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व्यंग्य

नाचे नागिन रेडियो-रेडियो

मैं ओ रेडियो वाला ल पूछेंव- कइसे जी ये रेडियो म का चलत हे अउ ऐला इहां काबर मड़ाय हस।


तब रेडियो वाला किथे- ते नइ जानस गा, ये रेडियो में नागिन वाला गाना चलत हे। सांप मन इही गाना में तो नाचत हें। जब तक गाना चलत रही सांप ह नाचत रही। वाह रे केसिट के महिमा आदमी ते आदमी सांप ल घलो नचाय के हिम्मत राखथस।

जब ले घर-घर म टीवी, रेडियो आय हे तब ले ये कलाकार मन केसिट म समा गे हाबे। बीस रुपिया के केसिट ल बिसाव अऊ छै आगर छै कोरी गवइया- बजइया के गीत ल सुनव। अच्छा बिभो आगे हे। बेरा लागे न दिन बादर, जभे मन लागिस तभे होरी, देवारी अउ मातर। केसिट बनइया मन तो दिन बादर देख के बनाथे फेर सुनइया मन अपन मन मुताबिक सुनथे। माघ-फागुन के महिना म फाग गीत के केसिट। जेठ-बइसाख म बिहाव गीत के केसिट। चइत-कुंवार म माता सेवा के केसिट। कातिक महिमा म सुवा, गउरा-गउरी, राउत दोहा वाला के केसिट। अइसने बखत-बखत म नवधा रामायण, पंथी, पंडवानी, नाचा-गम्मत, के केसिट बाजार म आते रिथे।

हमर कला संस्कृति ल जग म छाहित राखे बर केसिट ह जतके बने काम करत हे, ओतके बिगाड़ घलो करत हे। बर-बिहाव के जेन गीत ल बिहतरा घर के ढेड़हिन सुवासिन मन ल गाना चाही ओ गीत ल ओमन रेडियो ल गवाथे। नेंग जोंग के बेरा म केसिट ल लगा देथे। रेडिया ह गाना गावथे नेंग-जोंग चलत हे। उच्छाह मंगल के संगे संग गउरा- गउरी, जग-जंवारा जइसन संस्कार परब के रीति रिवाज घलो केसिट ले पूरा होथे। ये केसिट में मोह ह लोगन ल अतेक रस डरे हे जेकर कोनो हद नइए।

ओ दिन खेत कोती गे रेहेंव त भिंभोरा मेर ढोड़िया अउ असोढिया ह गाद खेलत रिहिस। गांव म आके दू चार झन ल बताएंव। सुनके वहू मन देखे बर चल दिस। थोरकेच बेरा घर बिलम के मैं फेर खेत कोती गेंव त उहां गजब भीड़ जुरियागे रिहिस। एक झन ह रेडियो ल चालू करके भिंभोरा मेर मड़ा दे रिहिस अउ सांप के गाद खेलइ ल देखत रिहिस। मैं ओ रेडियो वाला ल पूछेंव- कइसे जी ये रेडियो म का चलत हे अउ ऐला इहां काबर मड़ाय हस। तब रेडियो वाला किथे- ते नइ जानस गा, ये रेडियो में नागिन वाला गाना चलत हे। सांप मन इही गाना में तो नाचत हें। जब तक गाना चलत रही सांप ह नाचत रही। वाह रे केसिट के महिमा आदमी ते आदमी सांप ल घलो नचाय के हिम्मत राखथस।

मुंह ले सुनय चाहे केसिट ले गीत संगीत ले मन म शांति रिथे तेला तो हमु जानथन। फेर शांति घर जेवांरा बाइस त सेउक ल नइ बला के सेवागीत के केसिट ल सुना के जग जेवांरा के काम ल सिरजा डरिस तेनो ल जानत हन…

काहे के दिन मइया के अनमन जनमन

शारदा मोर सत्ती माय हो।

काहे के दिन अवतार,

शारदा मोर सत्ती माय हो॥

बुध बिरसपत मइया के अनमन-जनमन,

शारदा मोर सत्ती माय हो

शुक्र सनिच्चर अवतार,

शारदा मोर सत्ती माय हो॥

केसिट ले नेंग जोंग पूरा हो जथे ते पाय के केसेट के महत्ता अपन जगा बने हे। ये ह हमर बिधिबिधान अऊ नेंग जोग के धरोहर संजोए के काम घलो करत हे। फेर अइसनो धरोहर कोन काम के जेमा गोड़-मुड़ ले बेचरउहापन भरे हे। आजकल तो जेन मन केसिट म गाना गा डरिस उही मन बड़े कलाकार के पदवी झटक लेथे। गांव गली के लोक कलाकार मन ल गुमनाम बनइया कोनो दूसर मनखे नो हे बल्कि अपने गांव गली के केसिट प्रेमी आय। लोगन ल खुदे सोचना चाही कि केसिट म काम चलाय ले हमर गांव के लोक संस्कार अउ लोक कलाकार के का गत होही।

उंकर मुड़ म तो नागिन सवार हे रेडियो के त गवइया-बजइया के का सुध लिहि। ओमन तो असल ल छोड़ के नकल कोती मोहावत जाथे। इसने गली -गली म केसिट के नागिन नाचत रही त हमर गवई गांव के गवइया-बजइया कोन रही सुनईया।

जयंत साहू

ग्राम डूण्डा सेजबहार

रायपुर