंचे हस के ये गांव के नाव ”देमार” कइसे पड़िस, अउ एखर ये पीपर रूख के संग का संबंध हे?”
”देमार अउ ये पीपर के संबंध!” मेहा अकबका गेंव।
”ये का कहत हस बबा, भला गांव के नाव अउ पीपर के का संबंध हो सकत हे?”
”उही ल आज मेहा बतावत हंव। ब्रिटिस जमाना मा हमर ये गांव अइसन नइ रिहिस। एखर चारों खूट जंगल रिहिस। इंहा के तरिया मा सांभर, चीतल अउ हरिना, भालू मन पानी पीये बर आवयं। ओ बेरा के राज ह घलो लूटपाट के रहय। अंगरेज मन के पहिली ये एतराब मा मरेठा मन के राज रिहिस। अड़बड़ मारकाट अउ लूटपाट होवय। जेखर सेती…”
”वो सब बात ल तो मेंहा इतिहास मा पढ़ डारे हंव बबा, मोला तो ये बता के ये पीपर अउ हमर गांव के का संबंध हे।”
”उही ल तो बतावत हंव रे, ओ बेरा मा कोनो गांव इस्थई नई रहय। तेखर सेती गांव के नाव के भी ठिकाना नई रहय। हां, जब देस मा पहिली गदर मातिस अउ ईस्ट इंडिया (ईस्ट इंडिया कम्पनी) के हाथ ले निकल के राज हा सीधा बिक्टोरिया रानी के हाथ मा पहुंचिस त गांव मन घला इस्थई होइस। ओ बेरा मा गांव-गांव मालगुजारी सासन चलय। हमरो गांव मा एक झिन मरेठा मालगुजार रिहिस। ये गांव सहित पचास-साठ गांव मा ओखर सासन चलय। बताथे ओहा अब्बड़ अइताचारी रिहिस। गांव भर ओला डेर्रायं।”
”ओर सब बात ह तो ठीक हे बबा, आगू बता न। ”
”उही ल तो बतावत हंव रे लकरहा। ओ मरेठा मालगुजार के सगा-संबंधी मन नाकपुर (नागपुर) मा रहय। ओखर एक झिन भांची ह एक बेर घूमे बर ये गांव मा आइस अउ इहां के एक झन टूरा बर मोहागे।”
”ये का कहत हस बबा? नाकपुर असन सहर के टूरी इहां के गवंइहा टूरा बर मोहागे!”
”हां रे, ये सोला-सतरा बरस के उमर होथे घला मोहाय के। ये अइसे उमर हरे जेहा जात-धरम, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, गांव-सहर के भेदभाव ल नई जानय। बस जेखर ऊपर हिरदे हार जथे उही ओखर बर सब कुछ हो जथे।”
”ओ लड़की के का नाव रिहिस बबा? ओहा कइसे दिखत रिहिस होही? सहर ले आय रिहिस त जरूर खबसूरत रिहिस होही।”
”सियान मन बताथे ओखर नाव नंदिनी रिहिसे। कंचन कस काया दमकत रहय कहिथे। जतना कसई ओखर ममा ह रिहिसे, ओखर ले कई गुना जादा दया-मया ओ लड़की के मन मा समाय रिहिसे कहिथे। जे मालगुजार ल देखके आदमी मन मारे डर अउ घिरना के अपना रद्दा बदल देय नहीं ते अपन घर के दुवारी ल बंद कर देय ओखरे भांची नंदिनी ल एक झलक देखे बर तरसत रहय। जे रद्दा मा, जे-पारा-मोहल्ला मा नंदिनी ह घूमे बर निकल जतिस उहां नारी-पुरूस, लइका-सियान के रेम लग जाय। गांव के माई लोगन मन ओला छू के देखे बर ओखर तीर मा चल देय फेर इही संकोच मा नइ छू सकय के ओखर छुये ले नंदिनी के उार रूप मा दाग लग जही अउ वोहा नाराज हो जही। ओखर रूप के देखे साक्छात रति हा घलो लजा जाय। भुइयां रपोटत ओखर करिया चूंदी के बीच मा मुंह जइसे करिया-करिया बादर के बीच मा चंदा, सरवर कस आंखी जेमे निरमल जल कस मया भराय रिहिस। आंखी के बिरौनी कोनो धनुष ले कम नइ रिहिस। संगमरमर कस फक फक ले देह। ओखर गोठ के मिठास मा कोयली के बोली तक पानी भरय। वोहा हांसय त मोती झरय…”
”बस-बस बबा, लागथे अपन जवानी मा तैंहा जरूर कवि रहे होबे। अतेक सुग्घर कन्या हर एक देहाती टूरा बर मोहागे गा! ओखरो मा जरूर कुछु बात रिहिस होही, हे ना? बबा, तो लड़का के का नाव रिहिस?”
