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कहानी

नेता टेकनसिंह कहाय के सऊक

एसो के चुनई म महूं खड़े हावंव अऊ ये गांव के जम्मो वोट हा मोला मिलना चाहिए। ये बुता ल मेंहा आज ले तोला सौंपत हंव। काबर अब वोट डारे बर सिरिफ दस दिन बांचे हाबे। ऐती बर अब्बड़ अकन गांव किंजरे बर घलो हाबे। हो सकत हे कहूं अऊ आय बर नई मिलही। ये कागज पथरा ल धर, मोला फटफटी छाप मिले हाबे, बने सबो घर किंजर-किंजर के बता देबे। माइ पिल्ला गांव भर के मनखे मन इही फटफटी छाप म वोट डारहीं तब बनही जी, तोला काहीं कुछु लागही तेला बता देबे।
ग ऊरा चऊक म बइठे, अंकालू अऊ सुखिया गोठियावत राहाय कि अब चुनई के दिन ह घलो तीर म आवत हे कोनजनी ये दरी कोन खड़ा होवत हे ते, फेर नेता बने के अड़बड़ फायदा तको हे। जेन ह नेता, गांव के मुखिया, विधायक मंतरी बनथे ओकर पांचों अंगरी घीव म रथे। अतका गोठ ल सुन के बीड़ी पियत रहाय तेन ल छोड़ के टेटकू ह बुधारू ल पूछ परथे। का महूं ह चुनई म खड़े हो सकत हों का? बुधारू ह चुनई म खड़े होय के जम्मो नियम ल बताथे। सुन के टेटकू गदगद हो जथे अऊ चुनई लड़े बर फारम ल भरथे। मीठ-मीठ गोठ गोठिया के पांच-छै झन ल अपन समर्थन म मिला लेथे। टेटकू भइया जिन्दाबाद के नारा लगात घरों घर रोज किंजरत परचार परसार ल तेज कर दिस। जब समरथक मन थक जाय तब टेटकू ह अकेल्ला अपन खास संगवारी मतदाता जगा प्रचार म जाय। मंझनी मंझनिया दू बजे के बेरा लकलक ले भुइंया तीपे, घाम ह अड़राय, बुधारू घर के महाटी मेर आके कहिथे-
‘कोन्हो नइयो का जी, एको झन नई दिखत हौ, परान ह छुट जही तइसे लागत हे ददा, याहा का चुनई म खड़ा होवई हरे जी ताला-बेली हो गे हंव। पहट बिहनचे जुवार के निकले हंव, धन ये संसो अऊ नेता बने के सऊंक कब वोट डारे के दिन आही तब हाय जी लागही।’
ओतकी बेरा कुरिया ले निकट के जेठन ह डेरौठी मेर आथे, ओला देख के टेटकू चंगा होगे हांसत गोठियाथे-
‘राम-राम भइया, बने-बने जी।’
‘हव सफ्फो बनेच-बने ग। बने रबे तभे तो मेल-जोल होथे। आव बइठो, खटिया बिछे हाबे।’
‘ले ना रहन दे गा, दिन भर बइठई ताय कत्तेक ल बइठबे। अभी बइठे के बेरा नइए, फेर एक ठन बात ले के तोर मेर आय रहेंव।’
‘वा बोल न भई, काय गोठ हरे तेला।’
‘एसो के चुनई म महूं खड़े हावंव अऊ ए गांव के जम्मो वोट हा मोला मिलना चाहिए। ये बुता ल ये हा आज ले तोला सौंपत हंव। काबर अब वोट डारे बर सिरिफ दस दिन बांचे हाबे। ऐती बर अब्बड़ अकन गांव किंजरे बर घलो हाबे। हो सकत हे कहीं अऊ आय बर नई मिलही। ये कागज पथरा ल धर, मोला फटफटी छाप मिले हाबे, बने सबो घर किंजर-किंजर के बता देबे। माइ पिल्ला गांव भर के मनखे मन इही फटफटी छाप म वोट डारहीं तब बनही जी, तोला कहीं कुछु लागही तेला बता देबे।’
‘तहूं ह उदूपहा आके बज्र बुता दे देस टेटकू, नहीं काहात तक नई बनत हे, ननपन के संगवारी, ऐके इसकूल म पढ़े-लिखे हन, तोर गोठ ल टार तक नइ सकंव, मैं कइसे करंव तइसे लागथे।’
‘का कइसे करबे जी, अतका काम ल नइ करबे त कइसे बनही।’
‘बात ओइसे नइए टेटकू।’
‘त कइसे हे बता डर, पइसा-कौड़ी लागही त मेंहा दे बर तियार हंव, घर कुरिया, खेत-खार ल बेच के चुनई लड़त हंव, कोन्हो हार जहूं ते मरे बिहान हो जही, चुनई के सऊंक म घर निकाला हो जाही।’
