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कविता

नवा बिहान

हरियर-हरियर भुईया अउ चिड़िया-चिरगुन चहकत हे।
नवा बिहान के सुग्घर-सुग्घर अंगना महकत हे।

सोनहा कस हे माटी देख कइसन चमकत हे।
संगी-संगवारी मन के संग म गुनत हे।

लाली-लाली रंग म सुरुज दमकत हे।
बगरा के उजियारा अंगना म पसरत हे।

नदिया नरवा ह कईसन सुग्घर बोहावत हे।
भुईया के अंगल अपन रंग म रंगत हे।

सुरूर-सुरूर कहिके बैरी पवन ह चलत हे।
महका के माटी ल मोर तन ल छुवत हे।

अनिल ‘रामकुमारी’ पाली
तारबाहर बिलासपुर।
आई टी आई मगरलोड धमतरी
7722906664