”ओखर नाव श्याम रिहिस बेटा! बताथे एक दिन नंदिनी ह अपन मामी, दू झन नउकरानी अउ दू झन लठइत संग गांव के बाहिर तरिया पार के मालगुजारी अमइरया ल देखे बर गेय रिहिस। चइत के महीना, अमइरया मा आमा डारा टोर फरे रिहिस। भरे मंझनिया उही बेरा मा खीसा निकले बरहा (दंतैल जंगली सुअर) मन के दल पानी पिये बर तरिया अइस अउ ओखर मन ऊपर हमला कर दिस। दुनो लठइत मन मामी अउ नउकरानी ल बचाय बर लगगे, नंदिनी एके झन परगे अउ डर के मारे भागिस। एक ठन बहरा हा ओखर पाछू लगगे। उही बेरा मा श्याम ह लकड़ी चीर के आवत रिहिस। बरहा ला नंदिनी के पाछू दउड़त देखीस ता ओ हा लकड़ी के बोझा ला पटकके दउड़िस अउ टंगिया मा बरहा ल मार डरिस। ये लड़इ मा श्याम घलो घायल होगे। बरहा अउ श्याम के तन ले रकत-लहू बोहात देखके नंदिनी होस खो बइठिस। श्याम ह ओला उठाके तरिया के घठौंदा मा लानिस अउ पसर मा पानी ला लान के ओखर मुड़ी मा थोपिस। तब कहुं जाके नंदिनी होस मा आइस। ”
”सच मा बबा, श्याम ह बड़ बहादुरी के काम करिस। तब तो ओखर मामी ह साम ल इनाम दिस होही बबा?”
”अरे नहीं रे, इनाम तो दूरिहा, उलटा श्याम ल थपरा मार दिस।”
”थपरा मार दिस? काबर बबा? श्याम हा तो नंदिनी के जान बचइसे”
”जान तो बचइस फेर छोटे जात होके ओखर तन ल छू दिस न।”
”बबा, श्याम ह ओला छूतिस नहीं ते ओखर जान कइसे बाचतिस?”
”ये बाल ल तैं कहत हस अउ मेंहा कहत हंव। ओखर मामी ल कोन समझातिस”
”फेर आगू का होइस बबा?”
”दूसरइया दिन नंदिनी ह एके झिन पूछत-पाछत श्याम के घर आगे। श्याम के दाई-ददा के संगे-संग पारा भर के मनखे मन सकलागे। काली के घटना के गांव भर हल्ला हो गे रिहिसे। सब झिन नंदिनी के घोलन्ड-घोलन्ड के पांव परिस के ओहा श्याम ल छिमा कर दे। ओहा नदान हे, ऊंच -नीच अउ छोटे-बड़े के भेदभाव ल नइ जानिस अउ वोला छू दिस। मोहल्ला वाला मन के बेवहार ल देखके नंदिनी घला दंग रहिगे। नंदिनी ल छत्तीसगढ़ी बोले बर त आय नहीं। मराठी, हिन्दी अउ अंगरेजी बोलय। नंदिनी ह हिन्दी बोलय त गांव वाला मन थोरकुन समझ तो जाय फेर ओमन छत्तीसगढ़ी बोलय त नंदिनी कुछु समझ नइ सकय। एंव-तेंव करके ओहा श्याम के पता पूछिस। पता चलिस के वोहा तरिया कोती गेहे। नंदिनी ह कोनो ल बिना बताय एके झिन तरिया कोती चलदिस। श्याम ह तरिया के पार मा काली के घटना ल सुरता करत बइठे रहय। बीच-बीच मा भुइयां के गोटी ल उठा-उठा के पानी मा फेंकत जाय। तरिया के पानीकस ओकर हिरदे लहरात रहय। मन मा उथल-पुथल मचे रिहिस।”
”श्याम! ए श्याम!”