‘वो हो… तोला कइसे समझांव कहिथंव।’
‘का बात हरे तेला फरिक-फरा बता न गा। तेहा अन्ते दल में तो नई चल दे हस, तेमा मोर परचार करे बर डरातव हाबस, ओइसने होही त छोड़ वोती के गोठ ल, तेहा मोर मदद कर भई मंद-मऊहा लागही ते बोल ना, के पेटी उतारहूं तेला। कपड़ा-उन्हा, कथरी, चद्दर, लूगरा, दरी, चाऊंर, दार संग मं दस हजार रुपिया तक दे बर तियार हंव, फेर बोट फटफटी छाप म ही जाना चाही। अतका कर सकत हंव भई मेहा।’
‘ते काबर समझत नइयस।’
‘अऊ समझाय बर बाचेच हाबे गा, ते सोचत हाबे मान लो कोन्हों चुगली कर दिही त कइसे करहूं कहीके, त सुन ओकरो निबटे के जुगाड़ हाबे मोर तीर मं, एकात कनी नहीं, अब्बड़ अकन गुण्डा हाबे, तोर इसारा करत देरी रही, मेहा’ तुरते भेज के मजा बता दूहूं, मोर राहत ले तेहा झन डररा, कइसनो होय मोला कोन्हों भी हालत से एसो के चुनई मं जीतना जरुरी हाबे, तहन देखबे। अभीन तो अतकी जीनीस देवत हौं, जीते के पाछु तोला मालामाल कर दूहूं, तब मेहा टेटकूृ नहीं नेता टेकनसिंह कहाहूं जगा-जगा दारु भट्टी खोलवाहूं, चोरी डकइती, मार-काट मचा के अतका पइसा सकेलहूं कि देखइया मन घलो कांप जाही। तब तेंहा बड़ शान से कबे मोर संगवारी नेता टेकनसिंह के अब्बड़ धाक हे, पुलुस- सिपाही मन तो दुरिहया ले सलाम करथे। सहेब-शिकारी तो आगू-पाछू में किंजरत रथे।’ अतका सुनके जेठन गुस्सा ए एड़ी के तरवा मं चढ़ जथे, बगिया के जोर से आंखी ल बड़े-बड़े छटेर के कहिथे- ‘बस-बस टेटकू अतकी गोठिया, नहीं तो तोर हाथ ल धर के खिंचत मारत खेदारे के नौबत आ जाही। फेर वो बेरा मत कबे संगवारी हो के देरौठी में भगा दिस, मेंहा तोला बने आदमी समझत रहेंव। तेन तो चोरहा, लबरा ले घलो नहाक गे हस। अब में तोर गोठ ल एक कनिक नई सुनव चल तो ते इहां ले जा भई, तोर चेहरा ल तक देखन नई भात हे मोला।’
‘ का होगे तेमा भड़के सरिक गोठियाथस जी।’
‘अरे, ते भड़के सरिक कथस, तोर जइसे मनखे ल तो बोट देवई त बहुत धुरिया हे, कोड़ा मं मार-मार के जेल भीतरी ओइलाय के लइक हस, बढ़िया होइस। गोठे-गोठ में टालत गेंव ते, तोर असली चेहरा तीर मं आगे, नहीं ते बच्छर दिन ले पछताय ल पडतिस। तोर जइसे गुण्डा ल मुखिया चुनके हमर राज ल बरबाद करबो। मुखिया राज के सुरक्छा, परजा के भला करे बर चुने जाथे। तेहा तो उल्टा बरबाद करे बर पहली ले मूंहूं धो डरे हस, तो जइसे ल बोट का, ठेंगा परही ठेंगा? अब तो मेंहा सबो झन ल बता दूहूं कि तोला वोट झन देवे। कतेक गुण्डा रखे हस, भेज वोला मोर करा का करही तेला देखथों। गरीब के सेवा करे ल छोड़ के उद्धम मचाय बर तुले हस। अरे, तोर डऊकी, लइका तक तोला गारी दिही। अइसने करबे ते मरे के बाद नरक मं तक जगह नइ मिलही तोला।’
अतका गोठ ल सुनके टेटकू के मूहू करियागे, ठउका बेरा मं जेठन वोकर आंखी ल खोल दिस, अऊ कसम खा के टेटकू ह कहिथे- मोला माफी देबे भइया जेठन, पद के लालच मं मेहा अंधवा होगे रेहेंव। सही बात ये गरीब के सेवा ही सबसे पुण्य हरे। उही मोर बर पद हरे, कुरसी हरे अऊ सबो हरे। जोन हा राज के सुरक्छा, परजा के भलाई कर सकते हे तेला देख-परख के चिन्ह पहिचान के नेता, मुखिया चुनौ, महूं ह तूहर संग में हवं।
संतोषकुमार सोनकर मंडल
चौबेबांधा (राजिम)