पाछू कोती ले एक अनजान लड़की के मुंह ले अपन नाव सुनके श्याम हड़बड़ागे। लहुटके देखथे त ओकर आगू मा साक्छात सरग के परी खड़ी हे। श्याम के मुंह ले बक्का तक नइ फूटिस। डर के मारे थरथरात खड़े होगे। जब कुछु समझ मा नइ अइस त ओहा ऊहां ले चले लागिस। नंदिनी हाथ लमाके बीच रद्दा मा ठाड़हे होगे। कथे-”श्याम, क्या आप मुझसे बातें नहीं करेंगे? कल आप अपनी जान हथेली में रखकर मेरी जान बचाई उसके लिए शुक्रिया अदा करने का मौका नहीं देंगे?”
श्याम का समझे जान हथेली अउ सुकरिया अदा ल। ओहा तो बउराय कस होगे रहय। ओहा सपना मा घलो नइ सोचे रिहिस के नंदिनी ह ओखर से मिले बर आही। श्याम ह जी बाई… नहीं बाई… हव बाई कहते कहत रहिगे। जब वोला अउ कुछु नइ सूझिस न ऊहां ले रेंगे लागिस। नंदिनी हंसत किहिस, ”श्याम, मैं कल इसी जगह, इसी समय फिर आऊंगी, आप भी आइयेगा।”
”बस उही दिन ले दोनों के मेल-जोल सुरू होइस। धीरे-धीरे दुनो के मन मा एक दूसर बर अतका मया बाढ़िस के मउत ह घलो कम नइ कर सकिस। नंदिनी अउ श्याम रोज मंझनिया तरिया के अमरइया म मिलय। नंदिनी हिन्दी बोलय त श्याम हा थोर बहुत समझ तो जाय फेर श्याम बोलय त नंदिनी के कुछु समझ मा नई आय। फेर उंकर मया ह सबद-बोली के मुहताज नई रिहिस। दुनों के आंखी एक दुसर के जुबान बन गे रिहिस। आंखी-आंखी मा बोलयं अउ आंखी-आंखी मा सुनयं। नंदिनी कभू फूल असन खिलखिलाय, त कभू हिरनी जइसन उछल-कूद करय। कभू आमा के डारा ल धरके झूलय तक कभू थक गेंव कहिके श्याम के गोदी मा सो जाय। कभू श्याम ल गाना सुनाय बर जिद करे त कभू ओला नाचे बर कहय। कभू-कभू मन के उमंग मा श्याम ल चूम घलो देय त श्याम परसा फूल कस ललिया जाय। श्याम कभू ओला ददरिया सुनाय त कभू करमा नाच के देखाय। नंदिनी ह गाना ल समझ तो इन सकय फेर करमा नाच के नकल देखा-देखी जरूर करय अउ हांसय। दुनों के निश्छल मया के अमरइया, चिरई-चुरगुन, तरिया अउ पेड़-पउधा, पानी पीये बर अवइया सांभर, चीतल सब मूक गवाह बनगे।”
”कथे, हंसी-सुखी अउ मया ल कतको छुपाबे तभो ले न छुप सकय। नंदिनी अउ श्याम के मया ह घलो छुप नइ सकिस। गांव भर मा दुनों के मया के चरचा होय लागिस। नंदिनी के मामी ह ओला बरजे। मिले बर मना करय लेकिन नंदिनी समझ नइ सकय कि काबर मना करत हे। फेर एक दिन ओ बेरा अइगे जेखर डर गांव वाला मन ल रिहिस।”
”नंदिनी के ममा के आधा ल जादा समय मालगुजारी वसूलत अउ थाना-कछेरी मा बीत जाय। घर के लोग के बहुते कम फिकर रहय। जेखर सेती नंदिनी अउ श्याम के मया ल वोहा नइ जान सकिस। अकती (अक्षय तृतीया) के दिन श्याम अउ नंदिनी अमरइया मा बइठ के गोठियात रिहिस वोला मालगुजार के एक झन लठइत ह देख डरिस। ओहा मालगुजार कर आके बड़हा-चढ़ा के बता दिस। मालगुजार के गोड़ के रिस तरवा मा चढ़गे। तुरते घोड़ा मा चढ़के अइस तब नंदिनी अउस श्याम घर लहुटत रिहिस। नंदिनी ल लठइत के संग मा घर भेजवा दिस अउ श्याम ल घोड़ा के पाछू मा बांध के घिल्लात-घिल्लात लाके ओखर घर के मोहाटी मा जिन्दा जरा दिस।”
अतका के बतावत ले बबा थरथरागे। आगू अउ कुछु बोले नइ सकिस। थोरकिन बाद में जब वोहा सांत होइस त पूछेंव ”फेर का होइस बबा?”
”ओखर बाद अउ का होही बेटा, श्याम के दर्द-ददा अउ ओखर छोटे भई उही दिन दूरिहा गांव में काम करे बर गेय रिहिस। पारा के एक झिन कका के रिसता लागे तेन भागत-छिपत उंखर तक पहुंचिस अउ सबो बात ल बताके ओमन ल गांव आय बर मना करिस। कहूं ओमन गांव आतिस ते हइतारा मालगुजार उहू मन ला मार डरतिस।”
”नंदिनी के का होइस बबा?”
”बेटा। नंदिनी ह श्याम ले सच्चा मया करे। ओहा फकत श्याम बर बने रिहिस। जइसे सुनिस के ओकर परान के आधार जिन्दा जरत हे, उहू ह अपन शरीर मा माटी तेल छार के जरगे।”
”गांव भर चिहुक उड़गे। ओ अइताचारी मालगुजार ह रातों-रात अपन परिवार समेत नंदिनी के लाश ल मोटर मा भरके नाकपुर चल दिस फेर ओखर भाई लहुटिस। थोरेच दिन बाद मा दूसर मालगुजार अइस। ओखर संग मा अंगरेज पटवारी अइस। वोहा गांव के नाव पूछिस त एक झिन के मुंह ले बरबस निकलगे के तो देवमार गांव हरे जेहा एक झन देवता सहिन श्याम अउ देबी सहिन नंदिनी ल लील डरिस। बस पटवारी ह गांव के नाव ल देवमार लिख दिस।
”लेकिन बबा ये गांव के नाव तो देमार हरे। बीच के ‘व’ अच्छर कहां लुकागे?”
”हव रे पटवारी ह अपन रजिस्टर मा अंगरेजी मा देवमार लिखत-लिखत बीच के अच्छर डब्ल्यू ल भुलागे। तब ले देवमार ह देमार होगे। सुरू-सुरू मा लोगन मन देवमार कहय, बाद मा धीरे-धीरे देमार केहे के आदत पड़गे। लिखा-पढ़ी मा घलो देमार लिखे के सुरू होगे।”
” बबा, फेर ये पीपर अउ तोर पुरखा?”
”जे जघा मा ओ मालगुजार ह श्याम ल जराय रिहिसे वो इही जघा हरे। जेठ के पहली पानी गिरे के बाद ओखर राख ले ये पीपर पेड़ जागिस। साम के दई-ददा इही पेड़ ल अपन बेटा समझ के बड़ जतन करके बड़हाहस।”
”त बबा तोर पुरखा?”
”हव रे, ओ श्याम के छोटे भाई के मेहा परनाती हरंव।”
किशन लाल
ग्राम- पोस्ट देमार
जिला धमतरी
(छ.ग.) 493773